हरियाली तीज: विवाहित महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है यह त्योहार, जानिए इसका इतिहास और महत्व
क्या है खबर?
हर साल हरियाली तीज पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। इस त्योहार का जश्न भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
इस मौके पर सुहागन महिलाएं आनंद और सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करने के लिए शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।
अगर आप अपने प्रियजनों के साथ हरियाली तीज मना रहे हैं तो आइए आज हम आपको इस त्योहार का इतिहास, महत्व और इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें बताते हैं।
तिथि
हरियाली तीज कब है?
हरियाली तीज का त्योहार सावन के महीने में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन आता है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, इस साल हरियाली तीज 19 अगस्त को है।
इसकी तृतीया तिथि 18 अगस्त को रात 8:01 बजे शुरू होगी और 19 अगस्त को रात 10:19 बजे समाप्त होगी।
इसके अतिरिक्त हरियाली तीज हरतालिका तीज से एक महीने पहले आती है, जो इस साल 18 सितंबर को मनाई जाएगी।
इतिहास और महत्व
इस त्योहार का इतिहास और महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, यह वह दिन है जब देवी पार्वती को 107 जन्मों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
यह त्योहार सुहागन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में सुहागन हिंदू महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत (बिना पानी के उपवास) रखकर और अपने पतियों की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करके हरियाली तीज मनाती हैं।
शुभ चीजें
इस त्योहार पर क्या-क्या करना शुभ माना जाता है?
हरियाली तीज के अवसर पर हिंदू महिलाएं भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं।
इस दिन सुहागन महिलाओं का अपने हाथों पर मेहंदी लगाना, हरे या लाल रंग के कपड़े पहनना, श्रृंगार करना और हरे रंग की चूड़ियां पहनना शुभ माना जाता है।
इस अवसर कई जगहों पर तीज का मेला भी लगता है। इस दिन विवाहित और अविवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रख सकती हैं।
यहां जानिए हरियाली तीज पर बनाए जाने वाले पारंपरिक मीठे व्यंजनों की रेसिपी।
गलतियां
व्रत के दौरान भूल से भी नहीं करनी चाहिए ये गलतियां
व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए सफेद और काले वस्त्रों का उपयोग करना वर्जित होता है। इसका कारण है कि ये रंग अशुभ माने जाते हैं, इसलिए इनका उपयोग करनी की गलती न करें।
हिंदू धर्म के मुताबिक, इस त्योहार के दौरान व्रत रखने वाली महिला को मन, कर्म और वचन से शुद्ध होना चाहिए अर्थात किसी के बारे में बुरा न सोचें, गलत कार्य न करें और किसी के प्रति गलत भाषा का प्रयोग न करें।