
शुभांशु शुक्ला ने माइक्रोग्रेविटी का हडि्डयों पर प्रभाव का परीक्षण, जानिए क्या होगा फायदा
क्या है खबर?
एक्सिओम-4 मिशन के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) पर पहुंचे भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला कई महत्वपूर्ण प्रयोग कर रहे हैं। अपनी उड़ान के 10वें दिन उन्होंने अध्ययन किया कि हडि्डयां माइक्रोग्रेविटी में कैसे प्रतिक्रिया करती हैं। यह शोध पृथ्वी पर हडि्डयां से संबंधित बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस के बेहतर उपचार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इसके अलावा उन्होंने ISS पर विकिरण जोखिम की निगरानी के लिए एक और प्रयोग में भी भाग लिया।
प्रयोग
किन बातों पर निर्भर था यह प्रयोग?
एक्सिओम-4 के चालक दल ने बोन ऑन ISS प्रयोग में यह पता लगाया कि अंतरिक्ष में हडि्डयां कैसे खराब होती हैं और पृथ्वी पर वापस आने के बाद कैसे ठीक होती हैं। हडि्डयों के निर्माण, सूजन और वृद्धि से संबंधित जैविक प्रक्रियाओं का विश्लेषण करके शोधकर्ता एक डिजिटल ट्विन बना रहे हैं, जो अंतरिक्ष यात्री की हडि्डयों की अंतरिक्ष उड़ान के प्रति प्रतिक्रिया का अनुकरण कर सकता है। यह व्यक्तिगत दृष्टिकोण अंतरिक्ष यात्री-स्वास्थ्य जांच में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।
आत्मनिर्भर
यह प्रयोग बनाएगा आत्मनिर्भर
शुक्ला ने अंतरिक्ष में सूक्ष्म शैवाल जांच के लिए नमूने भी तैनात किए। ये छोटे जीव एक दिन भोजन, ईंधन और सांस लेने योग्य हवा प्रदान करके अंतरिक्ष में जीवन को बनाए रख सकते हैं। यह शोध भविष्य के दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है, जहां आत्मनिर्भर प्रणालियां महत्वपूर्ण होंगी। लखनऊ के रहने वाले शुक्ला एक्सिओम स्पेस द्वारा 14-दिवसीय ISS मिशन के लिए मिशन पायलट हैं। उनके 3 अन्य अंतरिक्ष यात्री भी इस मिशन में शामिल हैं।