जानें कैसे महिलाओं के आंदोलन की वजह से आंध्र प्रदेश में आधी हुई शराब की खपत
क्या है खबर?
शराब के खिलाफ लड़ाई में पिछले कुछ महीनों में आंध्र प्रदेश एक शानदार उदाहरण बन कर उभरा है।
राज्य में मई से लेकर अक्टूबर के बीच में शराब की खपत में 47.87 प्रतिशत की कमी आई है।
शराब से मुक्ति की ओर राज्य का ये सफर महिलाओं के एक आंदोलन से शुरू हुआ था जो आज अपना असर दिखा रहा है।
ये आंदोलन क्या था और इसके बाद क्या हुआ, आइए जानते हैं।
शुरूआत
जून 2017 में महिलाओं ने शुरू किया शराब की दुकानों के खिलाफ अभियान
शराब के खिलाफ इस आंदोलन की शुरूआत जून 2017 में हुई जब आंध्र प्रदेश के कई गांवों की महिलाओं ने शराब की अवैध दुकानों और भठ्ठियों के खिलाफ अभियान शुरू किया।
धीरे-धीरे ये आंदोलन राज्य के 13 जिलों में फैल गया और ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ अपना गुस्सा दिखाते हुए कई बार शराब की दुकानों पर हमला किया।
इस अभियान के दौरान महिलाओं ने शराब की बोतलों को तोड़ना भी शुरू कर दिया था।
पदयात्रा
जगनमोहन रेड्डी की पदयात्रा में महिलाओं ने बताई आपबाती
जिस समय महिलाएं शराब के खिलाफ ये आंदोलन कर रही थीं, उसी समय 6 नवंबर 2017 को YSR कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी ने 3648 किलोमीटर लंबी अपनी पदयात्रा शुरू की थी।
अपनी यात्रा के दौरान रेड्डी जहां भी गए वहां महिलाओं ने भारी संख्या में आकर शराब के कारण नष्ट हो रहे उनके परिवारों की कहानी सुनाई।
हर जगह महिलाओं ने रेड्डी ने कहा कि अगर वो शराब पर प्रतिबंध लगाने का वादा करेंगे तो वो उन्हें वोट देंगी।
वादा
रेड्डी ने महिलाओं से किया शराब पर प्रतिबंध का वादा
महिलाओं के आंदोलन से प्रभावित होकर जगनमोहन रेड्डी ने सत्ता में आने पर शराब पर प्रतिबंध का वादा किया और इस साल 30 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद से उनकी सरकार इस लक्ष्य की पूर्ति की ओर काम कर रही है।
सरकार ने शराब की दुकानों का संचालन अपने हाथ में लेने, उनका लाइसेंस रद्द करने और हजारों दुकानें बंद करने समेत कई ऐसे कदम उठाए हैं जिससे शराब की खपत में भारी कमी आई है।
कार्रवाई
छह महीनों में शराब की खपत में लगभग 50 प्रतिशत की कमी
मई में जगन रेड्डी के शपथ लेेने के बाद से अक्टूबर तक आंध्र प्रदेश में शराब के सेवन में 47.87 प्रतिशत की अप्रत्याशित कमी आई है।
इस दौरान शराब की 40,000 से अधिक अवैध दुकानों को बंद किया जा चुका है।
वहीं लाइसेंस वाली 4380 दुकानों में से 880 का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है और बची हुई 3500 दुकानों को सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया है।
अन्य उपाय
अतिरिक्त टैक्स लगाकर सरकार ने महंगी की शराब
राज्य सरकार ने अतिरिक्त टैक्स लगाकर शराब महंगी करने का काम भी किया है।
शराब की बोतलों पर 10 रुपये से लेकर 250 रुपये तक का अतिरिक्त टैक्स लगाया जा रहा है।
बीयर की बोतलों की कीमत में भी ब्रांड के हिसाब से 20 रुपये से लेकर 60 रुपये तक की वृद्धि हुई है।
सरकार ने इसके अलावा भी अन्य कई तरह की पाबंदियां लगाई हैं और सरकारी दुकानों पर रात आठ बजे के बाद शराब नहीं मिलती।
आंकड़े
कार्रवाई के कारण सरकार के राजस्व में आई कमी
आंकड़ों के अनुसार, जहां मई में राज्य में भारत में बनी विदेशी शराब (IMFL) की 28,52,922 और बीयर की 34,47,391 बोतलें बिकीं, वहीं अक्टूबर में ये संख्या घटकर IMFL की 14,87,229 और बीयर की 5,95,599 बोतलों पर आ गई है।
अपने इन कदमों के कारण आंध्र प्रदेश सरकार को राजस्व का नुकसान भी उठाना पड़ा है और शराब की बिक्री से होने वाला राजस्व अक्टूबर 2018 में 1701.24 करोड़ रुपये से गिरकर इस साल 1038.89 करोड़ पर आ गया है।
बुरा प्रभाव
ग्रामीण परिवारों को बर्बाद कर रही शराब, महिलाओं पर सबसे ज्यादा असर
शराब बंदी के खिलाफ काम कर रही राज्य की एक NGO के अनुसार, शराब ने ग्रामीण आंध्र प्रदेश की अर्थव्यवस्था और समाज को बर्बाद कर दिया है।
पुरुष अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा शराब पर खर्च करते हैं, जिससे उनका परिवार गरीबी के गर्त में चला जाता है।
NGO के अनुसार, पुरुषों की इस लत का महिलाओं पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है और वो घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं।
जानकारी
सरकार के प्रयासों से महिलाएं खुश
शराब के खिलाफ जगनमोहन रेड्डी सरकार के इन प्रयासों से महिलाएं खुश हैं। हालांकि शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध अभी भी नहीं लगा है और अन्य राज्यों में शराब बंदी के प्रयासों के असफल रहने के कारण ऐसा होेने की संभावना भी कम है।
इतिहास
पहले भी लग चुका है आंध्र प्रदेश में शराब पर प्रतिबंध
ये पहली बार नहीं है जब आंध्र प्रदेश में महिलाओं के आंदोलन के बाद शराब के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
1992 में भी राज्य की महिलाओं ने ऐसा ही एक आंदोलन किया था जिसके बाद तेलुगू देशम पार्टी (TDP) प्रमुख एनटी रामाराव ने शराब पर प्रतिबंध लगाने का वादा किया था।
1995 में राज्य की सत्ता में आने पर उन्होंने ये वादा निभाया भी, लेकिन 1997 में मुख्यमंत्री बनने पर चंद्रबाबू नायडू ने ये प्रतिबंध खत्म कर दिया।