#NewsBytesExplainer: परिसीमन से क्यों चिंतित हैं दक्षिण भारतीय राज्य, क्या लोकसभा सीटें कम हो जाएंगी?
क्या है खबर?
देश में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को लेकर फिर विवाद शुरू हो गया है। दक्षिण भारतीय राज्यों खासकर तमिलनाडु ने इस पर आपत्ति जताई है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि परिसीमन के बाद उनके राज्य में लोकसभा की 8 सीटें कम हो जाएंगी। विवाद इतना बढ़ा कि गृह मंत्री अमित शाह को सामने आकर कहना पड़ा कि एक भी सीट कम नहीं होगी।
आइए आज परिसीमन को लेकर पूरा विवाद समझते हैं।
परिसीमन
सबसे पहले जानिए क्या होता है परिसीमन
समय के साथ जनसंख्या में बदलाव के कारण किसी लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र की सीमाओं के पुनर्निर्धारण की प्रक्रिया को परिसीमन कहा जाता है।
परिसीमन आयोग ये कार्य करता है। यह एक स्वतंत्र निकाय होता है जिसके फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।
इसका उद्देश्य इस तरह से सीमाएं निर्धारित करना होता है कि सभी सीटों के अंतर्गत लगभग बराबर आबादी आए। ये सीटों की संख्या घटा और बढ़ा भी सकता है।
तरीका
कैसे किया जाता है परिसीमन?
संविधान के अनुच्छेद 82 और 170 के अनुसार, हर जनगणना के बाद सीटों की संख्या और उनकी सीमाओं को समायोजित किया जाता है। परिसीमन का काम ताजा जनगणना के आंकड़ों के आधार पर परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है।
इसके लिए परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है, जो अपनी सिफारिशें और मसौदा पेश कर सुझाव मांगता है।
परिसीमन आदेश को लोकसभा या संबंधित राज्य की विधानसभा में पेश किया जाता है। हालांकि, सदन इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकती।
दक्षिण भारत
क्यों चिंतित हैं दक्षिण भारतीय राज्य?
फिलहाल दक्षिणी राज्यों के पास लोकसभा की 129 सीटें हैं। ये कुल सीटों का 24 प्रतिशत है। अगर परिसीमन में एक लोकसभा सीट पर 20 लाख की आबादी का फॉर्मूला अपनाया जाता है तो सीटें 543 से बढ़कर 707 हो जाएंगी।
इससे दक्षिणी राज्यों को काफी नुकसान होगा। तमिलनाडु में केवल सीटें बढ़ेंगी, लेकिन केरल में 2 सीटें कम हो जाएंगी। इसके उलट उत्तर प्रदेश की सीटें 80 से बढ़कर 126 और बिहार की 40 से 70 हो जाएंगी।
प्रतिनिधित्व
दक्षिणी राज्यों के प्रतिनिधित्व में आएगी कमी
फिलहाल तेलंगाना में लोकसभा की 17, आंध्र प्रदेश में 25, केरल में 20, तमिलनाडु में 39 और कर्नाटक में 28 सीटें हैं।
अगर हर लोकसभा सीट पर 20 लाख आबादी के हिसाब से परिसीमन होता है तो तेलंगाना में लोकसभा की सीटें 20, आंध्र प्रदेश में 28, केरल में 19, तमिलनाडु में 41 और कर्नाटक में 36 हो जाएंगी।
फिलहाल लोकसभा में दक्षिणी राज्यों के पास 24 प्रतिशत सीटें हैं, जो घटकर 19 प्रतिशत ही रह जाएंगी।
आंकड़े
देश में कितनी बार हुआ परिसीमन?
आजादी के बाद से अब तक 4 बार परिसीमन हुआ है- 1952, 1963, 1973 और 2002 में।
आखिरी बार जब 2002 में परिसीमन हुआ, तब निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ था। यानी 70 के दशक से लोकसभा सदस्यों की संख्या 543 ही है।
1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 42वां संविधान संशोधन विधेयक लेकर आई थीं, जिसमें 2001 तक परिसीमन पर रोक लगाने का प्रस्ताव था। अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे 2026 तक बढ़ा दिया था।
राजनीतिक वजहें
परिसीमन के राजनीतिक मायने भी
लोकसभा सीटें कम होने का सीधा असर राजनीतिक पार्टियों की ताकत पर पड़ेगा। दक्षिण भारतीय पार्टियों को डर है कि इससे भाजपा को दक्षिण में फायदा मिल सकता है।
कांग्रेस भी ऐसी ही चिंताएं साझा करती हैं। हालिया सालों में कांग्रेस का हिंदी पट्टी में प्रदर्शन खराब रहा है और वो दक्षिणी राज्यों की बदौलत सीटें बढ़ाने में कामयाब रही है। 2024 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 99 सीटें जीती हैं, जिनमें से 53 दक्षिण भारतीय राज्यों से हैं।
सरकार
राज्यों की चिंता पर सरकार का क्या कहना है?
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि तमिलनाडु में परिसीमन के बाद एक भी लोकसभा सीट कम नहीं होगी।
उन्होंने कहा, "एमके स्टालिन और उनके बेटे वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए कई मुद्दे उठा रहे हैं। आज वे परिसीमन को लेकर बैठक करने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने लोकसभा में स्पष्ट कर दिया है कि परिसीमन के बाद भी दक्षिण के किसी भी राज्य की सीटें कम नहीं होंगी।"