टोंगा में हुआ ज्वालामुखी विस्फोट इतना खतरनाक क्यों था?
क्या है खबर?
प्रशांत महासागरीय देश टोंगा इन दिनों ज्वालामुखी विस्फोट के बाद हुई तबाही के मंजर को समेट रहा है।
यह पिछले तीन दशकों का सबसे बड़ा ज्वालामुखी विस्फोट बताया जा रहा है। इसके कारण कई गांवों को भारी नुकसान पहुंचा है और कम से कम तीन लोगों की मौत हुई है।
विस्फोट के समय इतनी जोर से धमाका हुआ था कि लोगों को सुनना बंद हो गया।
आइये जानते हैं कि यह विस्फोट इतना जोरदार क्यों था।
पृष्ठभूमि
कहां हुआ विस्फोट?
यह विस्फोट टोंगा के हुंगा-हापाई और हुंगा-टोंगा द्वीपों के पास समुद्र के नीचे हुआ था और इसकी तीव्रता 5.8 रिक्टर स्केल के भूकंप के बराबर थी।
यहां पहले भी विस्फोट होते रहे हैं, लेकिन इसकी तुलना में ये काफी छोटे थे।
अनुमान है कि समुद्र के नीचे करीब 10 लाख ज्वालामुखी हैं और उनमें से ज्यादातर टेक्टोनिक प्लेटों के पास मौजूद हैं। इनसे लावा और राख निकलकर समुद्र तट पर जमा होते रहते हैं।
ज्वालामुखी विस्फोट
30 किलोमीटर तक ऊंचाई में गया मलबा
अभी तक ज्वालामुखी विस्फोट और उसके बाद समुद्र में उठी ऊंची लहरों से हुए नुकसान का पूरा आकलन नहीं हुआ है, लेकिन शुरुआती रिपोर्ट्स बता रही हैं कि कई इलाकों में ज्वालामुखी के लावा की राख और ऊंची लहरों से भारी नुकसान हुआ है।
सैटेलाइट से ली तस्वीरों से पता चलता है कि विस्फोट के बाद मलबा हवा में करीब 30 किलोमीटर ऊंचाई तक उछला था। राख और गैस का थोड़ा हिस्सा तो लगभग 40 किलोमीटर तक ऊपर गया था।
वजह
विस्फोट की वजह क्या मानी जा रही है?
वैज्ञानिकों का कहना है कि जब किसी विशेष जगह पर समुद्र का पानी बड़ी मात्रा में लावा के भंडार के संपर्क में आता है तो इतना जोरदार विस्फोट होता है।
ऐसा माना जा रहा है कि ज्वालामुखी के अंदर लावा पर भारी दबाव था और यहां बड़ी मात्रा में गैस इकट्ठा हो गई थी। ज्वालामुखी के अंदर पत्थरों में दरार के बाद जब अचानक से दबाव कम हुआ तो गैस निकलने लगी और जोरदार विस्फोट के बाद लावा फैलने लगा।
जानकारी
हालिया वर्षों का सबसे जोरदार विस्फोट
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह हालिया समय का सबसे जोरदार ज्वालामुखी विस्फोट था। रिकॉर्ड्स बताते हैं कि पहले भी ऐसे विस्फोट में ज्वालामुखी में इसी तरह लावा उगला था।
विस्फोट के बाद सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों में दिख रहा था कि हुंगा-हापाई और हुंगा-टोंगा ज्वालामुखी से हुए विस्फोट के बाद प्रशांत महासागर के नीले पानी के ऊपर मशरूम के आकार में राख, भाप और गैस का गुबार उठ रहा था।
ज्वालामुखी विस्फोट
हजारों किलोमीटर दूर तक महसूस हुआ असर
बीते शुक्रवार को हुए विस्फोट का असर करीब 2,300 किलोमीटर दूर न्यूजीलैंड पर भी पड़ा था और कई देशों ने सुनामी की चेतावनी जारी कर दी थी। पेरू में तेज समुद्री लहरों के कारण पोत हिलने से तेल का रिसाव हो गया था।
कुछ जानकारों का कहना है कि यह विस्फोट 1991 में फिलीपींस के पीनाट्यूबो विस्फोट जैसा था, जिसमें करीब 800 लोगों की मौत हुई थी। यह 20वीं सदी का दूसरा सबसे खतरनाक ज्वालामुखी विस्फोट था।