
निजी और राजनीतिक जीवन से जुड़ी इन घटनाओं को लेकर चर्चा में रहे मुलायम सिंह यादव
क्या है खबर?
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव का लंबी बीमारी के बाद सोमवार को 82 साल की उम्र में निधन हो गया।
उनके निधन से राजनीतिक गलियारों में शोक की लहर है। पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह ने अपने जीवन में कई ऐसे अच्छे या बुरे कदम उठाए थे, जिन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
ऐसे में आइए उनसे जुड़े अहम किस्सों पर नजर डालते हैं।
#1
जब कवि सम्मेलन में दरोगा को दी थी पटखनी
यह बात मुलायम सिंह के पहलवानी के शिखर पर होने के दिनों की है।
26 जून, 1960 को करहल के जैन इंटर कॉलेज में आयोजित कवि सम्मलेन में कवि दामोदर स्वरूप विद्रोही 'दिल्ली की गद्दी सावधान' कविता पढ़ रहे थे।
यह कविता सरकार के खिलाफ थी तो वहां तैनात एक दरोगा (इंस्पेक्टर) ने उन्हें रोकते हुए माइक छीन लिया।
उस दौरान वहां बैठे मुलायम सिंह ने मंच पर पहुंचकर 10 सेकेंड में दरोगा को उठाकर मंच पर गिरा दिया।
#2
हमला होने पर उड़वाई थी अपनी ही मौत की अफवाह
मुलायम सिंह 4 मार्च, 1984 को इटावा और मैनपुरी में रैली के बाद मैनपुरी में अपने दोस्त से मिलकर लौट रहे थे तो कुछ लोगों ने उनकी कार पर गोलीबारी कर दी।
करीब आधे घंटे आरोपियों और पुलिसवालों के बीच गोलीबारी चलती रही। उस दौरान चालक का ध्यान भटकने से उनकी गाड़ी सूखे नाले में गिर गई।
उसी समय मुलायम सिंह ने सबकी जान बचाने के लिए अपने समर्थकों से अपनी मौत की अफवाह फैलाने को बोल दिया था।
सफलता
समर्थकों के चिल्लाने पर आरोपियों ने बंद कर दी थी फायरिंग
मुलायम सिंह के आदेश पर समर्थकों ने जोर-जोर से 'नेताजी मर गए, उन्हें गोली लग गई' चिल्लाना शुरू कर दिया।
इससे हमलावरों को लगा कि मुलायम सिंह हकीकत में मर गए। ऐसे में उन्हें मरा समझकर आरोपियों ने गोलीबारी बंद कर दी।
इसके बाद वह भागने लगे तो पुलिस की गोली लगने से एक आरोपी छोटेलाल की मौत हो गई, जबकि दूसर आरोपी नेत्रपाल घायल हो गया।
उसके बाद सुरक्षाकर्मी मुलायम सिंह को जीप में कुर्रा पुलिस थाने ले गए।
#3
पुलिस को दिया था कारसेवकों पर गोलियां चलाने का आदेश
1989 में लोकदल की सरकार में मुलायम सिंह को पहली बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था। उस दौरान देश में मंडल-कमंडल की लड़ाई चल रही थी।
1990 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराने की योजना बनाई।
30 अक्टूबर, 1990 को कारसेवकों की बेकाबू भीड़ पुलिस बैरिकेडिंग तोड़ मस्जिद की ओर बढ़ गई। उस दौरान मुलायम सिंह यादव ने सख्त फैसला लेते हुए पुलिस को गोली चलाने का आदेश दे दिया।
मौत
पुलिस की फायरिंग में हुई थी दर्जनों कारसेवकों की मौत
पुलिस की फायरिंग में छह कारसेवकों की मौत हो गई थी। उसके दो दिन बाद हजारों कारसेवक हनुमान गढ़ी के करीब पहुंच गए। उस दौरान भी मुलायम सिंह के आदेश पर पुलिस को फायरिंग पड़ी थी। उसमें एक दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई थी।
उस घटना के बाद मुलायम सिंह को हिंदू विरोधी बना दिया गया। विरोधियों ने उन्हें 'मुल्ला मुलायम' का नाम दे दिया, लेकिन उसके बाद भी वह अपने फैसले के पक्ष में खड़े रहे।
#4
राममनोहर लोहिया की 36 साल पुरानी योजना के दम पर जीता था चुनाव
मुलायम सिंह शुरू से ही राममनोहर लोहिया से प्रभावित थे। 1956 में लोहिया और भीमराव अंबेडकर समझौते के तहत एकसाथ आने की योजना बना रहे थे, लेकिन अंबेडकर के निधन से योजना सफल नहीं हो पाई।
ऐसे में मुलायम सिंह ने इस योजना को 1992 के चुनाव में लागू करते हुए दलित नेता कांशीराम के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया।
इसके दम पर सपा-बसपा गठबंधन को 422 में से 176 सीटें मिली और भाजपा बहुमत से दूर हो गई।
#5
बाबरी मस्जिद विध्वंस के आरोपी कल्याण सिंह का समर्थन किया
साल 2009 में भाजपा के दिग्गज नेता कल्याण सिंह ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था।
मुलायम सिंह ने हवा का रुख भांपते हुए उनके समर्थन में जनसभा कर दी। इस फैसले से पार्टी में बगावत हो गई और आजम खान ने उन पर जमकर निशाना साधा था।
हालांकि, बाद में कल्याण सिंह चुनाव जीत गए। कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद विध्वंस के वक्त मुख्यमंत्री थे और अवमानना मामले में सजा काट चुके थे।
बीमारी
लगभग दो साल से बीमार चल रहे थे मुलायम सिंह
बता दें कि मुलायम लगभग दो साल से बीमार चल रहे थे। परेशानी बढ़ने पर उन्हें अक्सर अस्पताल में भर्ती कराया जाता था।
पहले भी कई बार उन्हें मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया जा चुका था। उन्हें जून और जुलाई में भी अस्पताल में भर्ती कराया था, लेकिन जांच के बाद छुट्टी दे दी गई।
इसी तरह उन्हें जुलाई, 2021 में पेट के संक्रमण और अगस्त, 2020 में पेशाब नली में संक्रमण के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था।