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    मस्जिद के लिए जमीन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने किया इस विशेष शक्ति का प्रयोग

    मस्जिद के लिए जमीन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने किया इस विशेष शक्ति का प्रयोग

    लेखन मुकुल तोमर
    Nov 10, 2019
    07:29 pm

    क्या है खबर?

    शनिवार को अयोध्या विवाद में अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनाए जाने का आदेश दिया।

    वहीं मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या की किसी अन्य जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाएगी।

    मस्जिद के लिए अलग से जमीन देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल किया।

    अनुच्छेद 142 क्या है और सुप्रीम कोर्ट ने क्यों इसका प्रयोग किया, आइए आपको बताते हैं।

    अनुच्छेद 370

    क्या है संविधान का अनुच्छेद 142?

    संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को किसी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए विशेष आदेश देने की शक्तियां प्रदान करता है।

    अनुच्छेद के अनुसार, "सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार-क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसा हुक्मनामा या आदेश पारित कर सकता है जो उसके सामने लंबित किसी मामले या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो।"

    इस अधिकार का प्रयोग करते हुए दिया गया आदेश अन्य मामलों के लिए एक नजीर नहीं बन सकता।

    अयोध्या फैसला

    अयोध्या पर फैसले में दो बार अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग

    अयोध्या पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दो बार अनुच्छेद 142 के तहत उसे प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल किया।

    दरअसल, कोर्ट ने विवादित जमीन पर उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा दोनों के दावे को खारिज कर दिया था।

    लेकिन पूर्ण न्याय करने के लिए उसने दोनों के लिए एक-एक बार अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग किया और सुन्नी वक्फ को मस्जिद के लिए जमीन और निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में जगह देने का आदेश दिया।

    जानकारी

    बाबरी मस्जिद विध्वंस के मद्देनजर मस्जिद के लिए जमीन

    सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद निर्माण के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने का आदेश 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस को मद्देनजर रखते हुए दिया गया है, ताकि इससे मुस्लिमों के साथ जो गलत हुआ, उसका न्याय किया जा सके।

    फैसला

    "मुस्लिमों के हक की अनदेखी करना न्याय नहीं होगा"

    सुप्रीम कोर्ट के फैसले में लिखा है, "मुस्लिमों ने मस्जिद को त्यागा नहीं था। इस कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए ये सुनिश्चित करना चाहिए कि जो गलत हुआ वो ठीक हो।

    ये न्याय नहीं होगा अगर कोर्ट मुस्लिमों के हक की अनदेखी करती है जिन्हें ऐसे माध्यमों के जरिए मस्जिद से वंचित किया गया जिन्हें कानून के शासन के प्रति प्रतिबद्ध एक धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं अपनाया जाना चाहिए था।"

    दूसरा प्रयोग

    अनुच्छेद 142 का प्रयोग करके निर्मोही अखाड़ा को ट्रस्ट में जगह

    वहीं निर्मोही अखाड़ा के संबंध में अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है, "संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए हम आदेश देते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा जो योजना बनाई जानी है, उसमें ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।"

    ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को क्या स्थान देना है, कोर्ट ने ये केंद्र सरकार के विवेक पर छोड़ा है।

    जानकारी

    अनुच्छेद 142 के प्रयोग ने किया मामले में राजनीति की संभावना को खत्म

    इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग करते हुए ऐसा फैसला सुनाया है जिसमें सभी मुख्य पक्षों के लिए कुछ न कुछ है और जिसने मामले पर राजनीति की संभावना को लगभग खत्म कर दिया है।

    अन्य मामले

    इन मामलों में भी अनुच्छेद 142 का प्रयोग कर चुकी है सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी कई मामलों में अनुच्छेद 142 का प्रयोग कर चुकी है।

    अयोध्या विवाद से ही जुड़े बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले को रायबरेली कोर्ट से लखनऊ कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इसी अनुच्छेद का प्रयोग किया था।

    भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े यूनियन कार्बाइड मामले में भी इसका प्रयोग किया गया था।

    अक्टूबर में 22 साल से अलग रह रहे पति-पत्नी की शादी को रद्द करने के लिए भी इसका प्रयोग हुआ था।

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