राम मंदिर आंदोलन, जिन्ना की तारीफ और मोदी का विरोध, आडवाणी के सियासी सफर की हाईलाइट
क्या है खबर?
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लालकृष्ण आडवाणी को लोकसभा चुनावों के लिए टिकट नहीं दिया है।
पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनवों के लिए आडवाणी की जगह अमित शाह को गांधीनगर से चुनावी मैदान में उतारा है।
कुछ लोग कह रहे हैं कि यह आडवाणी युग का अंत है और अब आडवाणी की जगह अमित शाह ने ले ली है।
वहीं कुछ लोग इसे भाजपा में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी के आगमन के तौर पर देख रहे हैं।
आडवाणी
भाजपा को शीर्ष पर पहुंचाने वाले आडवाणी
लालकृष्ण आडवाणी ने हिंदुत्व की राजनीति को लेकर भाजपा को नई पहचान दी थी। उन्होंने महज दो सीट जीतने वाली पार्टी को 1998 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखाया था।
एक जमाना ऐसा था जब देशभर में उनके नाम के चर्चे थे और उन्हें भारत का अगला प्रधानमंत्री बताया जाता था, लेकिन 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद आडवाणी का प्रधानमंत्री की गद्दी पर बैठने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया।
जानकारी
ढ़लती उम्र आई आडवाणी के आड़े
गांधीनगर से छह बार सांसद रह चुके आडवाणी 91 साल के हो चुके हैं। उनकी उम्र का यह आंकड़ा ही उनको सीट मिलने में आड़े आया है। पार्टी ने 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं को टिकट नहीं देने के संकेत दिए थे।
जोड़ी
अटल-आडवाणी की जोड़ी
आडवाणी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भाजपा को नई पहचान देने वाले नेताओं में शामिल रहे।
आडवाणी ने 1992 में अयोध्या रथ यात्रा निकालकर भाजपा के लिए नई राजनीतिक जमीन तैयार की थी।
एक समय ऐसा था जब अटल-आडवाणी की जोड़ी देश की राजनीति को चाल तय करती थी।
कहा जाता है कि एक समय था जब आडवाणी प्रधानमंत्री की दावेदारी के लिए खुद को आगे कर सकते थे, लेकिन उन्होंने तब अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सुझाया।
जिन्ना की तारीफ
जिन्ना की तारीफ करना पड़ा महंगा
आडवाणी की टिकट भले ही अब कटी है, लेकिन उनकी राजनीति का ग्राफ 2005 में नीचे गिरना शुरू हो गया था।
2004 लोकसभा चुनावों में भाजपा की हार और 2005 में पाकिस्तान जाकर मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ उन्हें महंगी पड़ गई।
कट्टर हिंदू की छवि रखने वाले आडवाणी ने 2005 में आडवाणी ने पाकिस्तान में जिन्ना की मजार पर जाकर उन्हें 'सेकुलर' और 'हिंदू मुस्लिम एकता का दूत' बताया था।
उनका यह बयान उनकी छवि के एकदम विपरित था।
मोदी विरोध
मोदी का विरोध पड़ा भारी
ऐसी ही स्थिति एक बार फिर 2014 लोकसभा चुनावों से पहले आई।
प्रधानमंत्री पद पर नजर लगाए बैठे आडवाणी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने के इच्छुक नहीं थे।
उन्होंने मोदी के नाम का विरोध करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री पद के दावेदार का नाम चुनाव बाद घोषित होना चाहिए।
जब पार्टी ने उनकी नहीं सुनी तो उन्होंने विरोध करते हुए इस्तीफा भी दे दिया था। हालांकि, बाद में पार्टी ने उन्हें मना लिया।
सियासी सफर
कराची में जन्मे आडवाणी का सियासी सफर
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर, 1927 को कराची (पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के सहायक के तौर जनसंघ में राजनीति का कामकाज देखना शुरू किया था।
1977 में जनता पार्टी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने थे। 1989 में उन्होंने दिल्ली से पहली बार लोकसभा चुनाव जीता।
दो साल बाद 1991 में वे गांधीनगर से सासंद बने। इसके बाद वे 1998,1999, 2004, 2009, और 2014 में गांधीनगर से जीतकर लोकसभा सासंद बने।