पोर्ट ब्लेयर को कैसे मिला था अपना नाम, अब सरकार ने क्यों बदला?
केंद्र सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम कर दिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने इसकी जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि देश को गुलामी के सभी प्रतीकों से मुक्ति दिलाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के संकल्प से प्रेरित होकर गृह मंत्रालय ने पोर्ट ब्लेयर का नाम 'श्री विजयपुरम' करने का निर्णय लिया है। आइए आज पोर्ट ब्लेयर के बारे में जानते हैं।
पोर्ट ब्लेयर को कैसे मिला अपना नाम?
पोर्ट ब्लेयर का नाम ईस्ट इंडिया कंपनी के नौसेना अधिकारी कैप्टन आर्चीबाल्ड ब्लेयर के नाम पर रखा गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल की खाड़ी में रणनीतिक उपस्थिति के लिए 1789 में पोर्ट ब्लेयर में एक बस्ती की स्थापना की थी। इसको बसाने का मूल उद्देश्य अपराधियों और कैदियों के लिए इन द्वीपों का इस्तेमाल करना था। कुछ समय के लिए एडमिरल विलियम कॉर्नवॉलिस के नाम पर इसका नाम बदलकर पोर्ट कॉर्नवॉलिस भी किया गया था।
कहां है पोर्ट ब्लेयर?
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित पोर्ट ब्लेयर बंगाल की खाड़ी में भारत की मुख्य भूमि से लगभग 1,200 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यहां हवाई और समुद्री मार्ग के जरिए पहुंचा जा सकता है। नीले पानी और हरियाली से समृद्ध पोर्ट ब्लेयर जरावा, ओंगे और सेंटिनलीज समेत कई जनजातियों का हजारों सालों से घर रहा है। धीरे-धीरे यहां तमिल, बंगाली और आंध्र प्रदेश के कुछ समुदाय के लोग भी आ बसे हैं।
सेलुलर जेल के लिए कुख्यात है पोर्ट ब्लेयर
पोर्ट ब्लेयर के नाम आते ही सेलुलर जेल का जिक्र जरूर होता है। 1896 से 1906 तक अंग्रेजों ने यहां सेलुलर जेल बनवाई, जिसे कालापानी भी कहा जाता है। इस जेल में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और राजनीतिक कैदियों को रखा जाता था। यहां विनायक दामोदर सावरकर, बटुकेश्वर दत्त और योगेंद्र शुक्ला सहित कई स्वतंत्रता सेनानी कैद रहे। फिलहाल इस जेल को राष्ट्रीय स्मारक बना दिया गया है। 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जेल का दौरा किया था।
क्यों बदला गया नाम?
नाम बदलने का फैसला भारत से औपनिवेशिक प्रतीकों को हटाने की व्यापक पहल का हिस्सा है। इससे पहले 2018 में अंडमान-निकोबार के हैवलॉक द्वीप, नील द्वीप और रॉस द्वीप के नाम बदले थे। हैवलॉक द्वीप को स्वराज द्वीप, नील द्वीप को शहीद द्वीप और रॉस द्वीप को नेताजी सुभाष चंद्र द्वीप नाम दिया गया था। हाल ही में राष्ट्रपति भवन के 'दरबार हॉल' और 'अशोक हॉल' का नाम बदलकर क्रमशः 'गणतंत्र मंडप' और 'अशोक मंडप' कर दिया गया था।
नाम बदलने को लेकर क्या बोले गृह मंत्री?
गृह मंत्री ने लिखा, 'इस द्वीप का हमारे देश की स्वाधीनता और इतिहास में अद्वितीय स्थान रहा है। चोल साम्राज्य में नौसेना अड्डे की भूमिका निभाने वाला यह द्वीप आज देश की सुरक्षा और विकास को गति देने के लिए तैयार है। यह द्वीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा सबसे पहले तिरंगा फहराने से लेकर सेलुलर जेल में वीर सावरकर व अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा माँ भारती की स्वाधीनता के लिए संघर्ष का स्थान भी है।'