महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से पारित, अब आगे क्या?
क्या है खबर?
संसद के विशेष सत्र के चौथे दिन महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा से भी पारित हो गया। इसके पक्ष में 215 वोट पड़े। विरोध में कोई वोट नहीं पड़ा।
इस विधेयक का संसद के दोनों सदनों में सत्तापक्ष के अलावा लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने भी समर्थन किया।
पिछले 27 सालों से संसद में लंबित इस विधेयक के पारित होने को ऐतिहासिक क्षण माना जा रहा है।
आइए जानते हैं कि महिला आरक्षण के लिए अब आगे की राह क्या है।
प्रावधान
सबसे पहले जानें विधेयक में क्या हैं प्रावधान
विधेयक में राज्य विधानसभाओं, दिल्ली की विधानसभा और लोकसभा में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई हैं।
इन 33 प्रतिशत में से एक तिहाई सीटें SC/ST महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी, यानी SC/ST महिलाओं को आरक्षण के भीतर ही आरक्षण मिलेगा। OBC महिलाओं को ऐसा कोई लाभ नहीं मिलेगा।
विधेयक इसके कानून बनने के बाद होने वाले पहले परिसीमन के बाद लागू होगा।
अभी ये आरक्षण 15 साल के लिए है, जिसे संसद आगे बढ़ा सकेगी।
राज्यसभा
विधेयक के राज्यसभा से पारित होने के बाद अब क्या होगा?
राज्यसभा से पारित होने के बाद विधेयक को अब मंजूरी के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा जाएगा।
संसद के दोनों सदनों में विधेयक के पारित होने के बाद उसे कानून (अधिनियम) बनाने के लिए राष्ट्रपति की संवैधानिक मंजूरी की आवश्यकता होती है।
राष्ट्रपति के विधेयक पर हस्ताक्षर करने के बाद ये विधेयक अधिनियम यानि कानून बन जाएगा। हालांकि, ये अभी लागू नहीं होगा और महिलाओं को आरक्षण के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा।
कब
महिलाओं को कब मिलेगा आरक्षण का लाभ?
विधेयक के अनुसार, महिला आरक्षण 2026 के बाद जो परिसीमन होगा, उसके बाद लागू होगा। परिसीमन से पहले जनगणना करानी होगी और अगली जनगणना 2031 में होनी है।
हालांकि, 2021 की पिछली जनगणना लंबित है और सरकार ने कहा है कि वो 2024 के बाद जनगणना और फिर परिसीमन का काम शुरू कर देगी।
परिसीमन में 2-3 साल लगेंगे, ऐसे में महिला आरक्षण 2029 चुनाव तक लागू हो पाएगा। विपक्ष ने इसके और भी लेट होने की बात कही है।
मांग
विपक्ष ने की OBC महिलाओं को आरक्षण देने और इसे तुरंत लागू करने की मांग
संसद में विपक्ष पार्टियों ने इस विधेयक का समर्थन करते हुए सरकार से 2 प्रमुख संशोधन करने की मांग की।
पहली मांग थी कि विधेयक में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की महिलाओं को भी अलग से आरक्षण मिलना चाहिए।
विपक्ष की दूसरी मांग थी कि आरक्षण को जनगणना और परिसीमन तक न रोककर तुरंत प्रभाव से लागू किया जाए। विपक्ष ने कहा कि इसे तत्काल प्रभाव से लागू न करना महिलाओं के साथ अन्याय होगा।
सरकार ने मांगें ठुकरा दीं।
स्थिति
अभी लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की क्या स्थिति?
फिलहाल 542 सदस्यों वाली लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं, वहीं राज्यसभा के कुल 224 सदस्यों में से 24 महिलाएं हैं।
दिसंबर, 2022 में जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक, देश के 19 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की संख्या 10 प्रतिशत से भी कम है।
छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा (14.44 प्रतिशत) महिला विधायक हैं। इसके बाद पश्चिम बंगाल में 13.70 प्रतिशत विधायक महिलाएं हैं।
भारत में केवल पश्चिम बंगाल ही ऐसा राज्य है, जिसकी मुख्यमंत्री एक महिला है।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी महिला आरक्षण की कट्टर समर्थक रही हैं।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार में 2010 में यह विधेयक पूर्ण बहुमत के साथ राज्यसभा में पारित भी हो गया था।
हालांकि, UPA सरकार ने इस विधेयक को लोकसभा में पेश नहीं किया। इसके बाद 2014 में लोकसभा भंग होने के कारण विधेयक लटका ही रह गया और यह विधेयक कानून का रूप नहीं ले सका।