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सुप्रीम कोर्ट मुफ्त योजनाओं से नाराज, कहा- इनकी वजह से लोग काम नहीं कर रहे
मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है

सुप्रीम कोर्ट मुफ्त योजनाओं से नाराज, कहा- इनकी वजह से लोग काम नहीं कर रहे

लेखन आबिद खान
Feb 12, 2025
02:36 pm

क्या है खबर?

चुनावों से पहले राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त योजनाओं के ऐलान पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। कोर्ट ने कहा कि इससे लोगों की काम करने की इच्छा नहीं होगाी, क्योंकि उन्हें राशन और पैसे मुफ्त में ही मिलते रहेंगे। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शहरी इलाकों में बेघर लोगों के आश्रय से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की।

टिप्पणी

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

कोर्ट ने कहा, "यह कहते हुए खेद हो रहा है, लेकिन इन लोगों को मुख्यधारा के समाज का हिस्सा न बनाकर क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे? मुफ्त की चीजों के कारण जब चुनाव घोषित होते हैं तो लोग काम करने को तैयार नहीं होते हैं। उन्हें बिना कोई काम किए मुफ्त राशन मिल रहा है। हम आपकी चिंता समझते हैं, लेकिन क्या बेहतर नहीं होगा कि इन्हें भी समाज की मुख्य धारा में शामिल किया जाए।"

निर्देश

कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को दिया ये निर्देश

कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमाणी पेश हुए। उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार शहरी इलाकों में गरीबी को मिटाने के लिए प्रक्रिया को अंतिम रूप दे रही है। जिसमें शहरी इलाकों में बेघर लोगों को आश्रय देने का भी प्रावधान होगा।" इस पर कोर्ट ने उनसे कहा कि वे केंद्र सरकार से पूछकर यह स्पष्ट करें कि कितने दिन में इस योजना को लागू किया जाएगा।

सुनवाई

6 हफ्ते बाद अगली सुनवाई

कोर्ट ने मामले पर अगली सुनवाई 6 हफ्ते बाद निर्धारित की है। यह पहली बार नहीं है, जब मुफ्त की योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को घेरा है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया था। तब याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि मुफ्त की योजनाओं को रिश्वत घोषित किया जाए और ऐसी योजनाओं पर फौरन रोक लगाई जाए। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने भी इस मामले में याचिका दायर की है।

चुनाव आयोग 

मामले पर चुनाव आयोग का क्या कहना है?

पिछले साल अगस्त में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने कहा था, "मुफ्त योजनाओं की परिभाषा सुप्रीम कोर्ट ही तय करे। योजनाओं पर पार्टियां क्या नीति अपनाती हैं उसे नियंत्रित करना चुनाव आयोग के अधिकार में नहीं है। चुनावों से पहले ऐसे वादे करना और चुनाव के बाद उसे देना पार्टियों का नीतिगत फैसला होता है। इस बारे में नियम बनाए बिना कोई कार्रवाई करना चुनाव आयोग की शक्तियों का दुरुपयोग करना होगा।"