क्या कानून की रक्षक उत्तर प्रदेश पुलिस खुद कानून का पालन करती है?
नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों से निपटने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं। देशभर में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं, लेकिन सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुई। प्रदर्शनों से निपटने से पहले उत्तर प्रदेश पुलिस अपराधियों के एनकाउंटर को लेकर भी विवादों में रही। आइये, ऐसी कुछ घटनाओं पर एक नजर डालते हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि कानून की रक्षक पुलिस खुद ही कानून का पालन नहीं करती।
सबसे पहले, मौजूदा हालातों की बात
आजकल की ही बात करें तो शुक्रवार को मेरठ के SP का एक वीडियो वायरल हुआ। इसमें प्रदर्शनकारियों का पीछा कर रहे SP गली में खड़े लोगों से कहते हुए सुने जा सकते हैं कि अगर भारत में नहीं रहना है तो पाकिस्तान चले जाओ। इससे पहले भी ऐसे वीडियो सामने आए, जिनमें पुलिसकर्मी खड़े हुए वाहनों पर डंडे बरसा रहे हैं। साथ ही पुलिस पर आरोप लग रहा है कि उन्होंने लोगों के घरों में घुसकर तोड़फोड़ की।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर चलाई गोलियां
उत्तर प्रदेश में प्रदर्शनों में सबसे ज्यादा मौतें गोली लगने से हुई। पहले उत्तर प्रदेश के DGP ने एक भी गोली नहीं चलने की बात कही थी, लेकिन बिजनौर पुलिस ने गोली लगने से प्रदर्शनकारी की मौत की बात मानी थी।
वाहनों पर डंडे बरसाती उत्तर प्रदेश पुलिस
धड़ाधड़ एनकाउंटर को लेकर भी विवादों में रही पुलिस
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने धड़ाधड़ एनकाउंटर किए थे। पुलिस के मुताबिक, पिछले दो सालों में 5,178 मुठभेड़ में 103 अपराधी मारे गए और 1,800 से ज्यादा घायल हुए हैं। सरकार का एक साल पूरा होने पर योगी ने इसे अपनी उपलब्धि के तौर पर पेश किया था। हालांकि, विपक्षी पार्टियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से इन एनकाउंटर की जरूरत और वैधता पर सवाल उठते रहे हैं।
ये हुआ एनकाउंटर करने की छूट का नतीजा
उत्तर प्रदेश पुलिस को पिछले साल सितंबर में उस समय विवादों का सामना करना पड़ा, जब लखनऊ में दो पुलिसकर्मियो ने ऐपल कंपनी के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। विवेक रात को अपनी गाड़ी से घर लौट रहे थे, जब उनको गोली मारी गई। इस मामले में खूब हंगामा हुआ था। उस समय कहा गया है कि यह हत्या पुलिस को मिली एनकाउंटर करने की छूट का नतीजा है।
हिरासत में मौत के मामले में आगे है उत्तर प्रदेश
एक रिपोर्ट के मुताबिक, हिरासत में मौत के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है। दरअसल, अप्रैल 2017 से लेकर फरवरी 2018 तक देशभर में हिरासत में 1,674 मौतें हुई थीं। इनमें से 1,530 मौतें न्यायिक और 144 मौतें पुलिस हिरासत में हुई थी। उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे आगे था। यहां पर ऐसी 374 मौतें हुई थी। चूंकि पुलिस और कानून-व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए इनकी जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की बनती है।
जब पुलिस ने हिरासत में लिए हुए व्यक्ति को उसके बेटे के सामने मार डाला
अक्टूबर में हापुड़ पुलिस ने हत्या के मामले में एक आरोपी प्रदीप तोमर को हिरासत में इतनी बुरी तरह प्रताड़ित किया कि उसकी मौत हो गई। पुलिस ने प्रदीप के नाबालिग बेटे के सामने उसकी बेरहमी से पिटाई की थी। तोमर के बेटे ने बताया था कि पुलिस वाले नशे में उसके पिता को लात-घूंसों से मार रहे थे। जब उसके पिता घायल हो गये तो पुलिस ने इलाज करवाने के बजाय उन्हें कमरे में बंद कर दिया।
मौजूदा हालात: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कही थी बदला लेने की बात
नागरिकता कानून को लेकर हो रहे प्रदर्शनों के बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले उपद्रवियों से सरकार बदला लेगी और ऐसे लोगों से वसूली की जाएगी। पूरे राज्य में 400 से ज्यादा लोगों को प्रशासन की तरफ से वसूली के नोटिस भी मिल चुके हैं। वहीं, मुस्लिम समुदाय के लोगों ने प्रशासन को सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति के तौर पर लगभग छह लाख रुपये दिए हैं।
पुलिसवालों को इतनी छूट क्यों?
एनकाउंटर से लेकर प्रदर्शनों को दबाने तक, पुलिस के रवैये पर सवाल उठते रहे हैं। जानकारों का मानना है कि राज्य सरकार ने पुलिस को खुली छूट दी हुई है, जिस कारण पुलिस खुद कानून का ख्याल नहीं कर रही। मुख्यमंत्री उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई की बात करते हैं, लेकिन कानून हाथ में लेने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ उनका कोई बयान नहीं आया। क्या पुलिसवालों को हर कानून को तोड़ने की इजाजत है या उनसे भी वसूली की जाएगी?