पंजाब में लंपी वायरस के कारण 2,100 पशुओं की मौत, 60,000 से अधिक बीमार
पंजाब में लंपी वायरस के कारण अब तक 21,00 से अधिक पशुओं की मौत हो चुकी है और 60,000 से अधिक इससे संक्रमित है। राज्य के पशुपालन विभाग के एक अधिकारी ने जानकारी दी कि शुक्रवार तक पंजाब में 2,114 पशुओं की लंपी वायरस से मौत हो चुकी थी, जबकि 60,329 में इसके संक्रमण की पुष्टि हुई थी। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्थिति पर नजर रखने और बीमारी का प्रसार रोकने के लिए तीन मंत्रियों का समूह गठित किया है।
क्या है लंपी वायरस?
पशु चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, लंपी वायरस (LSD) जानवरों में को होने वाला एक बेहद संक्रामक चर्म रोग है। यह पॉक्स वायरस से जानवरों में फैलती है। यह बीमारी मच्छर और मक्खी के जरिए एक से दूसरे पशुओं तक पहुंचती है। इसके अलावा यह खून चूसने वाले कीड़े, मक्खियों की कुछ प्रजातियों, दूषित भोजन और पानी के जरिए भी फैलता है। संक्रमण के बाद समय रहते इलाज नहीं होने पर जानवर तड़पकर दम भी तोड़ देते हैं।
क्या कदम उठा रही पंजाब सरकार?
अधिकारी ने बताया कि राज्य सरकार बीमारी का प्रसार रोकने के लिए कई कदम उठा रही है। पंजाब में पशुओं को गॉट पॉक्स वैक्सीन दी जा रही है। शुक्रवार को 30,000 पशुओं को इसकी खुराकें दी गईं और विभाग का लक्ष्य इस आंकड़े को बढ़ाकर 50,000 खुराकें प्रतिदिन देना है। अभी तक कुल 1.45 लाख पशुओं को यह वैक्सीन दी जा चुकी है। सरकार ने मृत पशुओं को खुले में न छोड़कर जमीन में गहरा दफनाने का अपील की है।
पशु मेलों पर लगी रोक
बीमारी पर रोक लगाने के लिए पंजाब सरकार ने राज्य में आयोजित होने वाले पशु मेलों पर रोक लगा दी है। साथ ही दूसरे राज्यों से पंजाब में पशुओं के प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई है। बता दें कि पंजाब के अलावा उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, और अंडमान-निकोबार में इस बीमारी के मामले सामने आ रहे हैं। सबसे पहले 4 जुलाई को पंजाब में इसका पहला मामला सामने आया था।
क्या हैं लंपी वायरस के लक्षण?
इस बीमारी में पशु के शरीर पर छोटी-छोटी गाठें बनती है जो बाद में बड़ी हो जाती हैं। जानवरों के शरीर पर जख्म दिखने लगते हैं और वह खाना कम कर देता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटने लगती है। शुरुआत में पशु को दो से तीन दिन के लिए हल्का बुखार रहता है। जानवरों के मुंह, गले, श्वास नली तक इस बीमारी का असर दिखता है। मुंह से लार निकलने के साथ आंख-नाक से भी स्राव होता है।
उपचार नहीं मिलने पर हो सकती है जानवरों की मौत
विशेषज्ञों के अनुसार, इस बीमारी के कारण जानवरों के लिंफ नोड में सूजन, पैरों में सूजन, दूध उत्पादकता में कमी, गर्भपात, बांझपन की समस्या के साथ समय पर उपचार नहीं मिलने पर मौत भी हो जाती है। हालांकि, ज्यादातर संक्रमित जानवरों दो से तीन सप्ताह में ठीक हो जाते हैं, लेकिन दूध के उत्पादन में कई सप्ताह तक कमी बनी रहती है। इस बीमारी में मृत्यु दर 15 प्रतिशत है और संक्रमण दर 10-20 प्रतिशत रहती है।