विमानों में 30,000 फीट की ऊंचाई पर कैसे काम करता है इंटरनेट?
क्या है खबर?
एयर इंडिया चुनिंदा घरेलू उड़ानों में मुफ्त इन-फ्लाइट वाई-फाई सेवा शुरू करने वाली पहली भारतीय एयरलाइन कंपनी बन गई है।
कंपनी ने यह सुविधा एयरबस A350, बोइंग 787-9, और कुछ A321 नियो विमानों में दी है। यात्री अब हजारों फीट की ऊंचाई पर लैपटॉप, टैबलेट या स्मार्टफोन में वाई-फाई का इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसी बीच जानते हैं कि किस तकनीक से 35,000 फीट की ऊंचाई पर भी विमानों में इंटरनेट काम करता है।
शुरुआत
कब हुई थी विमानों में इंटरनेट की शुरुआत?
इन-फ्लाइट इंटरनेट सुविधा लगभग 2 दशक से मौजूद है। विमान निर्माता बोइंग ने अप्रैल 2000 में कनेक्शन के नाम से अपनी सेवा की घोषणा की और 2004 में म्यूनिख-लॉस एंजिल्स लुफ्थांसा उड़ान में इसकी शुरुआत की थी।
बोइंग ने लोकप्रियता के अभाव में 2006 में यह सेवा बंद कर दी।
हालांकि, स्मार्टफोन के आगमन और उसके बाद कई सैटेलाइट प्रदाताओं और एयरलाइनों द्वारा किए गए प्रयासों ने पिछले दशक में इस तकनीक को काफी विकसित करने में मदद की है।
इंटरनेट
एयरलाइंस कंपनियां इंटरनेट सुविधा कैसे उपलब्ध कराती हैं?
एयरलाइंस कंपनियां यात्रियों को इन-फ्लाइट इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने के लिए मुख्य रूप से हवा से जमीन तक और सैटेलाइट आधारित वाई-फाई तकनीक का इस्तेमाल करती है।
हवा से जमीन तक वाई-फाई प्रणाली में विमान पर लगा एंटीना (विमान के नीचे की ओर) जमीन पर स्थित मोबाइल नेटवर्क टावरों से सिग्नल लेता है।
टावर ऊपर की ओर संकेत भेजते हैं और विमान का एंटीना तब तक निर्बाध संपर्क बनाए रखता है जब तक विमान टावरों की रेंज में रहता है।
जानकारी
इन क्षेत्रों में आती है कनेक्टिविटी में गिरावट
रिपोर्ट के अनुसार, हवा से जमीन वाई-फाई तकनीक की अपनी सीमाएं होती हैं। सेलफोन सिग्नल की तरह ही कनेक्टिविटी टावर घनत्व और कवरेज पर निर्भर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों, रेगिस्तानों या बड़े जल स्रोतों के ऊपर कनेक्टिविटी में गिरावट आती है।
उपग्रह
उपग्रह आधारित वाई-फाई तकनीक
विमानों में सैटेलाइट आधारित वाई-फाई तकनीक का व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है। इसके लिए सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम का इस्तेमाल होता है।
विमान में लगा ट्रांसमीटर सिग्नल को सैटेलाइट की तरफ भेजता है। यह सिग्नल रेडियो तरंगों के जरिए सैटेलाइट द्वारा कैच किया जाता है।
सैटेलाइट इस सिग्नल को जमीन पर स्थित ग्राउंड स्टेशन या सीधे विमान के ऑनबोर्ड सिस्टम तक भेजता है। उसके बाद इसे वाई-फाई के जरिए यात्रियों के डिवाइस तक पहुंचाया जाता है।
स्पीड
जमीनी कनेक्शन के तुलना में धीमी होती है इंटरनेट स्पीड
सैटेलाइट आधारित वाई-फाई तकनीक में विमान के 3,000 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर इंटरनेट सुविधा मिलना शुरू हो जाती है। हालांकि, इस इंटरनेट की स्पीड जमीनी कनेक्शन की तुलना में धीमी होती है।
CNN की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान सैटेलाइट सिस्टम प्रति विमान लगभग 100 मेगाबिट प्रति सेकंड की स्पीड प्रदान करते हैं, जो प्रति यात्री लगभग 15 मेगाबिट प्रति सेकंड के बराबर है।
यह जमीनी वाई-फाई इंटरने की स्पीड की तुलना में बहुत कम है।
खर्च
कितनी महंगी होती है विमानों में इंटरनेट की सेवा?
