सबरीमाला मंदिर: आज आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जानिये क्या है यह पूरा मामला
क्या है खबर?
केरल के सबरीमाला मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट आज अपना सुनाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 28 सितंबर को इस मामले में फैसला दिया था, जिसमें महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिया गया था।
इस फैसले के विरोध में कई संगठनों ने पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को इन्ही याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा।
इस फैसले से पहले आइये जानते हैं कि यह पूरा विवाद क्या है और इसकी जड़ें कहां से जुड़ी हैं।
सबरीमाला मंदिर
ब्रह्मचारी माने जाते हैं सबरीमाला मंदिर में स्थापित भगवान अयप्पा
सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा की पूजा की जाती है। भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी माना जाता है।
मान्यता है कि माहवारी वाली महिला के संपर्क में आते ही अयप्पा की शक्ति कम हो जाती है। इस कारण मंदिर में 10 से 50 साल तक की उम्र वाली महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी।
जिसके खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दे दी थी।
विवाद की शुरुआत
कन्नड़ अभिनेत्री के दावे से यह विवाद बना बवंडर
सबरीमाला मंदिर विवाद की शुरुआत तब हुई जब मंदिर के मुख्य ज्योतिष परप्पनगडी उन्नीकृष्णन ने दावा किया कि किसी महिला के संपर्क में आने से भगवान अयप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं।
इसके बाद कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया कि साल 1987 में जब वह अपने पति अभिनेता प्रभाकरण के साथ सबरीमाला गई थी, तब भीड़ के दवाब में गर्भगृह तक पहुंच गई थी।
तब जयमाला ने दावा किया कि उन्होंने अयप्पा की मूर्ति को छुआ था।
मामला
सुप्रीम कोर्ट में आया मामला
जयमाला के इस दावे के बाद केरल में बड़ा हंगामा हुआ। महिलाओं के प्रवेश पर लगे सालों पुराने प्रतिबंध के खिलाफ केरल के 'यंग लॉयर्स एसोसिएशन' ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद भी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगी रही।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 नवंबर, 2017 को अपना रुख जाहिर करते हुए कहा कि वह सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के पक्ष में है।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की जीत पर लगाई मुहर
विवाद पर 28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया, कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि, हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी।
फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा था कि हमारी संस्कृति में महिलाओं को आदरणीय स्थान हासिल है। ऐसे में उन्हें किसी परंपरा के तहत मंदिर में प्रवेश से रोकना कानूनन गलत होगा।
विरोध
बड़े स्तर पर हुआ था कोर्ट के फैसले का विरोध
कई हिंदूवादी संगठन और राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।
इसे लेकर राजनीतिक पार्टियों में भी खूब खींचतान रही थी। एक तरफ जहां राज्य सरकार मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को सुनिश्चित करने की कोशिश में थी, वहीं कांग्रेस और भाजपा समेत कई पार्टियां मंदिर में महिलाओं की एंट्री का विरोध कर रही थी।
हालांकि, इस बीच कई महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश कर भगवान अयप्पा के दर्शन कर लिए।
इतिहास
बिंदु अम्मिनी और कनकदुर्गा ने सबसे पहले किए दर्शन
कई संगठन मंंदिर में महिलाओं की एंट्री का विरोध कर रहे थे। कई बार प्रदर्शनकारियों ने मंदिर जा रही महिलाओं का रास्ता भी रोका।
भारी विरोध के बीच जनवरी में कनकदुर्गा और बिंदु अम्मिनी नामक दो महिलाएं पुलिस सुरक्षा के साथ मंदिर में प्रवेश करने में कामयाब रही थी।
इन दोनों महिलाओं ने सालों से चली आ रही परंपरा को तोड़ते हुए इतिहास रच दिया था। इनके बाद कई और महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश का दावा किया।
टाइमलाइन
क्या है इस मामले की पूरी टाइमलाइन?
1990 में पहली बार मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी गई।
1991 में कोर्ट ने कहा कि ये प्रतिबंध सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है और महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध जारी रखा।
2006 में इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर इस परंपरा को चुनौती दी। एसोसिएशन ने इस परंपरा को भेदभावपूर्ण और लैंगिक समानता के खिलाफ बताया।
फैसला
पुनर्विचार याचिकाओं पर कल आएगा फैसला
2008 में इस मामले को तीन जजों की बेंच को सौंपा गया। राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने यथास्थिति बनाए रखने का पक्ष लिया।
आठ साल बाद 2016 में सुनवाई के लिए याचिका दायर की गई।
2017 में सुनवाई के लिए संवैधानिक बेंच का गठन हुआ। राज्य की CPI (M) सरकार ने महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
2019 में पुनर्विचार याचिकाओं पर फैसला आएगा।