फोन कॉल स्कैम्स का पता कैसे लगाएं और इनसे कैसे बचें?
आजकल डिजिटल और वास्तविक जीवन के बीच का अंतर काफी कम हो गया है, जिसकी वजह स्मार्टफोन है। स्मार्टफोन ने लोगों के जीवन को जितना स्मार्ट बनाया है, यह उतना ही मुश्किलों में भी डालता है। आए दिन हम स्पैम कॉल या फर्जी कॉल के जरिए बैंकिंग से जुड़े ऑनलाइन फ्रॉड्स की खबरें सुनते हैं। ज्यादातर यूजर्स को लापरवाही के चलते बैंकिंग फ्रॉड का शिकार होना पड़ता है। आइए जानें इस तरह के खतरों से कैसे बचना चाहिए।
स्कैमर्स आमतौर पर वृद्ध लोगों को बनाते हैं अपना शिकार
इन स्कैम्स की शुरूआत मैसेज या कॉल्स से होती है। इसके अलावा स्कैमर्स व्हाट्सऐप, फेसबुक मैसेंजर जैसे मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। इन स्कैमर्स का मुख्य टारगेट वृद्ध लोग होते हैं, क्योंकि उनको टेक्नोलॉजी की ज्यादा जानकारी नहीं होती। स्कैमर्स इनको पेंशन, KYC संबंधित, बैंक संबंधित जैसी कॉल करते हैं ताकि इन्हें आसानी से टारगेट बनाया जा सके। इससे बचने के लिए हमेशा कॉल/मैसेज की जांच करें और अपनी पर्सनल जानकारी या कोई OTP शेयर न करें।
ऐसे पेश आते हैं स्कैमर्स
स्कैमर्स आमतौर पर खुद को जरुरी सेवाओं का प्रतिनिधि बताते हैं, जिसमें बैंक, क्रेडिट कार्ड कंपनियां, बिजली बोर्ड, टेलीफोन नेटवर्क से मैसेज या कॉल आदि शामिल है। इन सेवाओं के जरिए स्कैमर्स आसानी से लोगों को विश्वास दिलाते हैं, ताकि उन्हें किसी भी प्रकार का शक न हो। ये आपको बाकी पेमेंट या पैसे संबंधित बात कहकर लिंक पर क्लिक करने को कहते हैं, ताकि आसानी से आपकी बैंक/कार्ड डिटेल चुरा सकें।
KYC के नाम पर होती है धोखाधड़ी
हाल ही में अन्नू कपूर ऑनलाइन धोखाधड़ी के शिकार हुए थे, जिनसे KYC के नाम पर 4.36 लाख रुपये की ठगी की गई। इसलिए KYC संबंधित कॉल से बच के रहना चाहिए, इनके साथ किसी भी प्रकार की जानकारी और OTP न शेयर करें।
मालिशियस और फेक लिंक्स से बचकर रहें
इंटरनेट यूजर्स को स्कैम में फंसाने का सबसे आसान तरीका उससे मालिशियस लिंक पर क्लिक करवाना होता है। RBI के मुताबिक, फ्रॉड करने वाले कई बार असली जैसी दिखने वाली फेक वेबसाइट तैयार करते हैं। इस फेक बैंकिंग या ई-कॉमर्स वेबसाइट पर लॉगिन करते ही यूजर की लॉगिन डीटेल्स चोरी हो जाती हैं और उनका गलत इस्तेमाल हो सकता है। ऐसे मालिशियस लिंक्स सोशल मीडिया, मेसेजिंग ऐप्स, पॉप-अप्स, ईमेल्स और दूसरे तरीकों से फैलाए जाते हैं।
फर्जी ऐप्स के जरिए होती है धोखाधड़ी
मालिशियस मोबाइल ऐप्स के जरिए डिवाइस का ऐक्सेस लेने, हैकिंग और डाटा चोरी जैसे काम किए जा सकते हैं। इन ऐप्स को भी सोशल मीडिया और मेसेजिंग ऐप्स में असली और काम की ऐप्स की तरह प्रचारित किया जाता है। इनके डिवाइस में इंस्टॉल होते ही अटैकर को ऐक्सेस मिल जाता है। स्कैमर्स स्क्रीन शेयरिंग ऐप्स और UPI-आधारित पेमेंट ऐप्स की मदद से भी ऑनलाइन बैंकिंग फ्रॉड्स को अंजाम दे रहे हैं।
गूगल जैसे सर्च इंजन के जरिए धोखाधड़ी
स्कैमर्स को पता है कि लोग बैकिंग से जुड़ी जानकारी गूगल और याहू जैसे लोकप्रिय सर्च इंजन्स पर खोजते हैं। सर्च रिजल्ट्स में फेक कस्टम केयर नंबर या वेबसाइट लिंक जैसी जानकारी देकर भी यूजर्स को फंसाया जाता है। किसी भी बैंक का ग्राहक असली समझकर बैंक के कस्टमर केयर नंबर पर कॉल करता है, जहां स्कैमर उससे कार्ड डीटेल्स और अन्य जानकारी मांगकर फ्रॉड को अंजाम देते हैं।
फोन चार्जिंग पोर्ट के जरिए भी होती है धोखाधड़ी
स्कैमर्स ने मोबाइल को नुकसान पहुंचाने और डाटा चोरी का एक तरीका खोज निकाला है, जिसे 'जूस जैकिंग' कहते हैं। यूजर जब फोन को अनजान चार्जिंग पोर्ट से कनेक्ट करता है तो चार्जिंग के दौरान उसका डिवाइस इन्फेक्ट कर दिया जाता है। पब्लिक प्लेसेज जैसे मॉल्स, बस स्टॉप या रेलवे स्टेशन पर ऐसे पोर्ट्स के मामले सामने आ चुके हैं। अटैकर डाटा चोरी से लेकर ईमेल, SMS ऐक्सेस करने और पासवर्ड्स चोरी करने जैसे काम कर सकते हैं।
खुद को सुरक्षित रखने के लिए अपनाएं ये टिप्स
इंटरनेट चलाने के दौरान किसी भी संदिग्ध लिंक या पॉप-अप पर क्लिक न करें। ऑनलाइन भुगतान करने से पहले सुरक्षित पेमेंट गेटवे (https:// URL या इससे पहले लॉक का आइकन) जरूर देखें। अपने पिन, पासवर्ड्स, CVV, कार्ड नंबर और OTP कभी भी शेयर न करें। उपलब्ध है तो टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन का इस्तेमाल लॉग-इन के वक्त करें। साथ ही ईमेल में आई अनजान फाइल्स या थर्ड-पार्टी ऐप्स डाउनलोड करने की भूल ना करें।