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    कौन हैं न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जो बनेंगे भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश?
    न्यायमूर्ति संजीव खन्ना बनेंगे देश के अगले मुख्य न्यायाधीश

    कौन हैं न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जो बनेंगे भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश?

    लेखन गजेंद्र
    Oct 17, 2024
    10:37 am

    क्या है खबर?

    भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ आगामी 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। ऐसे में उन्होंने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का नाम अगले CJI के लिए केंद्र सरकार को भेजा है।

    64 वर्षीय खन्ना के नाम पर मुहर लगने के बाद वह 10 नवंबर को कार्यभार ग्रहण करेंगे और देश के 51वें CJI बनेंगे।

    न्यायमूर्ति खन्ना का कार्यकाल 6 महीने का होगा। वे 13 मई, 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।

    न्यायमूर्ति खन्ना कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई से जुड़े थे।

    जन्म

    1983 में कराया था दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकरण

    न्यायमूर्ति खन्ना का जन्म दिल्ली में 14 मई, 1960 को हुआ था। इनके पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश रहे थे और मां सरोज खन्ना दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवक्ता थीं।

    दिल्ली में ही स्कूली शिक्षा करने के बाद 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया और इसके बाद यहीं से कानून की पढ़ाई की।

    पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में वकील के तौर पर पंजीकरण कराया।

    शुरूआत

    तीस हजारी कोर्ट से की शुरूआत

    न्यायमूर्ति खन्ना ने वकालत की शुरूआत दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से की। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के साथ संवैधानिक कानून, प्रत्यक्ष कराधान, मध्यस्थता जैसे ट्रिब्यूनल में भी प्रैक्टिस की।

    उन्होंने आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में भी काम किया। 2004 में न्यायमूर्ति खन्ना को दिल्ली के लिए स्थायी (सिविल) वकील के रूप में नियुक्ति मिली।

    वे दिल्ली हाई कोर्ट में अतिरिक्त लोक अभियोजक और एमिकस क्यूरी रहे और कई आपराधिक मामलों में बहस की

    न्यायमूर्ति

    2005 में बने दिल्ली हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश

    न्यायमूर्ति खन्ना 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने। इसके बाद 2006 में स्थायी न्यायाधीश बनाए गए।

    इस दौरान उन्होंने दिल्ली न्यायिक अकादमी, अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र और जिला न्यायालय मध्यस्थता केंद्रों के अध्यक्ष और प्रभारी न्यायाधीश का पद संभाला।

    इसके बाद उन्हें 18 जनवरी, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। वे सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष भी रहे।

    अभी वे राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य हैं।

    विवाद

    बिना मुख्य न्यायाधीश बने सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए थे खन्ना

    न्यायमूर्ति खन्ना उन न्यायाधीशों में शामिल हैं, जो किसी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने बिना ही सीधे सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बने थे। इसको लेकर काफी विवाद भी हुआ था।

    दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट में 14 साल न्यायाधीश रहने के बाद 2019 में जब उनको सुप्रीम कोर्ट भेजा गया तो 32 न्यायाधीशों की अनदेखी करने का आरोप लगा।

    कॉलेजियम ने इन न्यायाधीशों की जगह न्यायमूर्ति माहेश्वरी और वरिष्ठता में 33वें स्थान पर खन्ना को पदोन्नत किया था।

    विवाद

    इंदिरा गांधी के जमाने में न्यायमूर्ति खन्ना के चाचा को किया गया था नजरअंदाज

    ऐसा एक मामला पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय से जुड़ा है, जिसमें न्यायमूर्ति खन्ना के चाचा हंसराज खन्ना को नजरअंदाज कर किसी और को CJI बनाया गया था।

    इंदिरा सरकार ने 1973 में सुप्रीम कोर्ट के 3 वरिष्ठ न्यायाधीशों को हटाकर एएन रे को CJI बनाया। 1977 में जब रे सेवानिवृत्त हुए तो हंसराज सबसे वरिष्ठ थे, लेकिन उनकी जगह एमएच बेग CJI बने।

    चर्चा थी कि इमरजेंसी में हंसराज द्वारा इंदिरा सरकार को घेरने की उन्हें सजा मिली।

    फैसला

    जब खुद को समलैंगिक विवाह की सुनवाई से अलग किया था खन्ना ने

    पिछले साल अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 3-2 से फैसला देकर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इंकार कर दिया।

    इसके बाद अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट में 52 पुनर्विचार याचिका दायर की गई। इसके लिए CJI चंद्रचूड़ ने 5 सदस्यीय पैनल गठित किया था, जिसमें न्यायमूर्ति खन्ना भी शामिल थे।

    बाद में सुनवाई से ठीक पहले खन्ना ने खुद को मामले से अगल कर लिया था। इसके लिए उन्होंने निजी कारण बताए थे।

    चर्चित

    न्यायमूर्ति खन्ना के चर्चित मामले

    एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) में डाले गए वोट की 100 प्रतिशत VVPAT सत्यापन की मांग वाली याचिका को न्यायमूर्ति खन्ना ने खारिज किया था।

    चुनावी बॉन्ड मामले में 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने उसे असंवैधानिक बताया। इसमें खन्ना ने निजता पर सवाल उठाया था।

    जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निरस्त करने की पीठ में खन्ना शामिल थे और सहमति जताई थी।

    सुप्रीम कोर्ट को तलाक देने के अधिकार मामले में खन्ना की सहमति थी।

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