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धीमी गति से बोलने वाले वृद्धों को आती है ज्यादा नींद, अध्य्यन में हुआ खुलासा

धीमी गति से बोलने वाले वृद्धों को आती है ज्यादा नींद, अध्य्यन में हुआ खुलासा

लेखन सयाली
Jul 10, 2025
05:55 pm

क्या है खबर?

वृद्ध लोगों का स्वास्थ्य उनकी उम्र के साथ ही ढलने लगता है। उन्हें चलने से लेकर बोलने तक में कठिनाई महसूस होने लगती है। साथ ही बुढ़ापे के दौरान लोग सुस्ती का शिकार बन जाते हैं। इसी बीच एक नया अध्ययन किया गया है, जिसके जरिए पता चला है कि धीमी गति में बात करने वाले वृद्ध ज्यादा सुस्त हो जाते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे बूढ़े लोगों को अन्य वृद्धों की तुलना में ज्यादा नींद आती है।

अध्ययन

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में हुआ यह अध्ययन

इस अध्ययन को लॉस एंजिल्स स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया था और उनका नेतृत्व डॉक्टर ट्यू टी ते द्वारा किया गया था। इससे पता चला कि मौखिक प्रतिक्रिया समय (VRT) वृद्धों की नींद को प्रभावित कर सकता है। VRT वह समय है, जो किसी व्यक्ति को मौखिक रूप से प्रतिक्रिया देने में लगता है। ज्यादा सोने से बुजुर्गों की संज्ञानात्मक क्षमताएं नकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं, इसी कारण यह अध्ययन करना जरूरी था।

प्रक्रिया

मोबाइल ऐप की मदद लेकर किया गया अध्ययन

शोधकर्ताओं ने अनिद्रा के इतिहास वाले 55 साल और उससे ज्यादा आयु के वयस्कों का अध्ययन किया। प्रतिभागियों ने एक मोबाइल ऐप के जरिए परीक्षण पूरे किए, जिसमें उनकी मौखिक प्रतिक्रियाएं रिकॉर्ड की गईं। शोधकर्ताओं ने VRT और रिकॉर्डिंग शुरू होने और बोले गए पहले शब्द के बीच की देरी को मापा और प्रतिभागियों द्वारा बताई गई नींद की अवधि से इसकी तुलना की। उपकरणों से जांचा गया कि लोग कितनी जल्दी बोलते हैं और उन्हें कितनी नींद आती है।

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नतीजे

क्या रहे इस अध्ययन के नतीजे?

ऐप ने प्रतिभागियों की आवाज की रिकॉर्डिंग के आधार पर उनकी नींद का सफलतापूर्वक अनुमान लगाया। जिन लोगों ने संकेत के बाद बोलना शुरू करने में ज्यादा समय लिया, उन्होंने ज्यादा नींद आने की बात स्वीकार की। अध्ययन में कंप्यूटर मॉडल का भी इस्तेमाल हुआ, जो नींद के विभिन्न स्तरों की सटीक पहचान कर पाया। परिणाम बताते हैं कि VRT नींद पर नजर रखने का एक उपयोगी तरीका हो सकता है, जिसमें ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती है।

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भविष्य

बड़े पैमाने पर की जाएगी और जांच

शोधकर्ता भविष्य में इस अध्ययन को बड़े पैमाने पर करने की योजना बना रहे हैं। वे स्मार्टफोन और टेलीहेल्थ प्लेटफॉर्म जैसी प्रौद्योगिकियों की मदद लेकर जांच करेंगे। भविष्य की जांच यह पता लगाने में मदद करेगी कि आवाज के जरिए संज्ञानात्मक गिरावट के लक्षणों सामने आते हैं या नहीं। डॉ ट्यू ने कहा, "यह अध्ययन दर्शाता है कि कोई व्यक्ति कितनी जल्दी बोलता है जैसी साधारण बात भी उसकी सतर्कता के स्तर के बारे में बहुत कुछ बता सकती है।"

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