यौवन प्राप्त करने के बाद मर्जी से शादी कर सकती है नाबालिग मुस्लिम लड़की- हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने आज अपने एक फैसले में कहा कि मुस्लिम कानून के तहत यौवन प्राप्त कर चुकी एक नाबालिग लड़की माता-पिता की अनुमति के बिना शादी कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अपनी मर्जी से शादी करने वाली लड़की अगर खुश है तो सरकार को उसके निजी जीवन में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए। लड़की के माता-पिता की मंजूरी के बिना शादी करने वाले एक जोड़े की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये कहा।
क्या है पूरा मामला?
याचिका दायर करने वाले मुस्लिम जोड़े ने 11 मार्च को शादी की थी। दिल्ली की रहने वाली लड़की के माता-पिता के अनुसार, उनकी बेटी 15 साल की है, वहीं लड़का 25 साल का है। शादी से पहले माता-पिता ने 5 मार्च को द्वारका में लड़के के खिलाफ IPC की धारा 376 (रेप) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) कानून के तहत केस दर्ज कराया था। इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि लड़के ने लड़की का अपहरण किया है।
पुलिस लड़की को लड़के के पास से लाई, निर्मल छाया में रखा गया
शादी के बाद लड़की के माता-पिता की शिकायत के आधार पर पुलिस 27 अप्रैल को उसे उसके पति के घर से ले आई। इसके बाद उसे बाल कल्याण समिति (CWC) के सामने पेश किया गया जिसने उसे निर्मल छाया कॉम्प्लेक्स में रखने का निर्देश दिया।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान लड़की ने कहा- पीटते थे माता-पिता
इस बीच अप्रैल में ही जोड़े ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की और पुलिस सुरक्षा मांगी। उन्होंने अनुरोध किया कि उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जाए। सुनवाई के दौरान लड़की ने कोर्ट को बताया कि उसके माता-पिता नियमित तौर पर उसे पीटते थे और उन्होंने जबरन उसकी शादी किसी और से करने की कोशिश की। वहीं लड़की के वकील ने उसका आधार कार्ड दिखाते हुए कहा कि वह 19 साल की है और गर्भवती भी है।
सभी पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस जस्मीत सिंह की बेंच ने अपने आदेश में कहा, "यह साफ है कि मुस्लिम कानून के तहत यौवन प्राप्त कर चुकी लड़की माता-पिता की अनुमति के बिना शादी कर सकती है और अगर वह नाबालिग है तो भी उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार है।" कोर्ट ने आगे कहा, "इस मामले में याचिकाकर्ता प्यार में थे, उन्होंने मुस्लिम कानून के मुताबिक शादी की और फिर शारीरिक संबंध बने। पति पर POCSO नहीं लग सकता है।"
जून में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भी सुनाया था ऐसा ही फैसला
गौरतलब है कि जून में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने भी एक ऐसा ही फैसला सुनाया था। एक मुस्लिम दंपति की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था, "कानून साफ है कि एक मुस्लिम लड़की की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आती है। 16 साल से अधिक उम्र की होने के कारण याचिकाकार्ता नंबर दो (लड़की) अपनी पसंद के शख्स के साथ शादी का समझौता करने के योग्य है।"
न्यूजबाइट्स प्लस
मुस्लिम पर्सनल लॉ के विपरीत हिंदू विवाह अधिनियम में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है। केंद्र की मोदी सरकार ने इसे और बढ़ाने के लिए कदम उठाया है और केंद्रीय कैबिनेट ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। सरकार द्वारा गठित एक टास्क फोर्स ने इसकी सिफारिश की थी। उसका मानना है कि शादी की उम्र बढ़ाने से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा।