
तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के कारण दुनियाभर में हो सकते हैं ज्वालामुखी विस्फोट, अध्ययन से खुलासा
क्या है खबर?
हाल ही में सामने आए एक अध्ययन से पता चला है कि ग्लेशियरों के पिघलने से ज्वालामुखी विस्फोट अधिक तेजी से हो सकते हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और भी खराब हो सकता है। यह अध्ययन चिली में किया गया और इससे सामने आया कि पिघलते ग्लेशियरों के कारण ज्वालामुखी के नीचे मौजूद मैग्मा (पिघली हुई चट्टानें) में गैसों का दबाव बहुत ज्यादा हो जाता है, जिसके कारण विस्फोट हो सकता है। आइए अध्ययन के बारे में विस्तार से जानें।
ज्वालामुखी विस्फोट
अंटार्कटिका, रूस, न्यूजीलैंड समेत उत्तरी अमेरिका पर मंडरा रहा ज्वालामुखी विस्फोट का खतरा
यह अध्ययन चेक गणराज्य की राजधानी और सबसे बड़े शहर प्राग में होने वाली गोल्डश्मिट जियोकेमिस्ट्री कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया गया था और एक एकेडमी जर्नल द्वारा इसकी समीक्षा की जा रही है। इस अध्ययन का विश्लेषण करने वाले लेखकों के अनुसार, अंटार्कटिका, रूस, न्यूजीलैंड समेत उत्तरी अमेरिका में सैकड़ों ज्वालामुखी ग्लेशियरों के नीचे स्थित हैं और पृथ्वी पर गर्मी बढ़ने से ग्लेशियरों का पिघलना तेज हो गया है, जिससे ज्वालामुखी के सक्रिय होने की संभावना बढ़ गई है।
ज्वालामुखी मैग्मा
ग्लेशियर से ज्वालामुखी मैग्मा थे रूके
विस्कॉन्सि-मैडिसन विश्वविद्यालय के स्नातक छात्र और अध्ययन के प्रमुख लेखक पाब्लो मोरेना येगर ने बताया, "ग्लेशियर अपने नीचे स्थित ज्वालामुखियों से होने वाले विस्फोटों को रोक देते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं, जिससे ज्वालामुखी विस्फोट लगातार हो सकते हैं।" उन्होंने आगे कहा कि इन विस्फोटो को रोकने के लिए जरूरी है कि ज्वालामुखी के मैग्मा पर बहुत मोटी बर्फ की परते हो, जो अब संभव नहीं लग रहा है।
प्रभाव
ज्वालामुखी विस्फोट से उत्पनन गैसें जलवायु को और ज्यादा कर सकती हैं प्रभावित
अध्ययन के शोधकर्ताओं का कहना है कि ज्वालामुखी विस्फोट सूर्य के प्रकाश के प्रभाव को प्रभावित करने वाले कणों को वायुमंडल में छोड़कर पृथ्वी को अस्थायी रूप से ठंडक दे सकते हैं। हालांकि, लगातार ज्वालामुखी विस्फोट होने से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसों की बड़ी मात्रा निकलेगी, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ेगा और इसके परिणामस्वरूप ग्लेशियरों के पिघलने की संभावना भी बढ़ेगी।
तरीके
येगर ने बताया ग्लेशियर को पिघलने से रोकने के तरीके
येगर ने बताया कि इस अध्ययन में पिछले हिमयुग से पहले, उसके दौरान और उसके बाद बन ज्वालामुखीय चट्टानों की रेडियोआइसोटोप डेटिंग भी शामिल थी। उन्होंने आगे कहा कि रेडियोआइसोटोप डेटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका इस्तेमाल चट्टानों, खनिजों और अन्य पदार्थों की उम्र मापने के लिए किया जाता है। येगर ने ये भी कहा की कि हमें ग्लेशियर को पिघलने से रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैसों का इस्तेमाल कम करना होगा और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे।