
क्याें होता है भूस्खलन? जानिए इसका कारण और बचाव के तरीके
क्या है खबर?
समय से पहले आया मानसून पहाड़ी राज्यों में कहर बनकर टूट रहा है। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश के चलते आए दिन भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। इससे जान-माल को भारी नुकसान होने के साथ कई सड़कों पर यातायात ठप है। पिछले साल जुलाई में केरल के वायनाड जिले में इस प्राकृतिक आपदा के कारण 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। आइये जानते हैं भूस्खलन क्या है और क्यों होता है।
भूस्खलन
क्या होता है भूस्खलन?
पहाड़ी क्षेत्रों से चट्टानों का गिरना, जमीन का खिसकना, कीचड़ के तेज बहाव को भूस्खलन कहा जाता है। मलबे के बहाव को मडस्लाइड भी कहा जाता है, लेकिन यह भी एक प्रकार का भूस्खलन ही है। इसमें चट्टान का गिरना, पलटना, ऊपर से नीचे की ओर खिसकना जैसी स्थिति देखने को मिलती है। यह प्राकृति आपदा अक्सर भूकंप, बाढ़ और ज्वालामुखी फटने के साथ भी आते हैं। बादल फटना भी इसकी एक बड़ी वजह होती है।
कारण
इस कारण आती है यह आपदा
अधिकांश भूस्खलन भूकंप और बारिश या फिर दोनों के संयोजन से होता हैं। भूकंप से जमीन हिलाती है और उस पर दबाव पड़ने से कमजोर हो जाती है। बारिश का पानी जमीन में रिसकर उसकी पकड़ को कमजोर कर देता है। मिट्टी में पानी की मात्रा बढ़ने पर उसका वजन बढ़ जाता है और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल इसे अपनी ओर खींचने लगता है। इससे मलवा तेजी से नीचे आता है, जिसकी औसत गति 260 फीट/सेकेंड तक हो सकती है।
जिम्मेदार
मानवीय हस्तक्षेप से बढ़ रही घटनाएं
भूस्खलन की बढ़ती घटनाओं के लिए कई मानवीय कारण भी जिम्मेदार हैं। पड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में ढलान की स्थिरता कमजोर हुई है। दरअसल, पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं, जिससे वह आसानी से खिसकती नहीं है। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते पर्यटन के कारण अनियोजित निर्माण और खनन गतिविधियां भी ऐसी घटनाओं को बढ़ा रही हैं। खनन के लिए होने वाले विस्फोटों से ढलान क्षेत्र कमजोर पड़ रहे हैं।
परिणाम
विनाश लेकर आती हैं ये घटनाएं
इसके कई विनाशकारी परिणाम होते हैं। पहाड़ों से तेज गति से आने वाला मलवा और चट्टानें अपने मार्ग में तबाही का मंजर पेश करती हैं। यह जहां-जहां से गुजरता है, वहां-वहां विनाशकारी दृश्य नजर आता है। चट्टानों के गिरने से जान-माल को भारी नुकसान होता है। साथ ही सड़कों पर मलवा आने से यातायात ठप हो जाता है। मलवा और पानी का तेज बहाव रास्ते में जो भी आता है उसे साथ बहा ले जाता है।
पूर्वानुमान
आसान नहीं है पूर्वानुमान लगाना
विशेषज्ञों के अनुसार, भूस्खलन का सटीक पूर्वानुमान लगाना और उसे प्रभावी ढंग से रोकना मुश्किल है। भूस्खलन के संकेत के लिए कोई भी सेंसर काम नहीं करता है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) और अन्य मानसून पूर्वानुमान लगाने वाली एजेंसियां भारी बारिश के आधार पर पहाड़ी राज्यों में इसको लेकर अलर्ट जारी करती हैं। यह अनुमान कितना सटीक होगा, यह कहना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन इससे लोगों को इस आपदा से सतर्क किया जा सकता है।
बचाव
कम कर सकते हैं नुकसान
इस प्राकृतिक आपदा को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इससे होने वाले नुकसान को कुछ सावधानी बरतकर कुछ हद तक कम किया जा सकता है। मौसम विभाग के अलर्ट पर नजर रखें और जहां भूस्खलन की संभावना जताई गई उन इलाकों में जाने से बचें। ऐसे क्षेत्रों में पहाड़ी की तलहटी में रहने वाले लोग भी इस दौरान घरों से दूर चले जाएं। इसके अलावा इस दौरान पहाड़ी से सटी सड़क पर वाहन चलाने की गलती न करें।