
भारत के सिंधु जल समझौता रद्द करने से पाकिस्तान पर क्या पड़ेगा असर?
क्या है खबर?
भारत ने पहलगाम में 26 पर्यटकों की आतंकवादी हमले में मौत के बाद बड़ा भू-राजनीतिक फैसला लेते हुए पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौता निलंबित करने का फैसला लिया है।
दोनों देशों के बीच जल बंटवारे को विनियमित करने के लिए काफी सालों की बातचीत के बाद 1960 में संधि पर हस्ताक्षर हुए थे।
अगर भारत इस संधि के तहत जल को रोकता है, तो क्या पाकिस्तान पानी की बूंद-बूंद के लिए मोहताज हो जाएगा?
आइए विस्तार से जानते हैं।
समझौता
क्या है सिंधु जल समझौता?
विश्व बैंक की मध्यस्थता से 1960 में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी।
इसके तहत सिंधु घाटी में बहने वाली 3 पूर्वी नदियों (रवि, सतलज, व्यास) पर भारत का, जबकि 3 पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर पाकिस्तान का अधिकार है।
नदियां भारत से होकर बहती हैं, इसलिए पश्चिमी नदियों के 20 प्रतिशत पानी पर भारत का अधिकार है, वो सिंचाई समेत अन्य परियोजनाओं में इसका उपयोग करता है।
नुकसान
पाकिस्तान किस तरह नुकसान में है?
यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच साझा नदियों के जल का प्रबंधन के लिए की गई थी।
दोनों देश कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है, इसलिए सिंचाई और कृषि के लिए नदियों पर बहुत अधिक निर्भरता है और भारत के 80 प्रतिशत पानी देने से पाकिस्तान को कृषि में फायदा हुआ।
सिंधु, झेलम और चिनाब नदियां पाकिस्तान से नहीं निकलती हैं, इसलिए उस देश की 80 प्रतिशत यानी 1.6 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि इस संधि पर निर्भर है।
कृषि
पाकिस्तान की खेती पर कितना पड़ेगा असर?
पाकिस्तान इन तीनों नदियों के 90 प्रतिशत पानी से सिंचाई करता है और अगर पानी में गिरावट आई तो गेहूं, चावल, गन्ना, कपास जैसी फसलों की पैदावार में गिरावट आएगी।
सिर्फ पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की बात करें तो यह देश का 85 प्रतिशत खाद्यान्न उत्पादन करता है और पानी न मिलने से पाकिस्तान दाने-दाने को तरस सकता है।
खेती चौपट होने से पाकिस्तान के खजाने पर 25 प्रतिशत का असर पड़ेगा और 70 प्रतिशत आबादी की आय प्रभावित होगी।
संकट
पेयजल और परियोजनाओं पर संकट
पाकिस्तान के कई शहरों में भूजल की कमी है और पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। संधि रद्द होने से पंजाब और सिंध के कराची, लाहौर और मुल्तान में पेयजल संकट बढ़ सकता है क्योंकि ये सिंधु बेसिन पर निर्भर हैं।
इसके अलावा संधि के तहत सिंधु और झेलम नदियों की वजह से तरबेला और मंगला बांध जैसी जल विद्युत परियोजनाओं को भी नुकसान होगा।
पानी की कमी से पाकिस्तान में बिजली उत्पादन कम होगा और ऊर्जा संकट गहराएगा।
असर
क्या पाकिस्तान में तुरंत होने लगेगी समस्या?
भारत ने जल संधि स्थगित जरूर कर दी है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसका असर पहले दिन से ही पाकिस्तान में देखने को मिलने लगेगा।
दरअसल, भारत के पास ऐसा कोई बुनियादी ढांचा नहीं है, जिससे वह नदियों के बहाव को पाकिस्तान में जाने से रोक सके या उसे अपने इस्तेमाल के लिए मोड़ ले।
भारत तुरंत कोई बांध भी नहीं बना सकता। ऐसे में भारत पाकिस्तान में केवल 5-10 प्रतिशत पानी ही कम कर सकता है।
संधि
फिर भारत के लिए संधि को निलंबित करने का मतलब क्या है?
संधि निलंबित करने से भारत के फायदे को ऐसे समझ सकते हैं कि भले ही उसने पाकिस्तान को तुरंत चोट न पहुंचाई हो, लेकिन इससे भारत संधि की शर्तों को मानने के लिए अब बाध्य नहीं है।
वह जल प्रवाह रोकने को बांध बना सकता है और पाकिस्तान को दीर्घकालिक चिंताएं दे सकता है। हालांकि, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ की चिंता है।
भारत को कोई बड़ा आर्थिक लाभ नहीं, लेकिन कूटनीतिक, पर्यावरणीय और क्षेत्रीय चुनौतियां खड़ी कर सकता है।
प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के पास क्या रास्ता बचा है?
पाकिस्तान के पास संधि बचाने के लिए सीमित रास्ते हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के पास जाना या विश्व बैंक से अपील करना शामिल है। हालांकि, वे भी आंतकवादी घटना से नाराज हैं।
इसके अलावा पाकिस्तान फौरी तौर पर कुछ घरेलू कदम उठा सकता है, लेकिन इससे दीर्घकालिक समाधान नहीं होगा।
वह पानी की जमाखोरी, कृषि और बिजली प्रबंधन के लिए सख्त निर्णय ले सकता है। इसी तरह, भूजल और छोटे जलाशयों पर निर्भरता बढ़ा सकता है।