रेप पीड़िता ने आरोपी से की शादी, समझौते के बाद हाई कोर्ट ने रद्द किया केस
क्या है खबर?
कर्नाटक हाई कोर्ट ने रेप के आरोप का सामना कर रहे 23 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई रद्द कर दी है। मामले में कोर्ट ने समझौते की इजाजत दी है।
कोर्ट ने कहा, "इस मामले में पिछली कार्रवाई को रद्द कर दिया जाए। साथ ही याचिकाकर्ता और वादी की रजामंदी के बाद समझौते को मान्य किया जाए।"
शख्स पर POCSO अधिनियम और IPC के तहत रेप का आरोप था।
आइए जानते हैं कोर्ट ने ऐसा फैसला क्यों दिया।
मामला
साल 2019 में शुरू हुआ था मामला
पीड़िता के पिता ने मार्च, 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी नाबालिग बेटी लापता है, जिसके बाद पुलिस को लड़की आरोपी के साथ मिली।
दोनों ने दावा किया कि उन्होंने जो कुछ भी किया, सहमति से किया।
उस वक्त लड़की की उम्र महज 17 साल थी और आरोपी 20 साल का था। आरोपी के खिलाफ POCSO एक्ट के तहत रेप का मामला दर्ज किया गया।
18 महीने जेल में रहने के बाद आरोपी को जमानत मिल गई थी।
रिहाई
आपसी सहमति से दोनों पक्ष ने शादी की
रिहाई के बाद आरोपी और लड़की ने संपर्क किया।
17 साल की लड़की ने 18 साल की उम्र के बाद आरोपी से नवंबर, 2020 में आपसी सहमति से शादी कर ली। एक साल बाद दंपति की एक बच्ची भी हुई। हालांकि उस वक्त मामला सेशन्स कोर्ट में लंबित था।
इसके बाद दोनों ने कोर्ट के सामने एक ज्ञापन प्रस्तुत किया। लड़की और आरोपी दोनों ने CrPC की धारा 320 के साथ पठित धारा 482 के तहत समझौता याचिका दायर की।
फैसला
हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त क्या कहा?
जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने बेंगलुरू ग्रामीण जिले की एक विशेष कोर्ट में आरोपी के खिलाफ लंबित कार्रवाई को रद्द कर दिया।
उन्होंने कहा, "ऐसी परिस्थितियों में अभियोजन पक्ष याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध को शायद ही साबित कर सकता है।"
कोर्ट ने कहा कि पहले भी महिला के साथ शादी के आधार पर आरोपी के खिलाफ कार्रवाई को रद्द किया गया है। उन निर्णयों का पालन करते हुए दोनों पक्षों के बीच समझौते को स्वीकार करना उचित है।
जानकारी
क्या है POCSO अधिनियम?
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने के लिए प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट (POCSO) बनाया गया है।
इस अधिनियम को साल 2012 में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था।
कानून के जरिए नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है।
इसके अंतर्गत अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है और ये बेहद कड़ा कानून है। इसमें जमानत भी नहीं मिलती है।