बैकग्राउंड ऐप्स किल कर देते हैं कई कंपनियों के फोन, गूगल नाखुश
क्या है खबर?
आजकल ज्यादातर स्मार्टफोन्स में बैटरी लाइफ और परफॉर्मंस बूस्ट करने से जुड़ा फीचर मिलता है।
स्मार्टफोन्स कंपनियां बेहतर परफॉर्मेंस देने के लिए बैकग्राउंड में चल रहीं ऐप्स और प्रोसेस को किल कर देती हैं।
हालांकि, एंड्रॉयड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने वाली कंपनी गूगल इस बात से खुश नहीं है और ऐसा करने को हेल्दी प्रैक्टिस नहीं मानती।
कई बार बैकग्राउंड ऐप्स को किल करने का असर उनकी परफॉर्मेंस और यूजर्स को मिलने वाले एक्सपीरियंस पर पड़ता है।
नोटिस
गूगल ने डिवेलपर्स से सर्वे भरने को कहा
गूगल ने बैकग्राउंड में ऐप्स किल की प्रैक्टिस पर ध्यान दिया है और डिवेलपर्स से एक सर्वे भरने को कहा है।
कंपनी ने डिवेलपर्स से पूछा है कि स्मार्टफोन मेकर्स की ऐप रिस्ट्रिक्शन और किलिंग प्रैक्टिसेज की वजह से उनकी ऐप्लिकेशंस पर किस तरह का असर पड़ रहा है।
सर्वे फॉर्म में गूगल ने पूछा है, "अगर आपकी ऐप बैटरी सेवर की वजह से रिस्ट्रिक्ट होती है तो वैसी स्थिति से जुड़ी ज्यादा से ज्यादा जानकारी इस फॉर्म में दीजिए।"
दिक्कत
डिवेलपर्स को ज्यादा कंट्रोल देना चाहती है गूगल
डिवेलपर्स के लिए बैकग्राउंड ऐप किलिंग प्रैक्टिस बड़ी दिक्कत बनी रही है और गूगल भी यह बात समझती है।
इससे पहले सर्च इंजन कंपनी ने एंड्रॉयड 11 ऑपरेटिंग सिस्टम रिलीज से पहले भी अपने प्लान की आउटलाइन पेश की थी, जिससे डिवेलपर्स को ज्यादा कंट्रोल मिल सके।
गूगल अब एंड्रॉयड के नए वर्जन को कंपनी बेहतर रिसर्स मैनेजमेंट सिस्टम के साथ ला रही है, जिससे ऐप्स को किल ना किया जाए।
चुनौती
बीच का रास्ता निकाल लेती हैं कंपनियां
स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरर्स हमेशा ऐप्स को किल करने का कोई ना कोई तरीका तलाश ही लेते हैं, जिसका नुकसान ऐप डिवेलपर्स को उठाना पड़ता है।
इस तरह की प्रैक्टिसेज करने वाले स्मार्टफोन ब्रैंड्स की लिस्ट लंबी है और इसमें सैमसंग, नोकिया, वनप्लस और शाओमी जैसे नाम शामिल हैं।
बेशक डिवेलपर्स को लगता हो कि उनकी ऐप्स को अचानक किल किया जाना अच्छा नहीं है लेकिन यूजर्स बेहतर बैटरी परफॉर्मेंस मिलने के चलते शिकायत नहीं करते।
प्रोसेस
क्या होता है ऐप्स किल होने का असर?
स्मार्टफोन्स के बैकग्राउंड में रन करने वाली ऐप्स रैम और स्टोरेज स्पेस लेती हैं।
इसका असर बाकी परफॉर्मेंस पर तो पड़ता ही है, बैकग्राउंड में ऐप्स रन होने के चलते बैटरी भी खर्च होती रहती है।
कंपनियां बैकग्राउंड में रन हो रहीं ऐप्स को किल कर रैम और स्टोरेज स्पेस क्लियर करती हैं और बैटरी की बचत भी करती हैं।
हालांकि, बैकग्राउंड में चलने वाली ऐप्स को आसानी से ओपेन करना और उनपर काम करना आसान होता है।
क्या आप जानते हैं?
गूगल क्यों नहीं चाहती कि किल हों ऐप्स?
बैकग्राउंड में किल की गईं ऐप्स को दोबारा लॉन्च करने पर शुरू से लोड होना पड़ता है और पूरी तरह रेडी होने में वक्त लगता है। वहीं, अगर ऐप बैकग्राउंड में है तो दोबारा उसे ओपेन करने की प्रक्रिया नहीं करनी पड़ती।