लोकसभा चुनाव में राजनीतिक विज्ञापनों पर पैनी नजर रखेगा गूगल, खर्च का भी रखेगा हिसाब
भारत में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले गूगल राजनीतिक विज्ञापन से संबंधित अपने नियमों में बदलाव करने जा रहा है। ऑनलाइन राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता लाने के मकसद से गूगल ने मंगलवार को नए नियमों की घोषणा की। नए नियमों में गूगल विज्ञापन देने वाले की पहचान की जांच करेगा और यह जानकारी भी देगा कि उस विज्ञापन के लिए कितने पैसे खर्च किए गए। नए नियमों में और क्या है, आइए जानते हैं।
लोकसभा चुनाव में पारदर्शिता है नियम
नए नियमों के अनुसार, राजनीति विज्ञापन देने के इच्छुक विज्ञापनदाताओं को हर विज्ञापन से पहले चुनाव आयोग से सर्टिफिकेट लेना होगा। खबर के अनुसार, विज्ञापन देने वाले की पहचान की पुष्टि करने वाली प्रक्रिया 14 फरवरी से शुरु होगी और नए नियम 20 फरवरी से लागू हो जाएंगे। कंपनी 'राजनीतिक विज्ञापन पारदर्शिता' रिपोर्ट की शुरुआत करेगी और मार्च में 'राजनीतिक विज्ञापन लाइब्रेरी' भी लांच करेगी। हर हफ्ते की पारदर्शिता रिपोर्ट सार्वजनिक होगी और उसे आसानी से डाउनलोड किया जा सकेगा।
'चुनावी खर्च का रहेगा पूरा हिसाब'
गूगल इंडिया की सार्वजनिक नीतियों के निदेशक चेतन कृष्णास्वामी ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से बातचीत में कहा, "गूगल पर कौन चुनाव से जुड़े विज्ञापन दे रहा है, वह कितना खर्च कर रहे हैं और वह कैसे विज्ञापन दे रहे हैं, इस सबकी जानकारी रिपोर्ट में उपलब्ध होगी।" चेतन ने यह भी बताया कि रिपोर्ट में पूरे देश के चुनावी विज्ञापनों का हिसाब होगा। रिपोर्ट में एक ऐसा फीचर भी होगा जिसकी मदद से आंकड़ों को आसानी से समझा जा सके।
फेसबुक ने भी उठाए थे ऐसे ही कुछ कदम
राजनीतिक विज्ञापनों में पारदर्शिता लाने के लिए गूगल से पहले फेसबुक ने भी ऐसे ही कुछ नए नियम बनाए थे। विज्ञापनों में पारदर्शिता लाने और लोकसभा चुनाव में विदेशी हस्तक्षेप रोकने के मकसद से फेसबुक ने दिसंबर में घोषणा की थी कि जल्द ही सारे राजनीतिक विज्ञापनों के साथ यह जानकारी हुआ करेगी कि उन्हें किसने पोस्ट किया है। फेसबुक ने भी गूगल की तरह राजनीतिक विज्ञापन लाइब्रेरी बनाने की घोषणा की थी।
फेक न्यूज के खिलाफ व्हाट्सऐप का मिशन
व्हाट्सऐप ने भी स्वतंत्र और निपक्ष चुनाव के लिए कदम उठाए हैं। फेक न्यूज को रोकने के लिए कंपनी ने भारत में पिछले 5 महीने में 120 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च किए हैं। मैसेज फॉरवर्ड की सीमा तय करने और उसके साथ 'फॉरवर्डेड' का टैग दिखने के अलावा व्हाट्सऐप ने फेक न्यूज के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए विज्ञापनों पर भारी खर्च किया है। व्हाट्सऐप पर फैलने वाली फेक न्यूज देश में कई लोगों की जान ले चुकी है।