अनिवार्य वैक्सीनेशन के पक्ष और विपक्ष में क्या-क्या तर्क दिए जा रहे हैं?
कोरोना वायरस की संभावित लहर के खतरे के बीच केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी ने सभी व्यस्क नागरिकों के लिए वैक्सीनेशन अनिवार्य कर दिया है। इससे पहले कई राज्यों ने सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए वैक्सीनेशन अनिवार्य किया था। दुनिया के कई अन्य देशों में भी इसे अनिवार्य करने पर बहस हो रही है। इस बहस के बीच जानने की कोशिश करते हैं कि अनिवार्य वैक्सीनेसन के पक्ष और विपक्ष में क्या-क्या तर्क दिए जा रहे हैं।
वैक्सीनें जान बचाती हैं
सबसे पहले वैक्सीनेशन के पक्ष में दिए जा रहे तर्क की बात करते हैं। अनिवार्य वैक्सीनेशन के पक्ष में पहला तर्क है कि वैक्सीनें जान बचाती हैं। ये लोगों को गंभीर रूप से बीमार नहीं होने देतीं, जिससे स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव नहीं बढ़ता। कोरोना महामारी के खिलाफ भी वैक्सीनेशन को सबसे अहम हथियारों में शामिल किया जा रहा है। वैक्सीनेशन ने स्मॉलपॉक्स और पोलियो जैसी बीमारियों को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई है।
आजमाएं जा चुके हैं दूसरे सारे तरीके
कई यूरोपीय देशों में वैक्सीनेशन अनिवार्य करने पर इसलिए भी विचार किया जा रहा है क्योंकि उनका कहना है कि महीनों से चल रहे अभियान और उपलब्धता के बावजूद लोग वैक्सीन नहीं ले रहे हैं। यही हाल कई पश्चिमी देशों का हैं। अमेरिका में भी संक्रमण की रफ्तार बढ़ने पर बताया गया कि ज्यादातर ऐसे लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं, जिन्होंने वैक्सीन नहीं ली है। ऐसे में अनिवार्य वैक्सीनेशन के जरिये पूरी आबादी को वैक्सीनेट किया जा सकेगा।
पाबंदियों से छूट मिल सकेगी
कोरोना महामारी की शुरुआत से ही कई देशों में संक्रमण रोकने के लिए कड़े लॉकडाउन लागू किए गए थे। अब जानकारों का कहना है कि जब संक्रमण पर काबू पाने के लिए वैक्सीन जैसे दूसरे उपाय उपलब्ध हो गए हैं तो लॉकडाउन जैसे कड़े कदम नहीं उठाए जाने चाहिए। ये अर्थव्यवस्था के साथ-साथ व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसे में वैक्सीनेशन को अनिवार्य कर पाबंदियों से बचा जा सकता है।
वैक्सीन लेने को तैयार नहीं हैं सब लोग
अब अनिवार्य वैक्सीनेशन के विरोध में दिए जा रहे तर्कों की बात कर लेते हैं। महामारी की शुरुआत के बाद से सरकारों द्वारा लगाई गईं लॉकडाउन और नाइट कर्फ्यू जैसी पाबंदियों का कई देशों में जोरदार विरोध हुआ था और अनिवार्य वैक्सीनेशन के साथ भी ऐसा होने की पूरी संभावना है। जानकारों का कहना है कि लोगों का अपने शरीर पर अधिकार है और सरकारों को इस दिशा में सोच-समझकर कदम उठाने होंगे।
अभी भी कई कदमों पर काम बाकी
BBC से बात करते हुए ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप में सामाजिक विज्ञान शोधकर्ता समांथा वेंड्सलोट्ट ने कहा कि नेता अनिवार्य वैक्सीनेशन को समस्या के त्वरित समाधान के तौर पर देखते हैं, लेकिन उन्हें वैक्सीन तक लोगों की पहुंच आदि के बारे में भी ध्यान देना चाहिए।
उल्टा पड़ सकता है कदम
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सलाहकार डॉ डिकी बुडिमैन कहते हैं कि संकट के समय अनिवार्य की गईं योजनाएं उल्टी पड़ सकती हैं। उनका कहना है कि जब लोगों के बीच अफवाहें या भ्रम होते हैं तो वैक्सीनेशन को अनिवार्य करना उनकी धारणाओं की पुष्टि करने के बराबर होगा। कई जानकार यह भी कहते हैं कि वैक्सीनेशन को अनिवार्य करने से लोगों में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट बढ़ जाएगी और कई इसे निजता के अधिकार से भी जोड़ रहे हैं।
दुनियाभर में वैक्सीनेशन की क्या स्थिति?
कोरोना महामारी के खिलाफ दुनियाभर में वैक्सीनेशन अभियान रफ्तार पकड़ रहा है और अब तक 8.18 अरब खुराकें लगाई जा चुकी हैं। ब्लूमबर्ग के अनुसार, 2.5 अरब खुराकें के साथ चीन वैक्सीनेशन में सबसे आगे है। यहां की 87.5 प्रतिशत आबादी को पहली और 79.3 प्रतिशत आबादी को दोनों खुराकें लगाई जा चुकी हैं। दूसरे स्थान पर मौजूद भारत 1.27 अरब खुराकें लगा चुका है और 65.5 करोड़ खुराकों के साथ यूरोपीय संघ तीसरे स्थान पर है।