सुप्रीम कोर्ट ने आपातकाल को असंवैधानिक घोषित करने की याचिका पर केंद्र से मांगी राय
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट साल 1975 में इंदिरा गांधी सरकार की तरफ से देश में लागू किए गए आपातकाल को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।
सोमवार को मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए आपातकाल पर अपनी राय बताने को कहा है।
केंद्र सरकार की राय मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट याचिका पर अगली सुनवाई करेगा।
प्रकरण
94 वर्षीय वीरा सरीन ने दायर की है याचिका
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार 94 वर्षीय महिला वीरा सरीन ने गत दिनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए साल 1975 में लागू किए गए आपातकाल को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित करने की मांग की थी।
उन्होंने वरिष्ठ वरिष्ठ हरीश साल्वे के जरिए यह याचिका दायर की थी और आपातकाल के दौरान उनके पति की बेशुमार दौलत की हुई लूट की संबंधित अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय करते हुए 25 करोड़ रुपये के मुआवजे की भी मांग की थी।
आरोप
महिला ने याचिका में लगाए यह आरोप
याचिकाकर्ता सरीन अपनी बेटी के साथ देहरादून रहती है। उन्होंने 1957 में करोल बाग में उत्कर्ष कला और रत्न का व्यवसाय करने वाले एचके सरीन से विवाह किया था।
जून 1975 में आपातकाल में सीमा शुल्क अधिनियम के संदिग्ध उल्लंघन पर सरीन के व्यावसायिक परिसरों में छापे मारे गए और कीमती सामान, आभूषण और कलाकृतियां जब्त कर ली गईं।
याचिकाकर्ता के पति को विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी निरोधक अधिनियम के तहत हिरासत में भी रखा गया था।
मजबूर
अधिकारियों ने किया देश छोड़ने के लिए मजबूर
महिला ने याचिका में बताया कि उस समय के अधिकारियों ने उनके पति को अपनी सभी चल-अचल संपत्ति छोड़कर देश छोड़ने के लिए भी मजबूर किया था।
इसके बाद याचिकाकर्ता और उसके बच्चे विदेश चले गए, क्योंकि उनका अधिकांश माल और संपत्ति जब्त कर ली गई थी।
ऐसे में वह अपने लिए अलोकतांत्रिक दुःस्वप्न की तरह रहे आपातकाल को पूरी तरह से असंवैधानिक घोषित कराना चाहती है और ऐसा केवल सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है।
टिप्पणी
हम याचिका की वैधानिकता की करेंगे जांच- सुप्रीम कोर्ट
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एसके कौल, दिनेश माहेश्वरी और ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, "आपातकाल के 45 साल गुजर जाने के बाद 1975 के आपातकाल की संवैधानिक वैधता की जांच करने के बारे में हम यह देखेंगे कि क्या इस पर सुनवाई करना व्यावहारिक अथवा वांछनीय है या नहीं।"
पीठ ने कहा, "हम इसके सभी पहलुओं को खोलने के अनिच्छुक है क्योंकि उस दौरान कई लोगों के साथ गलत चीजें हुई होंगी और उन्हें कुरेदना अनुचित होगा।"
दलील
"इतिहास की कुछ घटनाओं को फिर से देखने की जरूरत"
याचिकाकर्ता के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पीठ से कहा कि सत्ता के दुरूपयोग के बारे में एक संवैधानिक सिद्धांत है और जब नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित किए जाने पर इन्हें लागू किया जा सकता है।
साल्वे ने कहा कि इतिहास की कुछ खास घटनाओं को फिर से देखने की जरूरत है। आपातकाल के दौरान एक लोकतांत्रिक देश में 19 महीनों तक नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, जो कि गलत था।
नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगी राय
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 45 साल पुराने मामले में मुआवजे का निर्धारित करना मुश्किल है। इस पर अधिवक्ता साल्वे ने कहा कि वह अपनी मुआवजे वाली याचिका वापस ले सकते हैं, लेकिन आपातकाल को असंवैधानिक घोषित किए जाने वाली मांग जायज है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें संशोधित याचिका दायर करने के निर्देश दिए और साथ ही मामले में केंद्र की राय जानने के लिए नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी।
जानकारी
25 जून, 1975 की रात को लागू हुआ था आपातकाल
बता दें 25 जून, 1975 की मध्यरात्रि को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा की थी। इसके बाद मार्च 1977 को इस आपातकाल के खत्म करने की घोषणा की गई थी।