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    अमेरिका में तेजी से बढ़ रहे हैं रैबिट फीवर के मामले, क्या होती है यह बीमारी?

    अमेरिका में तेजी से बढ़ रहे हैं रैबिट फीवर के मामले, क्या होती है यह बीमारी?

    लेखन सयाली
    Jan 06, 2025
    06:12 pm

    क्या है खबर?

    अमेरिका में एक खतरनाक बुखार फैल रहा है, जिसका नाम रैबिट फीवर है। 2011 और 2022 के बीच इस बीमारी के मामलों में 56 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।

    जानकारी के मुताबिक, 5 से 9 साल की आयु के बच्चे, वृद्ध पुरुष और अमेरिकी भारतीय या अलास्का के मूल निवासी इस बीमारी से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

    आइए इस लेख में जानते हैं कि रैबिट फीवर क्या होता है और इसके लक्षण क्या हैं।

    रैबिट फीवर

    क्या होता है रैबिट फीवर?

    रैबिट फीवर को तुलारेमिया नाम से भी जाना जाता है, जो कि एक संक्रामक रोग है। यह बुखार फ्रांसीसेला तुलारेन्सिस नामक बैक्टीरिया के कारण फैलता है।

    यह बैक्टीरिया आम तौर पर कीड़ों, मक्खियों या संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने से फैलता है। यह बीमारी दूषित पानी पीने या दूषित धूल में सांस लेने से भी फैल सकती है।

    यह अधिकतर युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोगों को अपना शिकार बनाती है।

    लक्षण

    क्या हैं रैबिट फीवर के लक्षण?

    रैबिट फीवर होने पर विभिन्न प्रकार के लक्षण नजर आ सकते हैं, जो 3 से 15 दिनों के भीतर महसूस होने शुरू होते हैं।

    इस बीमारी के दौरान बुखार आना, ठंड लगना, सिरदर्द होना, मांसपेशियों में दर्द होना, जोड़ों में दर्द होना और भूख न लगना शामिल होता है।

    इसके अलावा, इस बीमारी के दौरान शरीर पर लाल रंग के चकत्ते निकलने लगते हैं, आखें लाल हो जाती हैं और उनसे पीला पदार्थ निकलने लगता है।

    कारण

    क्या है रैबिट फीवर के कारण?

    खरगोश या कीड़ों जैसे संक्रमित जानवरों के सीधे संपर्क में आने से रैबिट फीवर फैलता है। इसके अलावा, डियर मच्छर जैसे कीड़ों के काटने से भी यह बीमारी हो सकती है।

    संक्रमित जानवरों का अधपका मांस खाने और दूषित पानी को खान-पान में शामिल करने से भी यह स्वास्थ्य समस्या उत्पन्न हो सकती है।

    साथ ही, संक्रमित धूल में सांस लेना भी इसके खतरे को बढ़ा सकता है। रैबिट फीवर फैलने का खतरा गर्मी के मौसम में अधिक रहता है।

    इलाज

    किस तरह किया जाता है रैबिट फीवर का इलाज?

    रैबिट फीवर का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं के जरिए किया जा सकता है।

    गंभीर मरीजों को स्ट्रेप्टोमाइसिन और जेंटामाइसिन जैसी दवाइयां दी जाती हैं और हल्के लक्षणों वाले मरीजों को डॉक्सीसाइक्लिन या सिप्रोफ्लोक्सासिन खिलाई जाती हैं।

    इस बीमारी का उपचार आम तौर पर 10-21 दिनों तक चलता है। अगर, बीमारी का निदान जल्द हो जाए, तो इसका इलाज भी जल्दी हो जाता है। चकत्तों और घाव पर भी दवाइयां लगाई जाती हैं।

    जानकारी

    क्या भारत के लोगों को भी है इस बीमारी से खतरा?

    रैबिट फीवर पारिस्थितिक स्थितियों और फ्रांसिसेला टुलारेन्सिस के सीमित संपर्क के कारण भारत में बेहद दुर्लभ है। हालांकि, जो भारतीय अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं, उन्हें अपनी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए।

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