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    जोशीमठ में भू-धंसाव: विशेषज्ञों ने की हिमालय को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने की मांग

    जोशीमठ में भू-धंसाव: विशेषज्ञों ने की हिमालय को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने की मांग
    लेखन भारत शर्मा
    Jan 29, 2023, 03:02 pm 1 मिनट में पढ़ें
    जोशीमठ में भू-धंसाव: विशेषज्ञों ने की हिमालय को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने की मांग
    जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव को देखते हुए विशेषज्ञों ने हिमालय क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने की मांग की है

    उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव ने लोगों और सरकार को चिंतित कर रखा है। वर्तमान में प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जा रहा है और अधिक बड़ी दरारों वाले मकानों को लाल रंग से चिह्नित कर गिराने का काम जारी है। इस बीच विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के यह प्रसास इस समस्या के समाधान के लिए नाकाफी हैं और पूरे हिमालय क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन घोषित किया जाना चाहिए।

    विशेषज्ञों ने मामले को लेकर पारित किया प्रस्ताव

    इस मामले को लेकर शनिवार को स्वदेशी जागरण मंच (SJM) की ओर से 'इमीनेट हिमालयन क्राइसिस' विषय पर आयोजित एक गोलमेज सम्मेलन में विशेषज्ञों ने एक प्रस्ताव पारित किया है। इसमें पूरे हिमालय क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करने की मांग की गई है। प्रस्ताव में कहा गया है कि मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयास नाकाफी है और इससे निपटने के लिए नीतिगत फैसले लेने होंगे।

    अन्य जिलों में भी आ सकती है ऐसी स्थिति- विशेषज्ञ

    विशेषज्ञों ने प्रस्ताव में कहा कि जोशीमठ के बाद अब नैनीताल, मसूरी और गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में भी इसी तरह की स्थिति पैदा हो सकती है। ऐसे में सरकार को समस्या के समाधान के लिए दीर्घकालिक उपाय करने पर विचार करना चाहिए। इसके लिए सरकार को सबसे पहले हिमालय क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन घोषित करना चाहिए और क्षेत्र में चल रही सभी तमाम बड़ी परियोजनाओं को विनियमित करना चाहिए। इससे भविष्य में बड़ा फायदा होगा।

    विशेषज्ञों ने और क्या दिए हैं सुझाव?

    विशेषज्ञों ने कहा कि उत्तराखंड की क्षमता का विस्तृत विश्लेषण कर आने वाले पर्यटकों की संख्या का हिसाब रखा जाना चाहिए। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पर्यटकों की भीड़ से पर्यावरण पर दबाव न पड़े। उन्होंने कहा कि चारधाम मार्ग के निर्माण के लिए जोशीमठ की तलहटी में पहाड़ को अनुचित रूप से काटा गया था और NTPC (नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन) ने बिना उचित हाइड्रोजियोलॉजिकल अध्ययन के पहाड़ के बीच सुरंग खोद दी थी।

    विशेषज्ञों ने वर्तमान स्थिति के लिए इन्हें भी ठहराया जिम्मेदार

    विशेषज्ञों ने प्रस्ताव में कहा कि क्षेत्र में बने ऊंचे-ऊंचे होटलों और भवनों के मजबूत और अनियोजित निर्माण के कारण पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है। इसने जोशीमठ की स्थिति को और अधिक अस्थिर और बोझिल बना दिया है। उन्होंने कहा कि इन सबके कारण आज जोशीमठ के आसपास का पूरा इलाका धंस रहा है और इसे बचाने का कोई तरीका नजर नहीं आ रहा है। ऐसे में सरकार को जल्द ही सख्त कदम उठाने चाहिए।

    जोशीमठ में भू-धंसाव क्यों हो रहा है?

    जोशीमठ में भू-धंसाव के असल कारण अभी तक पता नहीं चले हैं, लेकिन माना जा रहा है कि यहां हुए अनियोजित निर्माण कार्य, इलाके में क्षमता से ज्यादा आबादी का आवास, पानी के प्राकृतिक बहाव में बाधा और जलविद्युत परियोजनाओं के चलते ऐसे हालात बने हैं। इसके अलावा जोशीमठ ऐसे इलाके में स्थित हैं, जहां भूकंप आने की आशंका अधिक रहती है। पिछले कई सालों से कई रिपोर्ट में सरकारों को ऐसी स्थिति की आशंका से अवगत कराया गया था।

    वर्तमान में क्या है जोशीमठ के हालात?

    वर्तमान में जोशीमठ में जमीन धंसने के कारण 900 से अधिक इमारतों में दरारें पड़ चुकी हैं और इनमें से करीब 25 प्रतिशत इमारतों (225 इमारतों) को असुरक्षित श्रेणी में रखा गया है। चमोली के जिलाधिकारी (DM) हिमांशु खुराना के अनुसार, अब तक 300 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया है और अब तक अंतरिम राहत के रूप में जोशीमठ के 242 प्रभावित परिवारों को 3.62 करोड़ रुपये की राशि प्रदान की जा चुकी है।

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