हरियाली तीज कब है? जानिए यह त्योहार हरतालिका तीज से कैसे है अलग
हरियाली तीज एक हिंदू त्योहार है, जो सावन महीने में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन मनाया जाता है। इस बार यह 19 अगस्त को है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह वह दिन है जब भगवान शिव की तपस्या में 107 जन्म बिताने के बाद देवी पार्वती का शिव से मिलन हुआ। अपने 108वें जन्म में देवी शिव को पा सकीं और उन्हें 'तीज माता' के नाम से भी जाना जाने लगा। आइए आज त्योहार से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें जानते हैं।
सुहागन महिलाओं से जुड़ा है यह त्योहार
हरियाली तीज सुहागन महिलाओं से जुड़ा त्योहार है। इस दिन सुहागन महिलाएं श्रृंगार करके माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं और व्रत रखती हैं ताकि उनको अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हो। हरियाली तीज के दिन हरे रंग की चूड़ियों और मेहंदी जैसी चीजों को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जिनका सुहागन महिलाएं बहुत ध्यान रखती हैं। इसका कारण है कि इन्हें उनके पति की दीर्घायु और उनके सेहतमंद और खुशहाल होने का प्रतीक माना जाता है।
3 प्रकार की तीज सुहागन महिलाओं के लिए होती है महत्वपूर्ण
सावन और भाद्रपद के महीनों से जुड़े कुल 3 मुख्य तीज त्योहार हैं, जिनमें हरियाली तीज (19 अगस्त), हरतालिका तीज (18 सितंबर) और कजरी तीज (2 सितंबर) शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक तीज विवाहित महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इन अवसर पर वे दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं, हरे या लाल रंग की पारंपरिक पोशाक पहनती हैं और अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। अविवाहित लड़कियां भी अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए व्रत रखती हैं।
हरियाली तीज और हरतालिका तीज के बीच क्या अंतर है?
कई लोग हरियाली और हरतालिका तीज को एक समझते हैं, जबकि ये 2 अलग-अलग तीज के त्योहार हैं। हरियाली तीज भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। हालांकि, हरतालिका तीज मनाने का कारण यह है कि माता पार्वती की सहेलियां उनका अपहरण करके गहरे जंगलों में ले गईं क्योंकि उनके पिता भगवान विष्णु से विवाह करवाना चाहते थे। ऐसे में मां पार्वती ने जंगल में तपस्या जारी रखी और भगवान शिव से विवाह किया।
हरियाली तीज कैसे मनाई जाती है?
तीज के दिन सबसे पहले महिलाएं स्नान करके अपने सबसे अच्छे पारंपरिक परिधान पहनती हैं। वह हाथों को मेहंदी से सजाने के साथ चूड़ियां और अन्य आभूषण पहनती हैं। इसी तरह एक आनंदमय वैवाहिक जीवन के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। वे दिनभर बिना भोजन और पानी का उपवास रखती हैं और अगले दिन सूर्योदय से पहले भीगे हुए काले चने और खीरे खाकर उपवास तोड़ती हैं। इस दिन घर पर पकवान भी बनते हैं।