कैसा रहा मुलायम सिंह यादव का पहलवानी के अखाड़े से मुख्यमंत्री बनने तक का सफर?
गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल की क्रिटिकल केयर यूनिट (CCU) में कई दिनों से भर्ती उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) संस्थापक मुलायम सिंह यादव का सोमवार को 82 साल की उम्र में निधन हो गया। पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह ने अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री पद का सफर तय किया था। ऐसे में आइए जानते हैं कि उन्होंने कैसे तय किया था यह सफर।
सैफई के किसान परिवार में हुआ था मुलायम सिंह का जन्म
मुलायम सिंह का जन्म 22 नवम्बर, 1939 को सैफई गांव में किसान परिवार में हुआ था। वह पांच भाई-बहनों में रतन सिंह यादव से छोटे और अभयराम, शिवपाल, राजपाल और कमला देवी से बड़े थे। उन्होंने इटावा से स्नातक और आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया था। इसी तरह शिकोहाबाद से बैचलर ऑफ टीचिंग की डिग्री लेकर 1965 में करहल इंटर कालेज में प्रवक्ता की नौकरी की, लेकिन राजनीति में सक्रिय होने पर इससे इस्तीफा दे दिया था।
पहलवानी के शौक ने मुलायम सिंह के लिए बनाया राजनीति का रास्ता
मुलायम सिंह को बचपन से ही पहलवानी का शौक था और वह राज्य भर में आयोजित होने वाली कुश्ती प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते थे। साल 1965 में वह मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहे थे। इसमें उन्होंने कई दिग्गज पहलवानों को शिकस्त दी थी। उस दौरान वहां मौजूद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी नेता चौधरी नत्थूसिंह भी मौजूद थे और मुलायम सिंह की दिलेरी से काफी प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने उन्हें अपना शागिर्द बना लिया।
मुलायम सिंह ने कैसे किया था राजनीतिक सफर का आगाज?
चौधरी नत्थूसिंह के हाथ रखते ही मुलायम सिंह ने उन्हें अपना राजनीतिक गुरू बना लिया। दोनों के बीच संबंध इतने अच्छे रहे कि नत्थूसिंह ने 1967 के विधानसभा चुनाव में अपनी परम्परागत सीट जसवन्त नगर से टिकट देकर मुलायम सिंह को राजनीति में प्रवेश करा दिया। इसके लिए नत्थूसिंह ने पार्टी संस्थापक राममनोहर लोहिया को भी मनाया था। इस चुनाव के बाद मुलायम सिंह ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सत्ता के शिखर की ओर बढ़ते गए।
ग्रामीणों से सहयोग और समर्थन से पहली बार में ही हासिल की जीत
1967 के पहले विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह के पास प्रचार के लिए वाहन और पैसे नहीं थे। ऐसे में उन्होंने साइकिल पर ही गांव-गांव घूमकर प्रचार दिया। उनके जज्बे ने ग्रामीणों को आकर्षित किया और उन्होंने मुलायम सिंह का समर्थन करने का निर्णय किया। इसके अलावा ग्रमीणों ने प्रचार के लिए वाहन और ईंधन का खर्च जुटाने के लिए एक समय का खाना छोड़कर पैसा जुटाया था। इसके चलते मुलायम सिंह पहले ही चुनाव में विधायक बन गए।
मुलायम सिंह यादव ने बदली थी कई पार्टियां
1967 में लोहिया के निधन के बाद पार्टी कमजोर पड़ने लगी तो मुलायम सिंह ने 1968 में चौधरी चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल का दामन थाम लिया। इसके बाद 1969 में भारतीय क्रांति दल और सोशलिस्ट पार्टी के एक होने पर वह लोक दल में आ गए। साल 1987 में उन्होंने क्रांतिकारी मोर्चा बनाया, लेकिन चौधरी चरण सिंह से नाराज होकर वह जनता दल (समाजवादी) में चले गए। साल 1992 में उन्होंने समाजवादी पार्टी का गठन कर दिया।
मुलायम सिंह ने विधायक के रूप में बिताए 25 साल
अपने राजनीतिक सफर में मुलायम सिंह यादव ने आठ बार विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक के रूप में 25 साल बिताए थे। उन्होंने 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी। इसी तरह वह 1982 से 1985 तक विधान परिषद के सदस्य रहे। इस दौरान वह नेता प्रतिपक्ष भी रहे। इसके अलावा वह 1985 से 1987 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में राजनीति में सक्रिय रहे थे।
केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में संभाला था रक्षा मंत्रालय
मुलायम सिंह ने 1996 में केंद्रीय राजनीति में पैर रखा था। वह लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री बने थे। उसके बाद 1998, 1999, 2004, 2007, 2009, 2014 में भी लोकसभा पहुंचे थे।
तीन बार रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री
मुलायम सिंह ने राजनीति में आने के 22 साल राज्य की सत्ता का शिखर हासिल किया था। वह 1989 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और 1991 तक पद संभाला। उसके बाद उन्होंने 1993 से 1995 और 2003 से 2007 तक भी राज्य के मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी। वह 1980 में लोकदल अध्यक्ष और 1985-87 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष पद पर भी रहे थे। वह साल 1977 में पहली बार राज्य मंत्री बने थे।
एक समय परिवारवाद के घोर विरोधी थे मुलायम सिंह
एक समय था जब मुलायम सिंह परिवारवाद को घोर विरोधी रहे थे। उन्होंने इंदिरा गांधी और अपने गुरु चौधरी चरण पर परिवारवादी होने का आरोप लगाकर उनसे नाता तोड़ लिया था। हालांकि, सपा के गठन के बाद उनकी विचारधारा बदल गई और वह खुद परिवारवाद की शिकंजे में कसते चले गए। उनके परिवार के कई लोग कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री, लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, विधानपरिषद, जिला परिषद सदस्य जैसे जमाम राजनीतिक पदों पर रहे। इसको लेकर लोगों ने उनकी आलोचना भी की।
विवाद के बाद बेटे अखिलेश यादव को सौंपी पार्टी की कमान
सपा के गठन के बाद मुलायम सिंह 4 अक्टूबर, 1992 से एक जनवरी, 2017 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे। साल 2002 में पार्टी में बड़ी जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2017 में पार्टी पर अधिकार को लेकर पिता और पुत्र में विवाद हो गया था। अखिलेश ने बहुमत के आधार पर चुनाव आयोग से पार्टी का चुनाव चिन्ह हासिल कर लिया था। उसके बाद से ही मुलायम सिंह राजनीति से दूर हो गए।