भारत में कोरोना वायरस महामारी को हुआ एक साल, इन परेशानियों से गुजरा देश
क्या है खबर?
पूरी दुनिया को घुटनों पर लाने वाली कोरोना वायरस महामारी को आज भारत में एक साल पूरा हो गया है।
पिछले साल 30 जनवरी के दिन देश में इसका पहला मामला सामने आया था। इस एक साल में महामारी ने 1.54 लाख लोगों की जिंदगी हर ली और करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर दिया। हालांकि, अब देश महामारी को मात देने के मुहाने पर खड़ा है।
ऐसे में आइए जानते हैं महामारी के एक साल देश किन-किन परेशानियों से गुजरा।
शुरुआत
केरल में सामने आया था देश का पहला मामला
भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला केरल में सामने आया था। 30 जनवरी, 2020 को चीन के वुहान से लौटी केरल की छात्रा के कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई थी।
इसके बाद सरकार ने सतर्कता बरतना शुरू कर दिया था। इसके बाद 2 और 3 फरवरी को वुहान से वापस लौटे केरल के दो और छात्रों को संक्रमित पाया गया था।
इसको देखते हुए सरकार ने 14 मार्च को कोरोना वायरस बीमारी को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया था।
जानकारी
देश में सऊदी अरब से लौटे 76 वर्षीय बुजुर्ग की हुई थी पहली मौत
भारत में कोरोना से पहली मौत 14 मार्च को कर्नाटक के कलबुर्गी में 76 वर्षीय बुजुर्ग की हुई थी। इस बुजुर्ग को सऊदी अरब से लौटने के बाद निमोनिया और सांस लेने में तकलीफ थी। 14 मार्च के उपचार के दौरान उसने दम तोड़ दिया।
लॉकडाउन
सरकार ने 25 मार्च से की थी देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा
देश में 14 मार्च तक संक्रमण के 100 मामले होने के बाद सरकार ने इसके प्रसार को रोकने के प्रयास तेज कर दिए थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की घोषणा की थी और 24 मार्च की रात को 25 मार्च से 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी।
इसके बाद से देश की परेशानियों का सिलसिला शुरू हो गया, जो अभी तक पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है।
प्रवासी मजदूर
लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों सहित करोड़ों की छिनी नौकरी
लॉकडाउन के कारण देश की लगभग सभी आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह बंद हो गई। इसके कारण प्रवासी मजदूरों सहित करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई। महामारी का डर और खाने की कमी से प्रवासी मजदूरों ने पैदल ही घरों की ओर कूच शुरू कर दिया।
वाहनों के बंद होने से मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चले। इस दौरान उन्हें कई-कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ा।
इस दौरान विभिन्न हादसों में बहुत से लोगों की मौत हो गई थी।
जानकारी
विदेशों में फंसे प्रवासी भारतीय
सरकार के अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर रोक लगाने के बाद लाखों प्रवासी भारतीय विदेशों में फंस गए। सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने सरकार से उन्हें भारत बुलाने की गुहार लगाई। इसके बाद मई में वंदे भारत मिशन के तहत विशेष उड़ानों से उन्हें लाया गया।
प्रवासी स्पेशल
प्रवासी स्पेशल ट्रेनों में हुई कुल 84 लोगों की मौत
प्रवासी मजदूरों के पैदल घर लौटने और रास्ते में उनके भूखे रहने पर सरकार पर विपक्ष ने दबाव डालना शुरू कर दिया। सरकार ने 1 मई से प्रवासी मजदूर स्पेशल ट्रेनें चलानी शुरू कर दी।
सरकारी अव्यवस्थाओं के कारण इससे भी मजदूरों को राहत नहीं मिली। ट्रेनों में श्रमिकों को समय पर खाना-पानी नहीं मिला।
इसके कारण इन ट्रेनों में यात्रा के दौरान कुल 84 मजदूरों की मौत हो गई।
कालाबाजी
मास्क, सैनिटाइजर और PPE किट की कमी से कारण शुरू हुई कालाबाजारी
