सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के निजी कॉलेज को लगाई फटकार, हिजाब पर लगे प्रतिबंध को हटाया
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुंबई के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज को फटकार लगाते हुए हिजाब, टोपी और बुर्का पहनने पर लगाए प्रतिबंध को हटाने का आदेश दिया। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और संजय कुमार की पीठ ने कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया और कॉलेज के निर्देश पर आश्चर्य जताया। याचिका में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को भी चुनौती दी गई थी, जिसने कॉलेज निर्देशों को बरकरार रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज से क्या कहा?
लाइव लॉ के मुताबिक, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, "यह सब क्या है, ऐसा नियम मत लगाइए, क्या उनके नाम से उनका धर्म पता नहीं चलेगा? क्या आप उन्हें संख्याओं से पहचानने के लिए कहेंगे? उन्हें एकसाथ अध्ययन करने दीजिए।" कॉलेज की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान ने कहा कि यह एक निजी संस्थान है तो न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि कॉलेज 2008 से अस्तित्व में है और इतने सालों में आपको अचानक यह एहसास हुआ कि ये धर्म है।
तिलक लगाने वाले को प्रतिबंधित करेंगे- न्यायमूर्ति खन्ना
न्यायमूर्ति ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कॉलेज इतने सालों में अब ऐसा निर्देश लेकर आया है। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि क्या कॉलेज कहेगा कि वह तिलक लगाने वालों को भी प्रतिबंधित करेगा? दीवान ने दलील दी कि कॉलेज में 411 मुस्लिम छात्राएं हैं, सभी खुशी से पढ़ रही हैं, लेकिन कुछ ने ही आपत्ति जताई है। इस पर न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि यह छात्राओं पर निर्भर होगा कि वह क्या पहनना चाहती हैं।
कक्षा में हिजाब पहनने के आदेश पर हस्तक्षेप नहीं
दीवान ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि कक्षा में हिजाब या बुर्का पढ़ाई के दौरान बातचीत में बाधा डालता है, जिस पर पीठ ने सहमति जताई। पीठ ने कहा कि कक्षा में चेहरा ढकने की अनुमति नहीं दे सकते। पीठ ने नकाब को रोकने वाले निर्देशों के उस हिस्से में हस्तक्षेप नहीं किया। पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी कर कहा कि जवाब 18 नवंबर से शुरू सप्ताह में दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि आदेश का दुरुपयोग न हो।
क्या है मामला?
चेंबूर स्थित एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज ने जून 2024 से शुरू होने वाले नए शैक्षणिक सत्र में नया ड्रेस कोड लागू करते हुए हिजाब, नकाब, बुर्का, टोपी और स्टोल पहनने पर प्रतिबंध लगाया था। कॉलेज के इस आदेश के खिलाफ 9 मुस्लिम छात्राएं बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच गई थीं और आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। 26 जून को हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कॉलेज के आदेश को सही बताते हुए याचिका खारिज की थी।