उत्तराखंड: ऋषिगंगा के पास बनी एक और झील, फिर से बाढ़ आने का खतरा
उत्तराखंड के चमोली जिले में आई बाढ़ के बाद से बचाव अभियान जारी है। बचाव टीमें लापता लोगों का पता लगाने में जुटी है। इसी बीच एक और डराने वाली खबर सामने आई है। दरअसल, बाढ़ के साथ आए मलबे के कारण ऋषिगंगा और त्रिशूल नाले के मुहाने पर एक और झील का निर्माण हो गया है। ऐसे में इलाके में फिर से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। हालांकि, सरकार ने इसकी जांच शुरू कर दी है।
बाढ़ से अब तक हो चुकी है 36 की मौत
गत रविवार को जोशीमठ के तपोवन में नंदा देवी ग्लेशियर का एक टुकड़ा टूट गया जिससे अलकनंदा और धौली गंगा नदियों में बाढ़ आई थी। इससे तपोवन में अलकनंदा नदी पर बना ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट का एक बांध टूट गया था। बाढ़ से तपोवन-विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना को भी नुकसान पहुंचा था। बचाव टीमों ने अब तक 36 शव बरामद कर लिए हैं। इसके अलावा अभी भी 168 लोग लापता बताए जा रहे हैं। उनकी तलाश जारी है।
भू-वैज्ञानिक डॉ नरेश राणा ने की नई झील की पहचान
ऋषिगंगा के मुहाने पर बनी इस झील का पता क्षेत्र के ग्रामीण और गढ़वाल विश्वविद्यालय के भू-वैज्ञानिक डॉ नरेश राणा ने लगाया है। राणा ने बताया कि मलबे से बनी झील के कारण ऋषिगंगा अवरुद्ध हो गई है। जिससे भविष्य में फिर बाढ़ के हालात बन सकते हैं। उपग्रह से ली गई फोटो में भी यह झील नजर आ रही है। जबकि, साल 2015 की उपग्रह की फोटो में इस क्षेत्र में कोई भी झील नजर नहीं आ रही थी।
350 मीटर लंबी है नई झील
इंडिया टुडे के अनुसार केंद्रीय जल आयोग ने उपग्रह फोटो के आधार पर नई झील के 350 मीटर लंबी, 60 मीटर गहरी और करीब 10 डिग्री के ढलान पर स्थित होने का अनुमान लगाया है। ऐसे में यह भविष्य में बड़ा खतरा बन सकती है।
राणा ने बनाया झील का वीडियो
उपग्रह फोटो में झील के नजर आने के बाद राणा ने मौके पर पहुंचकर अधिक जानकारी जुटाने का प्रयास किया। उन्होंने हेलीकॉप्टर के जरिए झील का वीडियो भी बनाया है। उन्होंने कहा कि झील का रंग नीला दिखाई दे रहा है और इसमें यह ताजा पानी पिछले कुछ दिनों में ही एकत्र हुआ है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि मलबे के कारण ऋषिगंगा अवरुद्ध हो गई और भविष्य में यदि यह टूटती है तो भयानक बाढ़ आ सकती है।
यहां देखें झील का वीडियो
सरकार द्वारा की जा रही है झील की निगरानी- मुख्यमंत्री
मामले में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि सरकार नई झील की निगरानी कर रही है। जांच के लिए उपग्रह की फोटो की भी मदद ली जा रही है। झील की लंबाई करीब 300-400 मीटर है, लेकिन गहराई का आंकलन नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि जांच के लिए भू-वैज्ञानिकों की एक टीम को हेलीकॉप्टर के जरिए भेजा गया है। इसके अलावा एक टीम को पुख्ता जांच के लिए वहीं छोड़ने की भी तैयारी की गई है।
जांच के लिए टीम का प्रशिक्षित होना जरूरी- मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि झील की जांच के लिए टीम का प्रशिक्षित होना बहुत जरूरी है। वायुसेना भी जांच के लिए तैयार है। ऐसे में प्रशिक्षित लोगों की टीम तैयार होने के बाद जांच के लिए विशेष टीम को भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि झील को लेकर लोगों में डर बना हुआ है, लेकिन यह डरकर परेशान होने की जगह जागरुक होने का समय है। जागरुकता के साथ ही आपात स्थिति से आसानी से निपटा जा सकता है।
आपदा प्रबंधन सचिव ने विभिन्न एजेंसियों को लिखा पत्र
इधर, आपदा प्रबंधन सचिव एसए मुरुगेशन ने अलग-अलग एजेंसियों को पत्र लिखकर झील की जांच के लिए कहा है। सचिव की ओर से जारी पत्र में कहा गया कि इस मामले की तहकीकात कर शासन को रिपोर्ट उपलब्ध कराई जाए। नदी में अचानक पानी बढ़ने से बचाव कार्य को कुछ समय के लिए रोकना पड़ा था। यह अभी तक साफ नहीं है कि पानी क्यों बढ़ा। विशेषज्ञों ने ऊपरी इलाके में अब भी कुछ बदलाव होने की बात कही है।