महामारी की शुरुआत में देश में मास्क, सैनिटाइजर और PPE की पर्याप्त उपलब्धता नहीं थी। अचानक मांग के बढ़ने पर व्यापारियों और कंपनियों ने इनका स्टॉक करते हुए कालाबाजी शुरू कर दी।
हालत यह हो गई कि दो रुपये कीमत वाला मास्क 20 रुपये पर पहुंच गया।
इसके बाद केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कालाबाजारी को रोकने के लिए 13 मार्च को फेस मास्क और सैनिटाइजर को 100 दिन के लिए आवश्यक वस्तु घोषित कर दिया था।
मेडिकल असुविधा
अस्पतालों में आई वेंटीलेटर और बेडों की कमी
17 मई के बाद लॉकडाउन में ढील के बाद संक्रमण के मामलों में तेजी से हुआ। इसके कारण अस्पतालों में वेंटीलेटर और बेडों की कमी आ गई।
अस्पतालों ने मरीजों को भर्ती करने इनकार कर दिया। इससे कई लोगों की मौतें हो गई।
बाद में सरकार ने मरीजों के इलाज के लिए सरकारी भवन, होटलो, ट्रेन के डिब्बों और मैदानों में अस्थाई अस्पताल बनाना शुरू कर दिया।
इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशी वेंटीलेटर तैयार कराना शुरू किया गया।
जानकारी
कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार में आई बाधाएं
महामारी के डर से लोगों ने कोरोना से जान गंवाने वालों के श्मशान और कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार पर रोक लगा दी। कई जगहों पर तो झगड़ेे भी हुए। इसी तरह सरकारी पाबंदियों के कारण कई लोग अपनों का अंतिम संस्कार भी नहीं कर सके।
भेदभाव
कोरोना महामारी ने देश में बढ़ाया भेदभाव
कोरोना महामारी ने देश में बड़े स्तर पर भेदभाव को जन्म दिया। महामारी के डर से लोग अपनी जान पर खेलकर मरीजों की जान बचाने वाले डॉक्टर और चिकित्साकर्मियों से भेदभाव करने लग गए।
यहां तक की लोगों ने उनसे घर खाली करा दिए और बाजार में कई बाद अभद्रता की गई।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब सहित अन्य राज्यों में चिकित्साकर्मियों और डॉक्टरों पर हमले किए गए। इनके गांवों में घुसने पर रोक लगा दी गई।
जानकारी
चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा के लिए लागू किया अध्यादेश
चिकित्सा टीमों पर होते हमलों को रोकने के लिए सरकार 22 अप्रैल को राष्ट्रीय महामारी कानून में बदलाव कर नया अध्यादेश लेकर आई। इसमें चिकित्सा टीम पर हमला करने पर दोषियों को सात साल जेल और पांच लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया था।
वैक्सीनेशन
वैक्सीन आई, लेकिन....
महमारी से लंबी जंग के बाद सरकार ने गत 16 जनवरी से देश में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) की 'कोविशील्ड' और भारत बायोटेक की 'कोवैक्सिन' के साथ वैक्सीनेशन की शुरुआत कर दी है।
पहले चरण में चिकित्साकर्मी और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को वैक्सीन दी जा रही है। हालांकि, चिकित्साकर्मियों में वैक्सीनों को लेकर संदेश है और वह इसे लगवाने से कतरा रहे हैं।
प्रतिदिन महज 50-60 प्रतिशत चिकित्साकर्मी ही वैक्सीन लगवाने पहुंच रहे हैं।
जानकारी
चिकित्साकर्मियों में वैक्सीन को लेकर यह है डर
चिकित्साकर्मियों का कहना है कि 'कोवैक्सिन' को बिना क्लिनिकल ट्रायल पूरा किए इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है। ऐसे में इसे लगवाने से गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। इसी तरह उनका मानना है कि सरकार ने मंजूरी देने में जल्दबाजी की है।
मौजूदा स्थिति
वर्तमान में यह है महामारी की स्थिति
अभी देश में रोजाना औसतन 12,000-14,000 नए मामले सामने आ रहे हैं और पिछले कुछ दिन से दैनिक मौतों की संख्या 150 से कम बनी हुई है।
सक्रिय मामलों में भी बड़ी गिरावट आई है और ये 10.17 लाख के चरम से 85 प्रतिशत कम होकर अभी महज 1.70 लाख रह गए हैं। रिकवरी रेट लगभग 97 प्रतिशत है।
देश में कुल 1,07,33,131 लोगों को संक्रमित पाया जा चुका है और 1,54,147 लोगों की मौत हुई है।