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    मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर सचमुच सख्त या महज एक तिलिस्म?

    मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर सचमुच सख्त या महज एक तिलिस्म?
    लेखन मुकुल तोमर
    Mar 27, 2019, 04:58 pm 1 मिनट में पढ़ें
    मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा पर सचमुच सख्त या महज एक तिलिस्म?

    मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार के बारे में जो एक बात सबसे अधिक दावे के साथ कही जाती है, वो ये कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर पिछली सरकारों के मुकाबले सख्त है। एक आम राय है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में मोदी सरकार ने बेहतर परिणाम दिए हैं। लेकिन क्या सचमुच ऐसा है या फिर यह एक और ऐसा विचार है जो सरकार और भाजपा के 'प्रोपगैंडा' के बलबूते मजबूत हुआ है। आइए इसकी पड़ताल करते हैं।

    मोदी राज में सुरक्षा बलों पर हुए 3 बड़े आतंकी हमले

    हम प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में हुए 3 सबसे बड़े आतंकी हमलों की बात करेंगे। पठानकोट, उरी और पुलवामा में सुरक्षा बलों पर हुए ये तीनों हमले बेहद गंभीर सवाल खड़े करते हैं। विशेषकर इसलिए, क्योंकि इन तीनों हमलों के बारे में पहले से खुफिया जानकारी थी। यह सही है कि खुफिया जानकारियों के बावजूद सारे हमलों को रोक पाना मुश्किल होता है, लेकिन एक के बाद एक तीन सुरक्षा ठिकानों पर हमले होना इस मोर्चे पर नाकामी दिखाता है।

    खुफिया जानकारी के बावजूद हुआ पठानकोट एयरबेस पर हमला

    मोदी सरकार के कार्यकाल में आतंकियों ने सबसे पहले 2 जनवरी, 2016 को पंजाब के पठानकोट एयरबेस को निशाना बनाया। सुबह 3 बजे के करीब जैश-ए-मोहम्मद के 4 हमलावरों ने एयरबेस पर हमला किया। हमले में 7 सैन्यकर्मी शहीद हुए। आतंकी ऐसा कोई हमला कर सकते हैं, इसकी पहले ही खुफिया जानकारी थी। आतंकियों ने एयरबेस पहुंचने के लिए गुरदासपुर SP सलविंदर सिंह की गाड़ी का इस्तेमाल किया था, जिन्होंने जानकारी दी कि हमलावर सेना की वर्दी में हैं।

    एयरबेस में छिपे 2 आतंकी, फिर भी गृह मंत्री ने की ऑपरेशन समाप्त होने की घोषणा

    इस सबके बावजूद आतंकी बेहद सुरक्षित और अलर्ट पठानकोट एयरबेस को निशाना बनाने में कामयाब रहे। सरकार कितनी चौंकन्नी थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2 जनवरी की शाम को ही गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑपरेशन को सफल करार दे दिया, जबकि 2 आतंकी अभी भी एयरबेस में छुपे हुए थे, जिन्हें बाद में मार गिराया गया। हमले की खुफिया जानकारी और पुख्ता सुरक्षा इंतजाम होने के बावजूद यह मुठभेड़ 17 घंटे चली।

    पठानकोट से सबक नहीं लिया तो हुआ उरी में हमला

    मोदी राज में दूसरा बड़ा हमला 18 सितंबर, 2016 को सेना के उरी कैंप पर हुआ। हमले को फिर से जैश ने अंजाम दिया। आतंकियों ने सोते हुए और निहत्थे सैनिकों पर हमला किया और इसमें 17 जवान शहीद हुए। पठानकोट हमले की तरह इस हमले की भी पहले से खुफिया जानकारी थी, लेकिन इसके बावजूद आतंकी अपने मंसूबों को अंजाम देने में कामयाब रहे। हमले से साबित हुआ कि सरकार ने पठानकोट हमले से कोई सबक नहीं लिया था।

    सुरक्षा के स्तर पर बहुत बड़ी चूक का परिणाम था पुलवामा हमला

    सुरक्षा बलों पर तीसरा और सबसे बड़ा हमला 14 फरवरी को पुलवामा में हुआ। यह कश्मीर के इतिहास में सुरक्षा बलों पर हुआ सबसे बड़ा हमला था। इस बड़े हमले की जैश काफी समय से तैयारी कर रहा था, जिसकी खुफिया जानकारी लगातार दी जा रही थी। इसके बावजूद सुरक्षा में बड़ी चूक हुई और फियादीन आदिल अहमद डार विस्फोटकों से भरी गाड़ी से CRPF के काफिले को निशाना बनाने में सफल रहा। हमले में 40 जवान शहीद हुए।

    सरकार का सख्त जवाब लेकिन फायदा क्या?

    उरी और पुलवामा हमले के बाद सर्जिकल और एयर स्ट्राइक कर सरकार ने पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया। लेकिन ज्यादा अहम ये है कि खुफिया जानकारी के बावजूद ये हमले क्यों हुए। हमले होते रहें और हम जवाब देते रहे, यह सही रणनीति नहीं लगती।

    क्या असफल साबित नहीं हुए NSA अजीत डोभाल?

    सुरक्षा और खुफियां एजेंसियों के बीच सामंजस्य बनाने का काम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का होता है। मौजूदा NSA अजीत डोभाल के कार्यकाल में एक के बाद एक सुरक्षा बलों पर 3 बड़े आतंकी हमले हुए, लेकिन सरकार ने कभी इसे उनकी असफलता नहीं माना। शायद ही कहीं ऐसा होता हो कि किसी NSA की देखरेख में सुरक्षाबलों पर इतने बड़े हमले हो जाए और इसके लिए उनकी जवाबदेही तय करने की बजाय उन्हें 'जेम्स बांड' की तरह पेश किया जाए।

    किस आधार पर अपने कार्यकाल में कोई आतंकी हमला नहीं होने का दावा करती रही सरकार?

    मोदी सरकार न केवल इन सुरक्षा और खुफिया असफलताओं के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई करने में नाकाम रही, बल्कि हाल ही तक उसने यह प्रचार किया कि उसके कार्यकाल में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ। ये दावा सरकार की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।

    क्या सरकार कह सकती है चौथा हमला नहीं होगा?

    सुरक्षाबलों पर एक के बाद एक 3 बड़े आतंकी हमले और इन्हें रोक पाने में नाकामी मोदी सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर मजबूत होने के 'तिलिस्म' को तोड़ती है। आज यह 'मजबूत सरकार' इस बात का कोई पुख्ता जवाब नहीं दे सकती कि जब दो के बाद तीसरा हमला हो सकता है, तो यह क्यों न माना जाए कि तीसरे के बाद चौथा हमला भी हो सकता है और सरकार उसे रोकने में नाकामयाब रहेगी।

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