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    जम्मू-कश्मीर में 14 साल के कम उम्र के बच्चों को बनाया जा रहा आतंकवादी- रिपोर्ट

    जम्मू-कश्मीर में 14 साल के कम उम्र के बच्चों को बनाया जा रहा आतंकवादी- रिपोर्ट
    लेखन भारत शर्मा
    Jun 26, 2020, 08:27 pm 1 मिनट में पढ़ें
    जम्मू-कश्मीर में 14 साल के कम उम्र के बच्चों को बनाया जा रहा आतंकवादी- रिपोर्ट

    भारत के जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों द्वारा लगातार आतंकियों को मारे जाने के बाद भी नए-नए आतंकवादी उभरकर सामने आ रहे हैं। इसको लेकर अमेरिकी विदेश विभाग ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। विभाग की ओर से गुरुवार को पेश की गई ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स रिपोर्ट 2019 में बताया गया है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठन सरकार के खिलाफ गतिविधियों में 14 साल से कम उम्र के बच्चों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

    12 साल के कम उम्र के बच्चों को जबरन हथियार चलाना सिखा रहे माओवादी

    HT की खबर के अनुसार रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि माओवादी संगठन 12 साल से कम उम्र के बच्चों को जबरन हथियार चलाना सिखाने के साथ IED का उपयोग करना भी सिखा रहे हैं। यह स्थिति वामपंथी उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित भारत के छत्तीसगढ़ और झारखंड राज्य में सबसे अधिक है। इतना ही नहीं माओवादी संगठनों से जुड़ी युवती व महिलाओं का उनके प्रभारियों द्वारा जमकर यौन उत्पीड़न भी किया जाता है।

    मानव तस्करी के मामले में दूसरी श्रेणी में है भारत

    रिपोर्ट के अनुसार भारत को मानव तस्करी के मामले में दूसरी श्रेणी में रखा है। इसका मतलब है कि भारत में इसे रोकने के पूरी तरह से प्रयास नहीं किए गए, लेकिन प्रयास जारी है। पहली श्रेणी में उन देशों को रखा जाता है, जहां मानव तस्करी को रोकने के लिए आवश्यक उपायों की पूरी तरह से पालना की जाती है। भारत मानव तस्करी के मामले में पिछले एक दशक से दूसरी श्रेणी में ही बना हुआ है।

    मानव तस्करी पीड़ितों को झेलनी पड़ती हैं ये यातनाएं

    रिपोर्ट के अनुसार भारत में मानव तस्करी पीड़ितों को शारीरिक हिंसा, बंधुआ मजदूरी, महिला और युवतियों की खरीद-फरोख्त और पैसे के लिए गर्भधारण करने जैसी यातनाएं सहनी पड़ती है। भारत में मानव तस्कर लाखों महिला व युवतियों को जबरन देह व्यापार में धकेल देते हैं। इसके अलावा वह नेपाल और बांग्लादेश से महिला और युवतियों को लाकर इस दलदल में डाल देते हैं। विशेषकर गोवा में मध्य एशियाई, यूरोपीय और अफ्रीकी महिलाओं से देह व्यापार कराया जाता है।

    बाल यौन पर्यटकों का प्रमुख केंद्र है भारत

    रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत बाल यौन पर्यटन का प्रमुख केंद्र है। बाहरी लोग यहां आकर कम उम्र की बालिकाओं के साथ संबंध बनाते हैं और उन्हें जबरन देह व्यापार में धकेल दिया जाता है। यह अमानवीयता का सबसे बड़ा पहलू है।

    महिलाओं का अपहरण कर भेज दिया जाता है डांस बार

    रिपोर्ट में बताया कि कुछ मानव तस्कर भारत और नेपाल की महिला और युवतियों का अपहरण कर उन्हें नृत्य मंडली और डांस बार में भेजते हैं और कमाई करते हैं। इसके लिए बिहार सबसे अधिक बदनाम है। वर्तमान में तस्कर ऑनलाइन बिजनेस करने लगे हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कुछ तस्कर रेलवे स्टेशन और सार्वजनिक स्थलों से बच्चों का अपहरण करते हैं और पांच साल की हार्मोन्स के इंजेक्शन देकर देह व्यापार में डाल देते हैं।

