फ्लैगशिप स्मार्टफोन्स के बॉक्स से गायब क्यों हो गए चार्जर? जानें किसका हुआ फायदा
आज के समय में स्मार्टफोन्स हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं, इनके बिना थोड़ा सा भी समय काटना हमारे लिए आसान नहीं होता। ऐसे में अगर आपके फोन की चार्जिंग खत्म हो जाए तो आप तुरन्त अपना चार्जर खोजने लगते हैं। यानी कि चार्जर के बिना हम फोन की कल्पना भी नहीं कर सकते। हालांकि, कई कंपनियां ने अपने फ्लैगशिप फोन्स के साथ चार्जर देना बंद कर दिया है, आइए इसका कारण जानते हैं।
साल 2020 में हुआ बदलाव
2020 में सबसे पहले ऐपल ने इस बात की घोषणा की थी कि वह अपने नए फोन्स में चार्जर नहीं देगी। ऐपल ने इस बदलाव की शुरुआत आईफोन 12 सीरीज के लॉन्च के साथ की थी। इसके बाद कई कंपनियों ने ऐसा करना शुरू किया।
फोन के साथ चार्जर नहीं देती हैं ये कंपनियां
आईफोन 12 सीरीज के लॉन्च के साथ ही ऐपल ने अपने फोन्स में चार्जर देना बंद कर दिया। इसके बाद लॉन्च हुई आईफोन 13 और आईफोन 14 सीरीज में भी चार्जर नहीं मिलता है। ऐपल की देखा-देखी सैमसंग, हुवाई और शाओमी ने भी अपने फ्लैगशिप फोन्स को बिना चार्जर के मार्केट में उतारा है। सैमसंग ने गैलेक्सी S21 सीरीज, गैलेक्सी S22 सीरीज और गैलेक्सी टैब S8 सीरीज को बिना चार्जर के लॉन्च किया है।
इन फोन्स में भी नहीं मिलते चार्जर
शाओमी के रेडमी नोट 11S और नोट 11 प्रो को भी चार्जर के बिना ही लॉन्च किया गया है। हुवाई के फ्लैगशिप डिवाइसेज- हुवाई मेट X2, मेट 40 प्रो, नोवा 8 प्रो, और नोवा 8 को भी बिना चार्जर के ही लॉन्च किया गया है।
फोन के साथ क्यों नहीं मिल रहे चार्जर?
ऐपल और सैमसंग ने अपने इस कदम को सही साबित करने के लिए कुछ कारण भी दिए। ऐपल ने बताया कि चार्जर और दूसरी एक्सेसेरीज ग्लोबल कार्बन फुटप्रिंट और ई-कचरे को बढ़ाती हैं। चार्जर हटाने से कंपनियों की उत्पादन लागत कम होती है, जिससे फोन्स की कीमतों पर भी असर पड़ता है। साथ ही कई यूजर्स के पास पहले से पुराने चार्जर मौजूद हैं, जिन्हें वे फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं।
पर्यावरण संरक्षण में सहायक है ये कदम
ऐपल ने कहा कि स्मार्टफोन्स के साथ चार्जर और दूसरी एक्सेसेरीज को कम करने से फोन के बॉक्स छोटे हो जाते हैं, इससे पर्यावरण में प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही चार्जर हटाने से कंपनी की ग्लोबल कार्बन फुटप्रिंट भी कम होती है। कार्बन फुटप्रिंट, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और ग्रीनहाउस गैसों, जैसे-मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन की मात्रा है, जो कंपनी की ट्रांसपोर्टेशन सेवा जैसी गतिविधियों से जुड़ी होती है।
न्यूजबाइट्स प्लस
भारत ग्रीनहाउस गैसों का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। हमारा देश 2.46 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन का उत्सर्जन भी करता है, जो कुल वैश्विक उत्सर्जन का 6.8 प्रतिशत है। भारत में प्रत्येक व्यक्ति के औसत कार्बन फुटप्रिंट का अनुमान 0.56 टन प्रति वर्ष है।
फोन के साथ एक्सेसेरीज पर भी लगती है कस्टम ड्यूटी
जब फोन निर्माता कंपनियां अपने फोन को एक देश से दूसरे देश में भेजती हैं, तो उन्हें हर फोन और सभी एक्सेसेरीज की शिपमेंट पर कस्टम ड्यूटी देनी पड़ती है। इसके अलावा कंपनियों को फोन और एक्सेसेरीज को एक शहर से दूसरे शहर ले जाने पर भी टैक्स देना पड़ता है। चार्जर और अन्य एक्सेसेरीज को हटाने से उनपर लगने वाली कस्टम ड्यूटी और टैक्स कम हो जाते हैं, जो कंपनी के खर्चे को भी कम करते हैं।
कम की जा सकती है फोन की कीमत
फोन में से चार्जर और अन्य एक्सेसेरीज को निकालने से फोन की पैकेजिंग छोटी हो जाती है। इससे फोन के कार्टन्स में जगह बढ़ जाती है, जिसमें कंपनी ज्यादा फोन्स को रख सकती है। मान लीजिए पहले किए कार्टन में फोन्स के 50 बॉक्स आ जाते थे, लेकिन फोन की पैकेजिंग के छोटी होने से अब 70 फोन्स इसमें आ सकेंगे। कंपनियों ने दावा किया है कि चार्जर और अन्य एक्सेसेरीज नहीं देने से फोन की कीमत भी कम होगी।
कंपनियों का होगा सीधा मुनाफा
फोन की पैकेजिंग में से चार्जर को हटाने से कंपनियों की लागत कम हुई है, जिससे उन्हें काफी मुनाफा हुआ है। साथ ही पैकेजिंग के छोटे होने के कारण फोन की शिपमेंट भी प्रभावित होती है, यानी कि अब कंपनियां मार्केट में पहले से ज्यादा फोन यूनिट्स ला रही हैं। इसके अलावा चार्जर और अन्य एक्सेसेरीज की जरुरत होने पर यूजर्स को उन्हें अलग से खरीदना पड़ता है। इससे भी कंपनियों को काफी फायदा होता है।
ई-कचरे में आती है कमी
कंपनियो ने फोन से चार्जर हटाने का सबसे बड़ा कारण पर्यावरण को ई-कचरे की वजह से पहुंच रहे नुकसान को बताया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2019-2020 में 1,014,961 टन ई-कचरा उत्पन्न किया है, जो कि वित्त वर्ष 2018-2019 से 32 प्रतिशत अधिक है। कंपनियों द्वारा फोन के साथ चार्जर ना देने से इसका प्रोडक्शन कम हुआ है, जो कहीं ना कहीं ई-कचरे को कम करने में मददगार है।
आखिर किसको मिल रहा है फायदा?
बदलाव के बाद चार्जर के प्रोडक्शन में कमी तो आई है, लेकिन यूजर्स अपनी जरुरत के हिसाब से चार्जर खरीदते हैं, जो अलग पैकेजिंग के साथ आता है। कहीं ना कहीं इससे भी प्रदूषकों का उत्सर्जन बढ़ रहा है, जो पर्यावरण को प्रभावित करेगा। हालांकि, कंपनियों का दावा है कि चार्जर हटाने से कार्बन फुटप्रिंट के साथ ई-कचरे में भी कमी आती है, लेकिन एक्सपर्ट्स की मानें तो इस बदलाव से सबसे ज्यादा फायदा कंपनियों को हुआ है।