उड़ान के दौरान वाई-फाई उपलब्ध कराने के लिए एयरलाइंस को शुरुआत में काफी अधिक लागत वहन करनी पड़ती है, विशेष रूप से विमान में एंटीना लगाने पर। पूरा सेटअप तैयार करने में लगभग 3-4 करोड़ रुपये का खर्च आता है।
पुराने विमानों को अपग्रेड करने में खर्च इससे भी ज्यादा हो सकता है। ऐसे में वर्तमान में एयरलाइंस कंपनियां नए विमानों में ही यह सुविधा दे रही है क्योंकि वह पहले से ही आवश्यक हार्डवेयर से सुसज्जित होते हैं।
मोबाइल
विमानों में मोबाइल डाटा के उपयोग की अनुमति क्यों नहीं?
नागरिक विमानन प्राधिकरण के अनुसार, मोबाइल फोन विमान के उपकरणों में हस्तक्षेप कर सकते हैं तथा पायलट के हेडसेट संचार को बाधित कर सकते हैं।
शोध से पता चला है कि मोबाइल उपकरणों द्वारा उत्सर्जित रेडियो तरंगें नेविगेशन और रडार प्रणालियों, ग्राउंड कंट्रोल संचार और यहां तक कि टक्कर से बचने वाली प्रौद्योगिकियों को भी प्रभावित कर सकती हैं।
ऐसे में सुरक्षा की दृष्टि से विमानों में मोबाइल डाटा के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाती है।
कॉल
क्या उड़ान के दौरान फोन कॉल की अनुमति है?
साल 2022 में यूरोप ने उड़ानों में फोन कॉल और डाटा इस्तेमाल को मंजूरी दी थी।
इसके साथ यूरोपीय एयरलाइंस ने 2023 से विमान में 5G की सुविधा भी शुरू की है। इससे यात्रियों को हवा में कॉल करने और संदेश भेजने की अनुमति मिलती है।
यूरोपीय संघ ने उड़ान के दौरान 5G के लिए 4.2-4.4 गीगाहर्ट्ज का आवंटन किया है, जो भूमि-आधारित 5G (3.4-3.8 गीगाहर्ट्ज) से अलग है। इससे विमान की सुरक्षा प्रणालियों में कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।
जानकारी
यूरोपीय संघ ने लागू की विमानों में पिकोसेल लगाने की बाध्यता
यूरोपीय संघ के नियमों के अनुसार, विमानों में 'पिकोसेल' लगाना भी आवश्यक है, जो विमानन संचार प्रणालियों में व्यवधान को रोकने के लिए फोन सिग्नलों का प्रबंधन करने वाला उपकरण है। इसकी मदद से ही विमानों का मोबाइल डाटा के बीच सुरक्षित संचालन होता है।
लाभ
कैसे उठा सकते हैं एयर इंडिया के वाई-फाई का लाभ?
यात्री निम्नलिखित चरणों का पालन करके एयर इंडिया के इन-फ्लाइट वाई-फाई का उपयोग कर सकते हैं।
इसके लिए यात्रियों को सबसे पहले अपने डिवाइस पर वाई-फाई चालू करना होगा और फिर वाई-फाई सेटिंग खोलनी होगी।
इसके बाद उसमें 'एयर इंडिया वाई-फाई' नेटवर्क का चयन करना होगा। इसके बाद एयर इंडिया पोर्टल पर पुनः निर्देशित होने पर अपना PNR और अंतिम नाम दर्ज कर आप सेवा का लाभ उठा सकते हैं।