कांग्रेस का असम के मुख्यमंत्री को प्रस्ताव- भाजपा छोड़ उनके साथ बनाएं नागरिकता कानून विरोधी सरकार
क्या है खबर?
नागरिकता कानून के खिलाफ असम सहित देशभर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों के बीच कांग्रेस ने असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनेवाल को भाजपा छोड़ने का प्रस्ताव दिया है।
असम विधानसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता देबब्रत सैकिया ने शनिवार को सोनोवाल को अपने 30 विधायकों के साथ भाजपा छोड़ने को कहा।
उन्होंने कहा कि अगर वो ऐसा करते हैं तो कांग्रेस उन्हें समर्थन देकर फिर से एक 'नागरिकता कानून विरोधी' सरकार का मुख्यमंत्री बनाएगी।
बयान
सैकिया ने सोनोवाल को दिलाई असम आंदोलन की याद
सैकिया ने कहा कि अगर सोनोवाल असम आंदोलन में मारे गए 860 लोगों के बलिदान का सम्मान करते हैं तो उन्हें भाजपा सरकार से बाहर आना चाहिए।
उन्होंने कहा, "सोनोवाल और वो लोग जो ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) की पृष्ठभूमि से आते हैं उन्हें राज्य के हित में स्वतंत्र विधायक के रूप में सरकार से बाहर आना चाहिए। कांग्रेस उन्हें समर्थन देने को तैयार है। सोनोवाल नागरिकता कानून को रोकने के लिए वैकल्पिक सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं।"
प्रस्ताव
"सोनोवाल ने किया था असम समझौते को लागू करने का वादा"
सैकिया ने कहा, "भाजपा और उसकी सहयोगी असम गण परिषद अपने चुनावी वादे पूरा करने में नाकाम रही है। सोनोवाल ने भाजपा के सत्ता में आने पर असम समझौते को लागू करने का वादा किया था। अब केंद्र सरकार असम समझौते का पूरी तरह से उल्लंघन कर रही है। ऐसे में सोनोवाल को भाजपा छोड़ देनी चाहिए। अगर वो 30 विधायकों के साथ बाहर आते हैं तो हम उन्हें नागरिकता कानून और भाजपा विरोधी सरकार बनाने में मदद करेंगे।"
बयान
जो भी असम से प्यार करते हैं भाजपा से बाहर आ जाएं- सैकिया
सैकिया ने कहा, "नागरिकता कानून का समर्थन करने के लिए सोनोवाल को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। जो भी विधायक और मंत्री असम को प्यार करते हुए उन्हें भाजपा छोड़ देनी चाहिए और असम के लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए। इसलिए मैं ये प्रस्ताव आगे रख रहा हूं।"
केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि असम के लोगों की भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए सरकार ने उन पर नागरिकता कानून को थोपा है।
विरोध
असम में इसलिए हो रहा है नागरिकता कानून का विरोध
असम में नागरिकता कानून के विरोध का कारण बाकी देश से अलग है।
दरअसल, नागरिकता कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार के कारण भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी।
चूंकि असम में बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू आए हैं, ऐसे में उन्हें नागरिकता मिलने पर असम के लोगों को इससे अपनी भाषाई और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ने का डर है।
जानकारी
असम समझौते का उल्लंघन करता है नागरिकता कानून
चूंकि नागरिकता कानून में 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है, ऐसे में ये असम समझौते का उल्लंघन करता है जिसमें मार्च 1971 के बाद असम आने वाले विदेशी नागरिकों को बाहर निकालने की बात कही गई है।
विरोध प्रदर्शन
विरोध प्रदर्शनों का असम के नेताओं पर पड़ा बड़ा असर
नागरिकता कानून के खिलाफ असम में हुए ये प्रदर्शन इतने जबरदस्त रहे हैं कि भाजपा के कई नेताओं और उसकी सहयोगी असम गण परिषद को अपने रूख में बदलाव करना पड़ा है।
संसद में वोटिंग के समय नागरिकता (संशोधन) बिल के समर्थन में वोट देने वाली असम गण परिषद ने मामले में यू-टर्न लेते हुए इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
वहीं उसके और भाजपा के कई नेताओं ने पार्टी भी छोड़ दी है।