कौन हैं जस्टिस ललित और क्यों उन्होंने खुद को राम मंदिर की सुनवाई से दूर किया?
सुप्रीम कोर्ट में आज राम मंदिर मामले में सुनवाई हुई थी। इस दौरान मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वकील राजीव धवन ने जस्टिस यूयू ललित पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जस्टिस ललित 1994 में इस मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की तरफ से पेश हो चुके हैं। इसके बाद जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ से अलग कर लिया।
क्या था कल्याण सिंह का मामला
जुलाई, 1992 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दिया था कि बाबरी मस्जिद ढांचे को यथावत रखा जाएगा, लेकिन बाद में इस ढांचे को ढहा दिया गया था। शपथ पत्र में कही गई बात को नहीं निभाने पर कोर्ट की अवमानना के दोष में कल्याण सिंह को एक दिन की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में तब वकालत कर रहे जस्टिस ललित कल्याण सिंह की तरफ से कोर्ट में पेश हुए थे।
कई बड़े मामलों में वकील रह चुके हैं जस्टिस ललित
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट के जज बनने से पहले जस्टिस ललित वकालत करते थे। वे बहुचर्चित सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति एनकाउंटर मामले में भाजपा के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के वकील रह चुके हैं। इसके अलावा वे कांग्रेस सरकार के लिए बड़ी परेशानी बने 2G मामले में CBI की तरफ से पब्लिक प्रोसिक्यूटर भी रह चुके हैं। जस्टिस यूयू ललित तीन तलाक को असंवैधानिक करार देने वाली संविधान पीठ में शामिल थे।
कौन हैं जस्टिस यूयू ललित
जस्टिस उदय उमेश ललित के पिता भी दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। जस्टिस ललित ने 1983 में बॉम्बे हाई कोर्ट से अपने वकालत के करियर की शुरुआत की थी। 2004 में ये सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील बने। 13 अगस्त, 2014 को इन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। इससे पहले वे लगातार दो बार सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी के प्रमुख रहे। वे सोली सोराबजी के साथ 1986-1992 तक काम कर चुके हैं।