CAA-NRC विरोधी प्रदर्शनों में कैसे बड़े नेता बनकर उभरे चंद्रशेखर आजाद?
आंदोलनों से नेताओं का जन्म होना कोई नई बात नहीं है और आपातकाल के दौर से लेकर अन्ना आंदोलन तक सभी आंदोलन इसका उदाहरण पेश करते हैं। इसी कारण ये सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या मौजूदा नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों, जो अब आंदोलन का रूप ले चुके हैं, से भी कोई बड़ा नेता निकलेगा। अगर गौर करें तो हमें चंद्रशेखर आजाद के रूप में एक नेता उभरता हुआ दिखा भी रहा है। ऐसा क्यों, आइए आपको बताते हैं।
2015 में पहली बार चर्चा में आए थे आजाद
चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के घडकौली गांव के रहने वाले हैं। वो सबसे पहले 2015 में अपने गांव के बाहर 'द ग्रेट चमार' का बोर्ड लगाने के लिए चर्चा में आए थे। इससे गांव के दलितों और ठाकुरों में तनाव पैदा हो गया था। आजाद लंबी मूंछे भी रखते हैं। आमतौर पर ऐसी मूंछे उच्च जाति के लोग रखते हैं इसलिए उनकी मूंछों और छवि को उच्च जाति के वर्चस्व को चुनौती की तरह माना जाता है।
2014 में बनाई थी भीम आर्मी
चंद्रशेखर आजाद ने विनय रतन आर्य के साथ मिलकर 2014 में बहुजन संगठन भीम आर्मी की शुरूआत की थी। दलित चिंतक सतीश कुमार के दिमाग की उपज मानी जाने वाली भामी आर्मी को भारत एकता मिशन के नाम से भी जाना जाता है और ये हाशिए पर पड़े दलित लोगों के लिए काम करती है। भीम आर्मी दलित शब्द के उपयोग के खिलाफ है और ये संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के विचारों पर चलती है।
हिंसा भड़काने के आरोप में 15 महीने जेल में रह चुके हैं आजाद
भीम आर्मी 2017 में पहली बार चर्चा में तब आई थी जब सहारनपुर में राजपूतों और दलितों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। हिंसा भड़काने के लिए आजाद को गिरफ्तार किया गया था और वह 15 महीने जेल में रहे थे। उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगाया गया था जो आमतौर पर देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों पर लगाया जाता है। हालांकि, बाद में इसे हटा दिया गया।
नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शनों ने दिया आजाद को शानदार मौका
पिछले साल दिसंबर में संसद से नागरिकता कानून (CAA) पारित होने के बाद इसके और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिंजस (NRC) के खिलाफ देशभर में हुए प्रदर्शनों ने आजाद को एक बड़ा मौका दिया और वो इससे भुनाने से चूके नहीं। पुलिस के कड़े पहरे के बावजूद वो 20 जनवरी को दिल्ली की जामा मस्जिद पर CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शन में पहुंचे और भारतीय संविधान की प्रस्तावना पढ़ी, जिसमें सभी धर्मों के लोगों के बीच बराबरी की बात कही गई है।
मार्च के दौरान दिल्ली पुलिस ने किया आजाद को गिरफ्तार
आजाद के नेतृत्व में भीमा आर्मी ने जामा मस्जिद से जंतर मंतर तक मार्च निकालने की कोशिश भी की। इस दौरान दिल्ली पुलिस ने आजाद को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें चंद दिन पहले ही कोर्ट से जमानत मिली है।
आजाद को कैसे मदद कर रहे हैं CAA विरोधी प्रदर्शन?
दरअसल, मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच CAA-NRC का लेकर गंभीर आशंकाएं हैं और उन्हें डर है कि इनका प्रयोग मुस्लिमों के खिलाफ किया जाएगा। ऐसे में आजाद ने जामा मस्जिद जैसी ऐतिहासिक जगह और अन्य जगहों पर मुस्लिमों के साथ प्रदर्शनों में शामिल होकर उनका भरोसा जीतने का काम किया है। दिल्ली के शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों में उनको लेकर उत्साह को देखा जा सकता है और वहां उनका हीरो की तरह स्वागत हुआ।
दलित-मुस्लिम गठबंधन बनाने में कामयाब हो रहे हैं आजाद
इन सबके अलावा मायावती से अलग राजनीतिक विकल्प तलाश रहे दलितों में आजाद पहले से ही लोकप्रिय हैं। ऐसे में अगर वो CAA-NRC प्रदर्शनों का प्रयोग कर दलित-मुस्लिम गठबंधन बनाने में कामयाब रहते हैं तो ये राजनीतिक तौर पर एक बेहद सफल फॉर्मूला साबित हो सकता है। मायावती समेत तमाम बड़े नेता दलित-मुस्लिम वोट एकजुट करने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन अभी तक ज्यादातर इसमें असफल रहे हैं। अब आजाद इसमें कामयाब होते दिख रहे हैं!