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कोरोना वायरस: क्या हैं आगरा मॉडल और भीलवाड़ा मॉडल और इनमें क्या अंतर है?

कोरोना वायरस: क्या हैं आगरा मॉडल और भीलवाड़ा मॉडल और इनमें क्या अंतर है?

Apr 13, 2020
06:04 pm

क्या है खबर?

देश में कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच कुछ ऐसे मॉडल उभर कर सामने आए हैं जिनको अपनाने से इस महामारी से सक्षम तरीके से निपटा जा सकता है। इन मॉडलों में उत्तर प्रदेश के 'आगरा मॉडल' और राजस्थान के 'भीलवाड़ा मॉडल' की सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा की और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। ये दोनों मॉडल क्या हैं और इनमें क्या अंतर है, आइए जानते हैं।

आगरा मॉडल

क्या है आगरा मॉडल?

आगरा मॉडल में हॉटस्पॉट, ऐपीसेंटर (केंद्र), संभावित मरीजों की खोज, टेस्टिंग और आइसोलेशन के जरिए एक फॉर्मूला तैयार किया गया है। इसके मुताबिक जिस इलाके में कोरोना वायरस के अधिक मामले सामने आते हैं, उसके आसपास के तीन किलोमीटर के क्षेत्र को ऐपीसेंटर घोषित किया जाता है। वहीं पांच किलोमीटर के अंदर आने वाले इलाकों को हॉटस्पॉट घोषित किया जाता है। हॉटस्पॉट इलाकों को पूरी तरह सील कर दिया जाता है और किसी गतिविधि की इजाजत नहीं होती।

जानकारी

ऐपीसेंटर में किया जाता है डोर-टू-डोर सर्वे

जिन इलाकों को ऐपीसेंटर घोषित किया जाता है वहां डोर-टू-डोर सर्वे करके देखा जाता है कि किसी व्यक्ति में कोरोना वायरस के लक्षण तो नहीं है। ऐपीसेंटर और हॉटस्पॉट दोनों ही इलाकों में प्रशासन जरूरी सामान की होम डिलीवरी करता है।

आगरा में कोरोना वायरस

कैसे अस्तित्व में आया आगरा मॉडल?

आगरा में कोरोना वायरस का पहला मामला तीन मार्च को सामने आया था। इटली से लौटा एक जूता व्यापारी दिल्ली होते हुए 25 फरवरी को आगरा आया था और उसे तीन मार्च को संक्रमित पाया गया था। इसके बाद उसके परिवार के अन्य छह सदस्यों और संपर्क में आने वाले एक व्यक्ति को संक्रमित पाया गया। इतने सारे मामले सामने आने के बाद आगरा प्रशासन हरकत में आया और अपना आगरा मॉडल लागू करते हुए आक्रामक रणनीति अपनाई।

सहयोग

विभिन्न एजेंसियों की ली जाती है सहायता

अधिकारियों की एक फौज और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के तालमेल से कोरोना वायरस का मुकाबला करना आगरा मॉडल का एक अहम हिस्सा है। आगरा में केंद्र सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साथ मिलकर राज्य सरकार ने एक टीम बनाई है। इन सभी कदमों की वजह से आगरा कोरोना वायरस पर एक हद तक काबू पाने में कामयाब रहा है और अभी तक यहां 134 मामले सामने आए हैं। इनमें से 60 मामले तबलीगी जमात से संबंधित हैं।

भीलवाड़ा मॉडल

क्या है भीलवाड़ा मॉडल?

राजस्थान के भीलवाड़ा मॉडल में कोरोना वायरस के अधिक मामले सामने आने के बाद पूरे जिले को सील कर कर्फ्यू लागू कर दिया जाता है और आक्रामक टेस्टिंग के साथ-साथ सोशल डिस्टेंसिंग को सख्ती से लागू किया जाता है। भीलवाड़ा में 19 मार्च को कोरोना वायरस से संक्रमण का पहला मामला सामने आया था जब एक प्राइवेट अस्पताल के डॉक्टर को संक्रमित पाया गया। 26 मार्च तक मामलों की संख्या 17 हो गई। सभी मामले अस्पताल से ही संबंधित थे।

कोरोना से जंग

ऐसे लागू किया गया भीलवाड़ा मॉडल

मामलों में अचानक वृद्धि आने के बाद राजस्थान सरकार और भीलवाड़ा प्रशासन हरकत में आया और पूरे जिले में धारा 144 लागू कर दी गई। पहले चरण में जरूरी सुविधाएं चलने दी गईं, लेकिन दूसरे चरण में पूरे जिले को सील करके हर गतिविधि को बंद कर दिया गया। यहां कोरोना के मामले सामने आए उसके आसापास के तीन किलोमीटर के इलाके को कंटेनमेंट जोन और सात किलोमीटर के इलाके को बफर जोन घोषित किया गया।

टेस्टिंग

घर-घर जाकर किया गया लगभग 11 लाख लोगों का सर्वे

इसके साथ-साथ संभावित मरीजों की पहचान के लिए भी आक्रामक रणनीति अपनाई गई और 3,000 से अधिक टीमों ने दो लाख से अधिक परिवारों का घर-घर जाकर सर्वे किया। इन परिवारों में लगभग 11 लाख लोग थे और उनमें से 4,258 में इंफ्लुएंजा जैसी बीमारी के लक्षण दिखे। इन सभी की टेस्टिंग की गई। इन सभी प्रभावी और तत्काल उठाए गए कदमों की मदद से भीलवाड़ा कोरोना वायरस को रोकने में कामयाब रहा और अभी यहां केवल 28 मामले हैं।

अंतर

आसान भाषा में ये है दोनों मॉडल में मुख्य अंतर

आगरा मॉडल और भीलवाड़ा मॉडल दोनों में ही कोरोना वायरस का केंद्र बने इलाकों को निशाना बनाया जाता है और इनमें मुख्य अंतर सील किए जाने वाले क्षेत्र को लेकर है। आसान तरीके से समझें तो जहां भीलवाड़ा मॉडल में कोरोना वायरस के केंद्र वाला इलाका जिस जिले में आता है, उस पूरे जिले को सील कर दिया जाता है, वहीं आगरा मॉडल में पूरे जिले को सील करने की बजाय केवल हॉटस्पॉट इलाकों को सील किया जाता है।