भारतीय कानून में हेट स्पीच को लेकर क्या प्रावधान हैं?
भारत में विवादित बयानों के आधार पर झगड़ा या हिंसा होना आम बात है। हाल ही में उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर भड़की हिंसा के प्रमुख कारणों में हेट स्पीच को भी प्रमुख माना जा रहा है। कानून के जानकार और अदालत उन नेताओं के बयानों का जिक्र कर रही हैं, जिसमें उन्होंने उग्र बातें बोली थीं। ऐसे में जानना जरूरी है कि भारत में हेट स्पीच को लेकर क्या कानूनी प्रावधान हैं। आइए जानें।
अभी क्यों हो रही है हेट स्पीच की बात?
दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनाव और दिल्ली में हिंसा शुरू होने से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने कई बार विवादित बयान दिए थे। जिन पर विरोध भी जताया गया था। दिल्ली हिंसा के बाद उन बयानों का मुद्दा उठा तो दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को पुलिस से विवादित बयान देने वालों के खिलाफ हेट स्पीच में मामला दर्ज करने पर विचार करने को कहा। पुलिस द्वारा समय मांगे जाने पर अब इस मामले में 13 अप्रैल को सुनवाई होगी।
क्या होता है हेट स्पीच का मतलब?
यहां सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर हेट स्पीच होती क्या है। आप आए दिन इस शब्द के बारे में सुनते हैं और आपको लगता है कि इसका मतलब घृणित भाषण होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार नस्ल, धर्म, लिंग के भेदभाव से किसी समूह विशेष के खिलाफ पूर्वाग्रह व्यक्त करने वाला कोई भी अपमानजनक या धमकी भरा लिखित या मौखिक बयान हेट स्पीच कहलाता है।
भारतीय कानून में क्या है हेट स्पीच की व्याख्या?
भारतीय कानून में हेट स्पीच को लेकर अलग से कोई व्याख्या नहीं की गई है। संविधान में दिए गए अभिव्यक्ति के आजादी के अधिकार पर ही आठ तरह के लगाम कसते हुए हेट स्पीच को परिभाषित किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के तहत यदि कोई भी व्यक्ति उन आठ बिंदुओं के तहत लिखित या मौखिक रूप से आपत्तिजनक बयान देता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई और सुनवाई का प्रावधान है।
इन विषयों पर नहीं दे सकते आपत्तिजनक बयान
अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार के तहत राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, कोर्ट की अवहेलना, मानहानि, हिंसा भड़काऊ, भारत की अखंडता व संप्रभुता पर आपत्तिजनक बयान नहीं दिया जा सकता है।
इस तरह से किया गया है सजा का प्रावधान
भारतीय दंड संहित की धारा 153(A) के तहत सजा का प्रावधान किया गया है। इस धारा के अनुसार धर्म, जाति, लिंग, रिहाइश, भाषा या समुदाय या अन्य ऐसे किसी आधार पर भेदभावपूर्ण रवैये के चलते बोला या लिखा गया कोई भी शब्द अगर किसी भी समूह विशेष के खिलाफ नफरत, रंजिश की भावनाएं भड़काता है या सौहार्द्र का माहौल बिगाड़ता है तो ऐसा करने वाले को तीन साल की सजा या जुर्माना अथवा दोनों दिया जा सकता है।
धारा 295 के तहत भी हो सकती है सजा
इस धारा के तहत लिखकर, बोलकर, सांकेतिक रूप से या अन्य माध्यम से किसी भी भारतीय नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने, धर्म को बेइज्जत करने या ऐसा करने की कोशिश करने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना अथवा दोनों दिया जा सकता है। इसी तरह धारा 499 में लिखित, मौखिक रूप से किसी व्यक्ति की समाजिक प्रतिष्ठा या इज्जत को नुकसान पहुंचाया जाता है तो दो साल तक की जेल या जुर्माना अथवा दोनों दिया जाता है।
धारा 124A के तहत हो सकती है आजीवन कारावास की सजा
यह धारा राजद्रोह से जुड़ी हुई है। इसमें भारत सरकार के विरुद्ध नफरत फैलाने या लिखित या मौखिक रूप से भड़काऊ बयान देने वाले को कुछ वर्षों की जेल से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकता है।
CRPC की धारा 95 के तहत राज्यों को है अधिकार
क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 95 के तहत देश के राज्यों को किसी प्रकाशन विशेष को प्रतिबंधित करने की शक्ति देता है। इस कोड के मुताबिक धारा 124A, धारा 153A या B, धारा 292 या 293 और धारा 295A के तहत अगर कोई प्रकाशन (अखबार, किताब या कोई भी दृश्यात्मक प्रकाशन) अपनी प्रकाशित सामग्री से आपत्तिजनक करार दिया जाता है तो केंद्र या भारत का कोई राज्य उसे प्रतिबंधित कर सकता है।
धारा 505 के तहत भी है सजा का प्रावधान
धारा 505 के तहत ऐसी अफवाह या खबरें आती है, जिससे जनता में डर बढ़ता है। इसमें धर्म, जाति या भाषा के प्रति भड़काऊ बयान भी आता है। इसमें दो साल तक की जेल या भारी जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है।
हेट स्पीच कानून को कठोर बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में लगी है याचिका
देश में लगातार बढ़ रहे विवादित बयान यानी हेट स्पीच को देखते हुए विधि आयोग ने हेट स्पीच कानून को और कठोर बनाने के लिए साल 2017 में सरकार के पास सिफारिश भेजी थी। इन सिफारिशों में कई नेताओं द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन होना बताने से अभी तक इन्हें लागू नहीं किया गया है। इसको लेकर भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर इसे लागू कराने की मांग की है।