सिंधु जल संधि में संशोधन को लेकर भारत ने पाकिस्तान को जारी किया नोटिस, जानें कारण
भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जल संधि (IWT) में संशोधन को लेकर 25 जनवरी को एक नोटिस जारी किया। इस नोटिस में पाकिस्तान को IWT में संशोधन के लिए 90 दिनों का समय दिया गया है। इसमें सिंधु आयोग के दोनों देशों के आयुक्तों के बीच बातचीत की जाएगी और 62 साल से चले आ रहे इस समझौते में कुछ संशोधन भी किए जाएंगे। भारत और पाकिस्तान के बीच साल 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी।
क्या है मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने 2015 में भारत की किशनगंगा और रातले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स (HEP) पर कुछ तकनीकी आपत्तियां जताई थीं और इनके निस्तारण के लिए एक मध्यस्थता कोर्ट की मांग की थी। पाकिस्तान की यह एकतरफा कार्रवाई इस संधि का उल्लंघन है। भारत सरकार के प्रयासों बाद भी पाकिस्तान ने पांच सालों से स्थायी सिंधु आयोग की बैठकों के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया है और इसलिए नोटिस जारी किया गया है।
भारत ने नोटिस में क्या कहा?
भारत ने कहा कि IWT को बनाए रखने का वह पूरी तरह से समर्थक है, लेकिन पाकिस्तान की ओर से की गई कार्रवाईयों ने इस संधि के प्रावधानों और उनके कार्यान्वयन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। उसने कहा, "पाकिस्तान द्वारा 2015 में HEP पर आपत्तियों के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की मांग और फिर 2016 में इस अनुरोध को वापस लेने के बाद मध्यस्थता के लिए कार्ट का रुख करना एकतरफा कार्रवाई है, जो अनुच्छेद (9) का उल्लंघन है।"
दोनों देश सौहार्दपूर्ण ढंग से निकाले हल- विश्व बैंक
भारत ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा इस ही मामले में दो प्रक्रियाओं की मांग करना असंगत है, जो इस संधि को खतरे में डाल सकती है और 2016 में विश्व बैंक ने भी इसे स्वीकार किया है। हालांकि, पाकिस्तान के आग्रह पर विश्व बैंक ने तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता कोर्ट दोनों पर अपनी प्रक्रिया शुरू कर दी है और वह भी चाहता है कि भारत और पाकिस्तान सौहार्दपूर्ण ढंग से इस मामले का कोई हल निकाले।
क्या है सिंधु जल संधि?
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल संधि हुई थी। इसके तहत सिंधु घाटी में बहने वाली तीन पूर्वी नदियों (रवि, सतलज, व्यास) पर भारत का अधिकार है, जबकि 3 पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पाकिस्तान का अधिकार है। नदियां भारत से होकर बहती हैं, इसलिए पश्चिमी नदियों के 20 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल भारत सिंचाई और अन्य सीमित कार्यों के लिए कर सकता है।