महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव: 5 साल में कितनी बदली सियासत? मिलीं 3 सरकारें और मुख्यमंत्री
चुनाव आयोग ने आज महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। वहां 288 विधानसभा सीटों पर 20 नवंबर को एक ही चरण में मतदान होगा, जबकि मतगणना 23 नवंबर को होगी। पिछले 5 सालों में राज्य की सियासत में कई बड़े उठापटक हुए। इसके कारण राज्य में 3 सरकारें बनने के साथ 3 मुख्यमंत्री भी मिले। वर्तमान में वहां महायुति गठबंधन सरकार है, जिसमें भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) सहित कुल 11 दल शामिल हैं।
कैसा है महाराष्ट्र का पूरा चुनावी कार्यक्रम?
चुनाव आयोग के अनुसार, महाराष्ट्र में 22 अक्टूबर को चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 29 अक्टूबर होगी। उम्मीदवार 4 नवंबर तक अपना नामांकन वापस ले सकेंगे। उसके बाद 20 नवंबर (बुधवार) को मतदान होगा। राज्य में इस बार कुल 9.63 करोड़ मतदाता होंगे, जिनमें 4.97 करोड़ पुरुष और 4.66 करोड़ महिला मतदाता होंगी। 20.93 लाख पहली बार मतदान करेंगे। राज्य में कुल 1,00,186 मतदान केंद्र बनाए जाएंगे।
विधानसभा चुनाव 2019 में क्या हुआ था?
महाराष्ट्र में 24 अक्टूबर, 2019 को आए विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा (105) और शिवसेना (56) के गठबंधन ने कुल 161 सीटों पर कब्जा जमाया था। हालांकि, कुछ दिन बाद इस गठबंधन में मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान शुरू हो गई, जो करीब एक महीने तक चलती रही। इसके बाद 23 नवंबर की सुबह भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना के बिना ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) नेता अजित पवार उपमुख्यमंत्री बना दिया।
5 दिन बाद ही गिरी फडणवीस सरकार, उद्धव बने मुख्यमंत्री
फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद NCP प्रमुख शरद पवार ने महाविकास अघाड़ी (MVA) की नींव रख दी। ऐसे में महज 5 दिन में फडणवीस सरकार गिर गई। इसके बाद 25 साल साथ रहने के बाद भाजपा और शिवसेना गठबंधन टूट गया। शिवसेना अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और NCP के साथ चली गई, जिसके परिणाम स्वरूप उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। इस दौरान भाजपा को कोई नया साझेदार नहीं मिला और उद्धव मुख्यमंत्री बने रहे।
MVA सरकार में हुई बगावत
उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के ढाई साल बाद यानी जून 2022 में महाराष्ट्र में बगावत शुरू हुई। MLC चुनाव में शिवसेना के 12 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी। इसके बाद उद्धव सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे 16 विधायकों के साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी पहुंच गए। 20 जून को शिंदे ने 40 विधायकों के समर्थन का दावा कर दिया। इस पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उद्धव को 30 जून बहुमत साबित करने का नोटिस जारी कर दिया।
उद्धव ने दिया इस्तीफा और शिंदे बने मुख्यमंत्री
राज्यपाल के आदेश पर 29 जून, 2022 को ही उद्धव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद भाजपा को शिवसेना (शिंदे) के तौर पर नया साझेदार मिल गया। ऐसे में भाजपा ने फडणवीस के मुख्यमंत्री पद की कुर्बानी देकर 30 जून, 2022 को मुखयमंत्री पद की शपथ दिला दी और फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके बाद के ढाई साल शिंदे ही सरकार के मुखिया रहे। भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर अपनी सरकार को स्थिर कर लिया।
शिंदे ने क्यों की थी बगावत?
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, भाजपा से अलग होने के बाद शिवसेना विधायक दल की बैठक में शिंदे मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे, लेकिन कांग्रेस और NCP की आपत्ति के बाद उद्धव खुद मुख्यमंत्री बन गए। इसी टीस ने शिंदे को बागी बनाया।
शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद NCP में हुई बगावत
शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद सबकुछ ठीक था। भाजपा और निर्दलीयों सहित कुल 178 विधायक सरकार के पक्ष में थे। उसी दौरान NCP में बगावत हो गई। एक साल बाद जुलाई 2023 में अजित पवार 40 विधायकों के साथ बागी हो गए और महायुति सरकार में शामिल हो गए। उनके इस कदम के लिए सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दे दिया गया। उसके बाद 288 सदस्यों की विधानसभा में महायुति के सदस्यों की संख्या 218 पहुंच गई।
अधिकार की लड़ाई में बदली दलों की पहचान
शिवसेना और NCP में बगावत की लड़ाई चुनाव आयोग और कोर्ट तक पहुंच गई। पार्टी के दोनों धड़े चुनाव चिन्ह के लिए लड़ रहे थे। उसके बाद चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी का पुराना चुनाव चिन्ह बागियों को दे दिया और दूसरे गुटों को दूसरे चिन्ह थमा दिए। इसके बाद राज्य में 2 नए दल शिवसेना (उद्धव) और NCP (शरदचंद्र पवार) का उदय हो गया।उद्धव को नया चुनाव चिह्न मशाल और शरद पवार को तुरही मिला है।
लोकसभा में उद्धव और शरद को मिला समर्थन
लोकसभा चुनाव में शिवसेना (उद्धव) को 9 सीटें मिलीं और शरद पवार वाल NCP के 8 सांसद तुरही चुनाव चिह्न के साथ जीते। धनुष-बाण होने के बावजूद शिवसेना (शिंदे) को 7 और घड़ी के साथ अजित गुट को केवल एक सीट मिली। भाजपा को 14 सीटों के नुकसान के साथ केवल 9 सीट जीत पाई और कांग्रेस 12 सीटों के इजाफे के साथ 13 सीटें जीतने में सफल रही। ऐसे में यह विधानसभा चुनाव महायुति सरकार के लिए चुनौती होगी।