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राष्ट्रीय खेल दिवस 2024: मेजर ध्यान चंद के रिकॉर्ड्स और उपलब्धियों पर एक नजर 
मेजर ध्यान चंद कमाल के खिलाड़ी थे

राष्ट्रीय खेल दिवस 2024: मेजर ध्यान चंद के रिकॉर्ड्स और उपलब्धियों पर एक नजर 

Aug 23, 2024
08:12 am

क्या है खबर?

जब भी भारतीय हॉकी की बात आती है तो पहली नजर में एकमात्र खिलाड़ी जो दिमाग में आता है वह कोई और नहीं बल्कि मेजर ध्यान चंद हैं। उन्होंने भारत में हॉकी की सफलता को लेकर क्रांतिकारी भूमिका निभाई थी। उन्होंने 3 ओलंपिक खेलों में भारत को स्वर्ण पदक जीतने में मदद की थी। भारत में 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस इसी खिलाड़ी की जयंती पर मनाया जाता है। आइए उनके रिकॉर्ड्स और विरासत पर नजर डालते हैं।

शुरुआत

ऐसी हुई थी ध्यान चंद की शुरुआत

ध्यान चंद ने अपनी पहली छाप से ही सबको हक्का बक्का कर दिया था। साल 1925 में अंतर-प्रांतीय टूर्नामेंट के दौरान, उन्हें उस समय के संयुक्त प्रांत (यूपी) की टीम का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था। जहां उनके खेल ने सभी का ध्यान आकर्षित किया था। वह साथी खिलाड़ियों को आसानी से पास देते थे और उनके पास गोल दागने की कमाल की क्षमता थी। इसी कारण उन्हें 1928 की ओलंपिक टीम में जगह मिल गई थी।

गोल

1928 ओलंपिक में दागे थे 14 गोल

साल 1928 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने पहली बार स्वर्ण पदक जीता था। ध्यान चंद ने पूरे टूर्नामेंट में कमाल का प्रदर्शन किया था। फाइनल में इस खिलाड़ी ने नीदरलैंड हॉकी टीम के खिलाफ हैट्रिक जड़ दी थी और आसानी से भारत ने स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। पूरे टूर्नामेंट में उन्होंने सबसे ज्यादा (14 गोल) दागे थे। उस समय एक अखबार ने उनके के लिए लिखा था कि वास्तव में ध्यान चंद 'हॉकी के जादूगर' हैं।

कप्तानी

कप्तानी में भारत को दिलाया स्वर्ण पदक 

अपने अविश्वसनीय कार्यकाल और 2 ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्हें दिसंबर 1934 में भारत का कप्तान नियुक्त किया गया था। 2 साल बाद उन्होंने बर्लिन में अपने अंतिम ओलंपिक में टीम का नेतृत्व किया। जर्मनी हॉकी टीम के खिलाफ अभ्यास मैच में टीम को 1-4 से हार मिली थी। हालांकि, इसके बाद फाइनल मुकाबले में भारतीय टीम ने उसी जर्मनी टीम को 8-1 से हराया था। ध्यान चंद ने फाइनल में 3 गोल दागे थे।

हिटलर

जब हिटलर ने ध्यान चंद को जर्मनी के लिए खेलने को कहा

जर्मनी के खिलाफ शानदार जीत के बाद एडॉल्फ हिटलर ने ध्यान चंद को खाने पर बुलाया था और उनसे जर्मनी की ओर से खेलने को कहा था। इसके बदले उन्हें जर्मन सेना में कर्नल पद का प्रलोभन भी दिया था। इसके जवाब में ध्यानचंद ने कहा था, "हिंदुस्तान मेरा वतन है और मैं वहां खुश हूं।" 22 साल तक भारत के लिए खेले और 400 गोल दागे। वह भारतीय सेना में लांस नायक के पद पर भी रहे।