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मनरेगा मजदूरी कर चुके राम बाबू ने राष्ट्रीय खेलों में बनाया रिकॉर्ड
रामबाबू को अपने संघर्ष के दिनों में वेटर और मजदूरी भी करनी पड़ी। (तस्वीर:ट्विटर/@sagofficialpage)

मनरेगा मजदूरी कर चुके राम बाबू ने राष्ट्रीय खेलों में बनाया रिकॉर्ड

Oct 05, 2022
10:50 am

क्या है खबर?

प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, यह कहीं भी जन्म ले सकती है। कुछ ऐसा ही देखने को मिला गुजरात में आयोजित हो रहे राष्ट्रीय खेलों के दौरान। जनसंख्या की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश को दिन का पहला स्वर्ण पदक एक मनरेगा मजदूर ने दिलाया। राम बाबू ने पुरुषों की 35 किलोमीटर रेस-वॉक में स्वर्ण पदक जीतकर एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम कर दिया है। आइये जानते हैं राम बाबू से जुड़ी कुछ खास बातें।

रिकॉर्ड

राम बाबू ने 2 घंटे 36 मिनट में पूरी की रेस

राम बाबू ने इस रेस को दो घंटे 36 मिनट और 34 सेकेंड में पूरा किया, ये एक नया रिकॉर्ड है। इस श्रेणी में पिछला रिकॉर्ड हरियाणा के जुनैद खान के नाम दर्ज था, उन्होंने दो घंटे 40 मिनट और 16 सेकेंड में 25 किलोमीटर रेस-वॉक पूरी की थी। मंगलवार को जुनैद ने भी इस प्रतिस्पर्धा में भाग लिया, लेकिन वे दूसरे स्थान पर रहे। उन्होंने दो घंटे 40 मिनट और 51 सेकेंड का समय लेते हुए रजत पदक जीता।

लगन

लगन के बलबूते राम बाबू ने छह महीने में कायम किया नेशनल रिकॉर्ड

इसी साल अप्रैल में राम बाबू को राष्ट्रीय दौड़ प्रतियोगिता में जुनैद के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था। तब उस प्रतियोगिता में जुनैद ने दो घंटे 40 मिनट और 16 सेकेंड का समय लेकर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। राम बाबू उस मुकाबले में दो घंटे 41 मिनट और 30 सेकेंड के समय के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। अब उन्होंने छह महीने बाद ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया।

बयान

हर महत्वाकांक्षा की एक कीमत होती है- राम बाबू

IE के अनुसार, राम बाबू ने खिताब जीतने के बाद कहा, "मैं अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी ऐसे प्रदर्शन को दोहराने के लिए कड़ी मेहनत करता रहूंगा। अच्छा लगता है जब एक खिलाड़ी के रूप में आपको इतना सम्मान मिलता है और जब लोग आपको प्रोत्साहित करते हैं।" उन्होंने आगे कहा, "मैं ओलंपिक और एशियाई खेलों के लिए क्वालीफाई करना चाहता हूं। सफलता पाने के लिए आपको खुद पर विश्वास होना चाहिए। हर महत्वाकांक्षा की एक कीमत होती है।"

संघर्ष

वेटर से लेकर मजदूरी करने तक का काम किया

ऐसा नहीं है कि 23 साल के राम बाबू को ये सफलता रातों-रात मिली है, इसके पीछे उनका कठिन संघर्ष छुपा है। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें वेटर से लेकर मनरेगा मजदूर के रूप में काम करना पड़ा। वे अपने वेटर के काम को अपने जीवन का काला अध्याय मानते हैं। उनके अनुसार, इस काम के दौरान लोग उनका काफी अपमान करते थे। राम बाबू के अनुसार, उनकी मां आज भी चार किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेने जाती हैं।