जोशीमठ 2018 से हर साल 10 सेंटीमीटर की दर से धंस रहा- रिपोर्ट
एक एडवांस्ड सैटेलाइट विश्लेषण से पता चला है कि उत्तराखंड का जोशीमठ वर्ष 2018 से हर साल करीब 10 सेंटीमीटर की दर से धंस रहा है। ग्रीस की थेसालोनिकी यूनिवर्सिटी और स्टार्सबोर्ग यूनिवर्सिटी ने रिमोट सेंसिंग और भूस्खलन विशेषज्ञों द्वारा पिछले चार वर्षों में जोशीमठ की स्थिति को लेकर किए गए एक विश्लेषण के बाद यह रिपोर्ट जारी की है। आइए जानते हैं कि रिपोर्ट में भू-धंसाव को लेकर और क्या कहा गया है।
अस्थिर जमीन और खड़ी ढलानों पर बसा है जोशीमठ- रिपोर्ट
इंडिया टुडे के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ कई दशकों से अस्थिर जमीन और खड़ी ढलानों पर बसा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ में पिछले चार वर्षों में शहरीकरण, जल निकासी में समस्या, पानी का अनियंत्रित निर्वहन और ढलानों में कटान जमीन धंसने के प्रमुख कारण रहे हैं। बता दें कि पहले भी अन्य रिपोर्ट्स में बताया गया था कि जोशीमठ भूस्खलन के मलबे पर बसा हुआ है और शहर की नींव कमजोर हो गई है।
तस्वीरों में साफ दिख रहा है भू-धंसाव
सैटेलाइट से ली गईं तस्वीरों में दिख रहा है कि जोशीमठ का पूरा क्षेत्र धीरे-धीरे धंस रहा है। अलग-अलग समय पर खींची गई तस्वीरों में दो जोन चार वर्षों की अवधि के दौरान ढलान वाले क्षेत्र में धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर होते हुए दिख रहे हैं। ढलान के पूर्वी हिस्से (जोन 1) में जमीन का विस्थापन अधिक है, जबकि पश्चिमी हिस्से (जोन 2) में भी विस्थापन देखने को मिल रहा है।
कैसे तैयार की गई है रिपोर्ट?
यह रिपोर्ट इंटरफेरोमेट्रिक सिंथेटिक एपर्चर रडार (InSAR) तकनीक की मदद से तैयार की गई है। यह सैटेलाइट्स से ली गईं पृथ्वी की सतह की रडार तस्वीरों का उपयोग करते हुए धरती की सतह में हुए बदलावों को देखने की एक तकनीक है। इसमें अंतरिक्ष में समान दूरी के बिंदुओं से अलग-अलग समय पर ली गईं एक ही क्षेत्र की दो रडार तस्वीरों की तुलना एक-दूसरे से कर पृथ्वी की सतह में हुए बदलावों को समझा जाता है।
IIRS ने भी जमीन धंसने को लेकर जारी की थी रिसर्च
देहरादून स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) ने भी हाल ही में अपनी रिसर्च में बताया था कि जोशीमठ और आसपास के इलाके में हर साल 2.5 इंच की दर से जमीन धंस रही है। IIRS ने जुलाई, 2020 से मार्च, 2022 तक एकत्र की गई सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए बताया था कि लाल बिंदु जमीन धंसने वाला इलाका बताते हैं और ये लाल बिंदु पूरी घाटी में फैले हुए हैं।
और किन इलाकों में भी धंस रही है जमीन?
झारिया, रानीगंज, भुरकुंडा और तालचेर में स्थित कोयले की भूमिगत खादानों में भी जमीन धंसने की खबर है। यहां जमीन एक साल में 12 सेंटीमीटर की दर से धंस रही है। पिछले साल हिमाचल प्रदेश के चंबा में एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्लांट का ट्रायल शुरू होने पर आसपास के इलाकों में जमीन धंस गई थी। इसके अलावा दिल्ली और कोलकाता में भी अत्यधिक मात्रा में भूमिगत जल निकाले जाने के कारण कुछ घरों में दरारें आई हैं।