नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों पर सेना प्रमुख बिपिन रावत के बयान पर विवाद
सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत अपने एक बयान के लिए विवादों में घिरते हुए नजर आ रहे हैं। नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा था कि नेता वो नहीं होते जो भीड़ से आगजनी और हिंसा कराते हैं। इसके बाद कई नेताओं ने उन पर एक निष्पक्ष और गैर-राजनीतिक पद पर रहते हुए राजनीतिक मामलों में एक पक्ष लेने को लेकर सवाल खड़े किए।
क्या कहा जनरल रावत ने?
दरअसल, गुरूवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम में बोलते हुए जनरल रावत ने कहा, "नेता वो होते हैं जो लोगों को सही दिशा में लेकर जाते हैं। नेता वो नहीं होते जो लोगों को गलत दिशा में लेकर जाते हैं। जैसा कि देख रहे हैं कि बड़ी संख्या में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्र लोगों की भीड़ को हमारे शहरों और कस्बों में आगजनी और हिंसा के लिए लेकर जा रहे हैं। ये लीडरशिप नहीं है।"
कांग्रेस प्रवक्ता ने बयान को संवैधानिक लोकतंत्र के खिलाफ बताया
जनरल बिपिन रावत के इस बयान पर कई नेताओं और पार्टियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस के प्रवक्ता बृजेश कलप्पा ने ट्वीट करते हुए लिखा, "सेना प्रमुख बिपिन रावत का नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के खिलाफ बोलना संवैधानिक लोकतंत्र के खिलाफ है। अगर सेना प्रमुख को आज राजनीतिक मुद्दों पर बोलने की इजाजत दी जाती है तो ये उन्हें कल एक सैन्य तख्तापलट की कोशिश करने की मंजूरी भी देता है।"
ओवैसी बोले, पद की सीमाएं जानना भी लीडरशिप
वहीं AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी ट्वीट कर जनरल रावत के बयान पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, "अपने पद की सीमाएं जानना लीडरशिप है। लीडरशिप का मतलब नागरिकों को सर्वोच्चता के विचार को समझना और उस संस्था की पवित्रता बरकरार रखना है जिसकी आप अगुवाई करते हैं।" इस बीच कुछ लोग जनरल रावत के समर्थन में भी आए और उनके बयान को एक नागरिक के तौर पर उनका अधिकार बताया।
31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं जनरल रावत
बता दें कि जनरल रावत 31 दिसंबर को सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो रहे हैं और लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवणे अगले सेना प्रमुख होंगे। जनरल रावत का देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बनाया जा सकता है।
नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में हो चुकी है 21 लोगों की मौत
गौरतलब है कि नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं औऱ इनमें लगभग 21 लोगों की मौत हो चुकी है। इन कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार के कारण भारत आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। मुस्लिमों को इसके दायरे से बाहर रखने के कारण इसका विरोध हो रहा है।
विरोध के बाद सरकार ने वापस खींचे कदम
लोगों को बड़ी संख्या में बाहर निकलने का एक कारण मोदी सरकार का नागरिकता कानून को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) से जोड़ना भी है। NRC में गरीबों और खासकर मुस्लिमों के बाहर होने की आशंका जताई जा रही है और इसलिए भी इसका जबरदस्त विरोध हो रहा है। विरोध प्रदर्शनों के कारण सरकार को इस पर अपने कदम वापस खींचने पड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं कि NRC पर उनकी सरकार में कोई बात नहीं हुई।