    भारत की कानूनी प्रक्रिया पर भी उठाए सवाल

    रिपोर्ट में भारत की कानूनी प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। इसमें बताया गया है कि भारत में कुछ कानून के रक्षक रिश्वत के लालच में मानव तस्कर और अवैध देह व्यापार चलाने वालों का बचाव करते हैं। भारत सरकार की आलोचना करते हुए कहा गया है कि देश में तस्करों की गिरफ्तारी, मामलों की जांच और लंबित मामलों में त्वरित कार्रवाई बंद कर दी है। इससे तस्कर अपराधियों के बरी होने का प्रतिशत 83 प्रतिशत बढ़ गया।

    इन देशों में बंधुआ मजदूरी करते पाए गए भारतीय

    रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में आर्मेनिया, पुर्तगाल, गैबॉन और जाम्बिया में कुछ भारतीय लोगों को बंधुआ मजदूरी और केन्या में कुछ भारतीय महिलाओं को देह व्यापार में लिप्त पाया गया। इससे साफ है कि भारत से बाहर भी लोगों की तस्करी हो रही है।

    बंधुआ मंजदूरों की पहचान में बरती जा रही है ढिलाई

    रिपोर्ट के अनुसार भारत में बंधुआ मंजदूरों की पहचान में ढिलाई बरती जा रही है। यही कारण है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में साल 1976 के बाद से अब तक महज 3.13 बंधुआ मजदूरों की ही पहचान हुई है। चौंकाने वाली बात है कि यह देश के विभिन्न NGO द्वारा रिपोर्ट कि गए करीब 80 लाख मजदूरों का महज चार प्रतिशत है। NGO के अनुसार पुलिस ने 50 प्रतिशत मामलों में तो मामला ही दर्ज नहीं किया है।

    देश के 17 राज्यों में दो सालों में नहीं मिला कोई भी बंधुआ मजदूर

    रिपोर्ट के अनुसार भारत के 36 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में से 17 राज्यों में साल 2017 और 2018 में एक भी बंधुआ मजदूर की पहचान नहीं की गई है। यह इस मामले में राज्य सरकारों की अनदेखी की ओर इशारा करता है।

    भारत में लगातार कम होते जा रहे हैं मानव तस्करी के मामले

    रिपोर्ट में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा गया है कि भारत में साल 2018 में मानव तस्करी के महज 1,830 मामले दर्ज किए गए हैं। इसके उलट साल 2017 में यह संख्या 2,854 और 2016 में 5,217 थी। रिपोर्ट में बिहार और उत्तर प्रदेश के आश्रय स्थलों में बालिकाओं के यौन शोषणा का भी हवाला दिया गया है। जिसमें CBI ने 16 मामलों की जांच कर 12 में चार्जशीट दायर की।

    रिपोर्ट में मानव तस्करी के लिए भारतीय पुलिस को ठहराया दोषी

    रिपोर्ट में मानव तस्करी के लिए भारतीय पुलिस को दोषी ठहराया गया है। इसमें कहा गया है कि कुछ पुलिस अधिकारियों ने मामले की जानकारी होने के बाद भी उस पर कार्रवाई करने की जगह आरोपियों को बचाने का प्रयास किया है। कुछ जगह पर राजनीतिक हस्तक्षेप होने के कारण भी आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हुई। इसी तरह कई राज्यों में सरकारों में इच्छा शक्ति की कमी के कारण मानव तस्करी से जुड़े अपराधियों पर कार्रवाई नहीं हुई।

    अमेरिका की तुलना में बेहतर काम कर रही है भारतीय पुलिस

    उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने कहा कि देश में इस तरह की समस्या है। यह एक स्वीकृत तथ्य है जिसे भारत सरकार ने स्वीकार किया है कि नक्सली बच्चों को हथियार ले जाने और मुखबिर के रूप में इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय पुलिस के पास कई तरह की समस्याएं होती है और उन्हें नेताओं के आदेश भी मानने पड़ते हैं। इस स्थिति में भारतीय पुलिस अमेरिका से बेहतर काम कर रही है।

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