
युद्ध के समय होने वाला 'ब्लैकआउट' क्या है? जानिए इससे जुड़े सभी अहम नियम
क्या है खबर?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने आतंकियों के पनाहगार पाकिस्तान को करारा जवाब देने की तैयारी कर ली है।
इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 35 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के 259 जिलों में नागरिक सुरक्षा तैयारियों को मजबूत करने के लिए बुधवार (7 मई) को मॉक ड्रिल (पूर्वाभ्यास) करने को कहा है।
इसका सबसे अहम हिस्सा 'ब्लैकआउट' है। आइए ब्लैकआउट और उससे जुड़े आवश्यक नियमों के बारे में जानते हैं।
कार्य
पूर्वाभ्यास में क्या-क्या किया जाएगा?
गृह मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, पूर्वाभ्यास में हवाई हमले की चेतावनी देने वाले सायरन का संचालन किया जाएगा।
इसी तरह हमले की स्थिति में खुद को बचाने के लिए नागरिकों और छात्रों को नागरिक सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
इसके अलावा, क्षेत्र में पूरी तरह से बिजली बंद (ब्लैकआउट) करने की आवश्यकता पर किए जाने वाले उपाय बताए जाएंगे, महत्वपूर्ण संयंत्रों/प्रतिष्ठानों को सुरक्षित रखने की तैयारी और लोगों को निकालने की योजना और उसका अभ्यास किया जाएगा।
सवाल
क्या होता है युद्ध के समय का ब्लैकआउट?
युद्ध के दौरान हवाई हमले की संभावना अधिक रहती है। दुश्मन की निगाहें जमीन पर मौजूद रोशनी को अपना निशाना बनाती है।
शहरों की जगमगाती लाइटें, गाड़ियों की हेड लाइट्स और घरों की बिजली दुश्मन का लक्ष्य बन जाती है।
ऐसे में दुश्मन के हमलों से बचने के लिए ही ब्लैकआउट का सहारा लिया जाता है।
इसका उद्देश्य कृत्रिम रोशनी को कम करके दुश्मनों के विमानों और पनडुब्बियों को विशिष्ट स्थानों का पता लगाने और निशाना बनाने से रोकना है।
उद्देश्य
क्या है ब्लैकआउट का उद्देश्य?
ब्लैकआउट का मुख्य उद्देश्य दुश्मन के हवाई हमलों को मुश्किल बनाना है। रात के समय शहरों की रोशनी दुश्मन के पायलटों के लिए निशाना ढूंढने में सहायक होती है।
साल 1940 के लंदन ब्लिट्ज के दौरान जर्मन लूफ्टवाफे ने ब्रिटिश शहरों पर रात में बमबारी की थी।
उस दौरान शहर की रोशनी को कम करके दिशा और लक्ष्य को मुश्किल बनाया गया था। तटीय क्षेत्रों में ब्लैकआउट जहाजों को दुश्मन की पनडुब्बियों से बचाने में मदद करता था।
नियम
क्या होते हैं ब्लैकआउट के दौरान घरों के लिए नियम?
रक्षा मंत्रालय और पुरालेख विभाग की रिपोर्ट में 1971 के युद्ध के दौरान ब्लैकआउट के नियमों का जिक्र किया गया है।
इसके तहत सभी घरों की खिड़कियों और दरवाजों को रात में भारी पर्दों या कार्ड बोर्ड से ढंकना अनिवार्य होता है ताकि कोई भी रोशनी बाहर न निकले।
सार्वजनिक रोड लाइटों को या तो बंद कर दिया जाता है या फिर उन्हें काले रंग से रंगकर उनकी क्षमता को कम किया जाता है, जिससे रोशनी नीचे की ओर रहे।
वाहन
वाहनों के लिए ब्लैकआउट के नियम
वाहनों के बाहरी हिस्से में लगी हेडलाइट्स और टेल लाइट्स को सामान्यतः लो बीम पर सेट किया जाता है और फिर उनकी दृश्यता न्यूनतम रखने के लिए उन्हें काले रंग से पेंट किया जाता है।
वाहनों के बंपर और रनिंग बोर्ड पर सफेद मैट पेंट किया जाता था ताकि जमीन से दृश्यता बढ़े लेकिन ऊपर से न दिखे।
इसी तरह, वाहनों में कोई आंतरिक रोशनी नहीं होती है। रिवर्सिंग लैंप के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक होती है।
अन्य
दुकानों और कारखानों के लिए ब्लैकआउट के नियम
कारखानों में बड़े कांच वाली छतों को काले रंग से रंगा जाता है, जिससे दिन के उजाले में भी प्राकृतिक रोशनी कम हो सके।
दुकानों पर डबल एयरलॉक दरवाजे लगाए जाते हैं ताकि ग्राहकों के आने-जाने पर रोशनी बाहर न निकले।
इसी तरह, दुकान संचालकों को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि उनके अंदरूनी हिस्से से इमारत के बाहरी हिस्से में किसी भी सूरत में रोशनी न जाए। ऐसी स्थिति में खिड़कियां ही रोशनी का एकमात्र स्रोत हैं।
आवश्यकता
युद्ध के लिए ब्लैकआउट नियमों की पालना क्यों है जरूरी?
युद्ध के दौरान ब्लैकआउट नियमों का पालन करना बहुत ही जरूरी हो जाता है। ऐसा न करने पर पूरे क्षेत्र की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों को जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को नियमों का पालन करने की आवश्यकता बताते हुए जागरुक करना चाहिए।
हालांकि, सरकार नियमों की पालना के लिए सख्ती भी कर सकती है, लेकिन युद्ध के दौरान एक भी गलती संबंधित क्षेत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।