महाराष्ट्र में हिंदू युवक ने दो बहनों से की शादी, जानें क्या कहता है कानून
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में दो जुड़वां बहनों के एक ही शख्स के साथ शादी करने का मामला सामने आया है। शादी के दौरान स्टेज पर दोनों बहनों के शख्स को वरमाला पहनाते हुए का एक वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो रहा है। हालांकि दो शादी करने के लिए दूल्हे के खिलाफ धारा 494 के तहत केस दर्ज किया गया है। आइए जानते हैं कि भारत में हिंदू धर्म के तहत दो शादियों को लेकर क्या नियम हैं।
भारत में शादी को लेकर नहीं है समान नागरिक संहिता
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 और अनुच्छेद 21 किसी भी व्यक्ति को विवाह करने के अधिकार प्रदान करते हैं। भारत में विवाह को लेकर अभी तक समान नागरिक संहिता (UCC) नहीं है और अलग-अलग धर्मों के लोग अलग-अलग कानूनों का पालन करते हैं।
किस धर्म के लिए कौन सा कानून?
भारत में हिंदुओं के विवाह के लिए हिंदू विवाह अधिनियम 1955, मुसलमानों के लिए मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) अधिनियम 1937, ईसाइयों के लिए भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 और पारसियों के लिए पारसी विवाह और तलाक अधिनियम 1936 है। इसके अलावा 1954 का विशेष विवाह अधिनियम उन लोगों के बीच विवाह को विनियमित करने का काम करता है जो किसी एक धर्म से नहीं आते या धर्म को मानते ही नहीं हैं।
क्या कहता है हिंदू विवाह अधिनियम?
1955 में हिंदू विवाह अधिनियम पारित करके हिंदू समुदाय में होने वाले विवाहों के कानूनी नियम तय किए गए थे। यह अधिनियम उन लोगों पर लागू होता है जो हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म का पालन करते हैं। अधिनियम की धारा 5 के मुताबिक, दूसरा विवाह करते समय पहला जीवनसाथी जीवित नहीं होना चाहिए। इसका मतलब है कि हिंदुओं में पहले जीवनसाथी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना एक अपराध है।
हिंदुओं में दो शादियां करने पर सजा का भी प्रावधान
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 17 में दो शादियां करने पर सजा का भी प्रावधान है। इस अधिनियम के लागू होने के बाद दो हिंदुओं के बीच संपन्न कोई भी विवाह तब तक अमान्य है, जब तक शादी की तारीख तक किसी भी पक्षकार का पति या पत्नी जीवित हो। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 और 495 के तहत दोषी पाए गए व्यक्ति को सात वर्ष तक की जेल की सजा हो सकती है।
बाल विवाह करना भी है कानूनी अपराध
देश में बच्चों के विवाह को रोकने के लिए बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 लागू है। इसी दिशा में हाल ही में केंद्र सरकार ने महिलाओं की शादी की उम्र सीमा 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का निर्णय लिया है। पुरुषों के लिए शादी की न्यूनतम आयु पहले से ही 21 वर्ष है। कुछ हाई कोर्ट्स ने 18 साल से कम उम्र की मुस्लिम लड़कियों की शादी को वैध ठहराया है, हालांकि इस पर सवाल भी उठते हैं।